विनोद कुमार

इन दिनों सामाजिक अथवा राजनीतिक मुद्दे अथवा धार्मिक भावना को लेकर फिल्मों के बहिष्कार का ट्रेंड चल पडा है। पिछले कुछ समय से फिल्मों के बायकॉट की प्रवृति अधिक ही देखी जा रही है‚ लेकिन यह कोई नई बात नहीं है। इसका भी अपना इतिहास रहा है। हां‚ आजकल यह फैशन बन गया है क्योंकि अब सोशल मीडिया के कारण बॉयकॉट या बहिष्कार आसान हो गया है।

हाल ही में फिल्‍म लाल सिंह चड्ढा और ब्रह्मास्त्र जैसी कई फिल्माें काे बहिष्कार का सामना करना पडा। लेकिन क्या आपको मालूम है कि साठ के दशक में एक ऐसी फिल्म आई थी जिसका विरोध ठीक ऐसे ही हुआ था जैसे इन दिन कुछ फिल्मों का हो रहा है।

उस समय इस फिल्म को लेकर खूब हंगामा मचा था। यह फिल्म थी धर्मपुत्र जो 1961 में रिलीज हुई थी। इस फिल्म पर तब देश भर में बवाल मचा था। लोग चाहते थे कि सिनेमा हॉल्स में यह फिल्म नहीं दिखाई जाए। यही वजह है कि जब यह फिल्म रिलीज़ हुई थी तो देश भर के काफी हिस्सों में सिनेमा घरों के बाहर हंगामा और उपद्रव जैसी स्थिति पैदा हो गई थी।

धर्मपुत्र का निर्माण बी आर चोपड़ा ने किया था और इसका निर्देशन बी आर चोपड़ा के छोटे भाई यश चोपड़ा ने किया था। यश चोपड़ा के निर्देशन में बनने वाली यह दूसरी फिल्म थी। इसके ठीक दो साल पहले साल 1959 में यश चोपड़ा ने फिल्म धूल का फूल का निर्देशन किया था जिसका निर्माण बीआर चोपड़ा ने किया था।

आपको बता दें कि बी आर चोपड़ा नवांशहर से थे। पंजाब यूनिवर्सिटी लाहौर से अंग्रेजी में एमए थे और लाहौर में पत्रकारिता करते थे। विभाजन के बाद उन्हें लाहौर से भागकर भारत आना पड़ा था। पहले वह दिल्ली आए और फिर वहां से मुंबई। मुंबई में उन्होंने हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में अपना पैर जमाया और कई फिल्में बनाई। कहते हैं 1954 में उनकी फिल्म चांदनी चौक इतनी चली थी कि उस फिल्म से हुई कमाई से उन्होंने सन 1956 में एक फिल्म निर्माण कंपनी ही बना डाली जिसका नाम रखा बी आर फिल्म्स।

बीआर चोपड़ा पत्रकार थे। उन्होंने विभाजन की विभीषिका देखी थी और इसकी त्रासदी भी झेली थी। यही वजह है कि साल 1957 में नया दौर जैसी सुपरहिट फिल्म बनाने के बाद उन्होंने एक ऐसे विषय को लेकर फिल्म बनाने की सोची जो आपसी भाईचारे को बढ़ावा दे। यही सोचकर उन्होंने साल 1959 में बी आर फिल्म्स के बैनर तले एक फिल्म बनाई। जिसका नाम रखा था धूल का फूल।

इस फिल्म को डायरेक्ट करने की जिम्मेदारी दी अपने छोटे भाई यश चोपड़ा को‚ जिन्होंने फिल्म नया दौर के लिए सहायक निर्देशक के तौर पर काम किया था। धूल का फूल बतौर डायरेक्टर यश चोपड़ा की पहली फिल्म थी। धूल का फूल फिल्म में थे राजेंद्र कुमार, माला सिन्हा, नंदा, अशोक कुमार और मनमोहन कृष्ण। फिल्म का संगीत दिया था संगीतकार एन दत्ता ने और इसके गाने लिखे थे शायर साहिर लुधियानवी ने।

फिल्म की कहानी यह है कि राजेंद्र कुमार और माला सिन्हा के कदम बहकते हैं। नतीजा ये होता है कि माला सिन्हा गर्भवती हो जाती हैं। उधर राजेंद्र कुमार माला सिन्हा की बजाय एक दूसरी लड़की नंदा से शादी कर लेते हैं।

अब गर्भवती माला सिन्हा एक संतान को जन्म देती है जो समाज के हिसाब से नाजायज़ है। आखिर समाज और लोकलाज के भय से माला सिन्हा अपने नवजात शिशु को जंगल में छोड़ आती है, जहां से मनमोहन कृष्ण उसे अपने घर ले जाते हैं।

मनमोहन कृष्ण उसे बड़े प्यार से अपने बच्चे की तरह पालते हैं। फिल्म में मनमोहन कृष्ण के पात्र का नाम अब्दुल राशिद है।

इस फिल्म में भाइचारे का संदेश देने वाला गाना है – इंसान की औलाद है इंसान बनेगा। इस गाने को आवाज दी थी मोहम्मद रफी ने। हालांकि फिल्म में तो यह गाना महज़ एक गाना था लेकिन फिल्म के बाहर यह गाना आपसी भाईचारे का एक प्रतीक बन गया था।

इस भूमिका के लिए मनमोहन कृष्ण को 1960 में फिल्मफेयर बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर अवॉर्ड से नवाजा गया था। धूल का फूल फिल्म का थीम बोल्ड था। कहानी बिन ब्याही मां, बच्चे और समाज की थी। लिहाजा फिल्म अच्छी चली और लोगों ने इसे खूब सराहा। तब कहा गया कि आपसी भाईचारे पर इससे बेहतर कोई सामाजिक फिल्म अब तक नहीं बनी।

बीआर चोपड़ा की ये फिल्म सामाजिक भी थी और राजनीतिक भी। धूल का फूल की सफलता से बीआर चोपड़ा उत्साहित थे। इतने कि दो साल बाद 1961 में उन्होंने फिर इसी विषय पर एक और फिल्म बना डाली। इस बार फिल्म का नाम रखा धर्मपुत्र। इस फिल्म में थे शशि कपूर और माला सिन्हा। शशि कपूर की बतौर एक्टर ये पहली फिल्म थी।

मनमोहन कृष्ण इस फिल्म में भी थे।धर्मपुत्र की कहानी भी धूल का फूल से मिलती जुलती थी। केवल पात्र अलग थे।

यह फिल्म आचार्य चतुरसेन के उपन्यास पर आधारित थी। यह फिल्म ब्रिटिश राज के दौरान भारत के विभाजन से पैदा हुए साम्प्रदायिक घटनाओं की पृष्ठभूमि में बनी जिसमें शशि कपूर ने वयस्क एक्टर के तौर पर पहली बार काम किया था। जिसमे उन्होंने एक हिन्दू कट्टरतावादी की भूमिका निभाई थी।

फिल्म में शशि कपूर के अलावा माला सिन्हा‚ रहमान‚ मनमोहन कृष्ण‚ इंद्राणी मुखर्जी आदि की भूमिकाएं हैं।

फिल्म की कहानी यह है कि जावेद और हुस्न बानो प्यार में पड़ते हैं और शादी से पहले बच्चा पैदा हो जाता है और इस बार भी वही समस्या पैदा होती है। समाज के हिसाब से नाजायज इस बच्ची को पालेगा कौन? चारों तरफ विभाजन की आग थी।

आखिर बच्ची को एक घर मिलता है। लेकिन इस बार धर्मपुत्र में बीआर चोपड़ा ने बच्ची का घर बदल दिया और पालने वाले का नाम भी। फिल्म धूल का फूल में बच्चा पालने वाले का नाम था अब्दुल राशिद। फिल्म धर्मपुत्र में बच्चा पालने वाले का नाम था डॉक्टर अमृत राय और सावित्री राय। पति पत्नी मिलकर बच्चे को बड़ा करते हैं।

बच्चा बड़ा होता है, लेकिन उसकी सोच में भाईचारा नहीं बल्कि नफरत होती है। इस फिल्म में भी गाने लिखे थे शायर साहिर लुधियानवी ने और इसमें संगीत दिया था एन दत्ता ने।

इसमें एक गाना था – वो दिलवर मुझ पर खफा न हो‚ कहीं तेरी भी कुछ खता न हो। ये दिल दीवाना मचल गया।

यह गाना खूब चला। इस गाने को गाया था मोहम्मद रफी ने। इसी फिल्म में मोहम्मद रफी ने आशा भोसले के साथ एक और गाना गाया था – सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा। यह वही गीत है जिसे इकबाल ने लिखा था।

फिल्म क बाकी पांच गानों को महेन्द्र कपूर ने गाया जबकि तीन गानों को आशा भोसले ने गाया था।

धर्मपुत्र फिल्म बन गई और रिलीज भी हुई, लेकिन धर्मपुत्र की कहानी को लोग स्वीकार नहीं कर पाए। फिल्म रिजेक्ट कर दी गई। उस दौरान होता ये था कि जब कोई फिल्म देखने पहुंचता तो वहां हंगामा मच जाता और उपद्रव जैसी स्थिति पैदा हो जाती। कई शहरों में कमोबेश ऐसा ही हुआ। आखिर वही हुआ जो होना था। फिल्म धर्मपुत्र बुरी तरह फ्लॉप हो गई। अगर कुछ चला तो बस मोहम्मद रफी का यह गाना। हालांकि धर्मपुत्र को हिन्दी भाषा की सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म के लिए नेशनल अवार्ड दिया गया था। लेकिन फिल्म धर्मपुत्र की व्यावसायिक असफलता के बाद यश चौपड़ा ने राजनीतिक या सामाजिक फिल्म बनाने से तौबा कर लिया और इसके बाद फिर कोई राजनीतिक या सामाजिक फिल्म नहीं बनाई।