
अरुण श्रीवास्तव
केंद्र सरकार द्वारा लाए गए नए संविधान संशोधन ने राजनीतिक हलचल तेज़ कर दी है। इस प्रस्ताव में प्रावधान है कि यदि कोई मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री जेल जाता है तो 31वें दिन उसे पद छोड़ना होगा। विपक्ष का मानना है कि यह संशोधन उन्हें सत्ता से बाहर करने की चाल है, लेकिन सालों साल सत्ता में बने रहने का दावा करने वाली भाजपा ने प्रधानमंत्री पद को भी दायरे में लाकर अपने ही आत्मविश्वास पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
संशोधन में प्रधानमंत्री पद क्यों
केंद्र सरकार ने हाल में प्रस्तावित संविधान संशोधन में यह प्रावधान रखा है कि यदि कोई मुख्यमंत्री, मंत्री या प्रधानमंत्री को किसी आरोप में जेल जाता है, तो 31वें दिन उसे पद छोड़ना अनिवार्य होगा। इस संशोधन में मुख्यमंत्रियों के साथ प्रधानमंत्री का पद भी शामिल करना सबसे चौंकाने वाला बिंदु है।
विपक्ष को बाहर करने की रणनीति
वास्तविकता यह है कि यह संशोधन विपक्षी मुख्यमंत्रियों को वैधानिक तरीके से सत्ता से बाहर करने की कोशिश है। माना जा रहा है कि दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की मुख्यमंत्री पद को न छोड़ने की रणनीति की काट यह संशोधन लाया गया है। मोदी शाह का इरादा साफ है—यदि किसी विरोधी नेता पर आरोप लगाकर उसे जेल भेजा जाए, तो उसकी सरकार स्वतः संकट में आ जाएगी।
विश्लेषक इसे भाजपा की राजनीतिक विरोधियों को कमजोर करने का एक नया संवैधानिक हथियार मान रही है।
प्रधानमंत्री को क्यों जोड़ा गया?
यही प्रश्न सबसे अहम है। यदि निशाना केवल विपक्षी मुख्यमंत्री थे, तो प्रधानमंत्री का पद जोड़ने की जरूरत क्यों पड़ी?क्या यह कदम वास्तव में आत्मविश्वास में कमी का संकेत देता है?
भाजपा नेतृत्व पिछले एक दशक से यह दावा करता रहा है कि विपक्ष 20–30 साल तक सत्ता में नहीं लौट पाएगा। लेकिन प्रधानमंत्री पद को शामिल करने का कदम दर्शाता है कि पार्टी का आत्मविश्वास डगमगाने लगा है। बिहार में राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की पदयात्रा में उमड़ी भीड़ ने इस चिंता को और गहरा कर दिया है।
समानता का प्रतीकवाद
भाजपा इसे “समान नियम” के रूप में दिखाना चाहती है—कि कानून सब पर समान होगा।
लेकिन वास्तविकता में इसका वार विपक्ष पर अधिक घातक होगा, क्योंकि सत्ता वर्तमान में भाजपा के हाथों में है।
राजनीतिक जोखिम भी
प्रधानमंत्री पद को दायरे में लाने का एक और पहलू यह है कि यदि भविष्य में सत्ता परिवर्तन हुआ तो यही संशोधन विपक्ष के लिए गले की फांस बनेगा है। जाहिर है भविष्य में अगर जनता ने भाजपा को सत्ता से बाहर कि तब वह इसी संशोधन का उपयोग करेगी राजनीतिक अस्थिता लाने के लिए है। भाजपा का आज का यह अधिकार कल उसी के लिए घातक बन सकता है।
जनता का नजरिया
आम जनता में भ्रष्टाचार विरोधी भावना प्रबल है। पहली नज़र में यह संशोधन जनता को आकर्षक लग सकता है। लेकिन सवाल यह है कि—
क्या केवल जेल जाना ही दोष सिद्ध होने का प्रमाण है? लगभग 18 महीने जेल में काटने के बाद आम आदमी पार्टी के सत्येंद्र जैन को सीबीआई ने अपनी क्लोजर रिपोर्ट में क्लीन चिट दे दी है। भारतीय न्याय प्रक्रिया लंबी है और आरोप अक्सर राजनीतिक प्रतिशोध का हिस्सा भी होते हैं। ऐसे में केवल जेल की अवधि के आधार पर इस्तीफा लेना लोकतांत्रिक मूल्यों पर चोट माना जाएगा।
निष्कर्ष
प्रधानमंत्री पद को संविधान संशोधन में शामिल करना सतही तौर पर नैतिकता और समानता का प्रतीक लगता है, लेकिन असल में यह भाजपा के डगमगाते आत्मविश्वास और विपक्ष को वैधानिक रूप से कमजोर करने की रणनीति का संकेत है।
हाल के दिनों में विपक्षी दलों को जनता का बढ़ता समर्थन इस चिंता को और बढ़ा रहा है।
भाजपा यह जानती है कि जनता की नब्ज बदलने लगी है।संशोधन के सहारे वह अपने विरोधियों को ठिकाने लगाना चाहती है, लेकिन प्रधानमंत्री पद को शामिल कर उसने यह भी जाहिर कर दिया है कि उसका आत्मविश्वास अब पहले जैसा अटूट नहीं रहा।
