Last Updated on: 15 August 2025 12:36 AM

मनन कुमार
सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की पीठ द्वारा गुरुवार को दिए गए निर्देश बिहार में होने वाले आगामी विधानसभा चुनाव से पहले 11 याचिकाकर्ताओं के लिए बड़ी राहत लेकर आए हैं। इन याचिकाकर्ताओं ने चुनाव आयोग (ईसीआई) के उस विवादित निर्णय को चुनौती दी थी, जिसके तहत आयोग ने चुनाव से महज तीन महीने पहले “विशेष गहन पुनरीक्षण” (SIR) शुरू किया था।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने घंटों चली दलीलों के बाद न केवल चुनाव आयोग के वकील राकेश द्विवेदी की आपत्तियों को अंतरिम आदेश में खारिज किया, बल्कि ईसीआई को पालन करने के लिए छह स्पष्ट निर्देश भी दिए।

सुप्रीम कोर्ट के छह निर्देश:

  1. 65 लाख मतदाताओं की सूची सार्वजनिक करना: 2025 की मतदाता सूची में शामिल लेकिन ड्राफ्ट सूची में नाम न होने वाले करीब 65 लाख मतदाताओं की सूची प्रत्येक जिला निर्वाचन अधिकारी की वेबसाइट पर प्रदर्शित की जाए। यह सूची बूथवार हो, जिसे EPIC नंबर से भी खोजा जा सके, और नाम न जुड़ने का कारण भी बताया जाए।
  2. विस्तृत प्रचार: इस निर्णय को बिहार के व्यापक प्रसार वाले स्थानीय अखबारों में, टीवी-रेडियो चैनलों पर और सोशल मीडिया पर प्रसारित किया जाए।
  3. बूथ स्तर पर सूची का प्रदर्शन: प्रत्येक बूथ स्तर अधिकारी अपने ब्लॉक/पंचायत कार्यालय के नोटिस बोर्ड पर यह बूथवार सूची और नाम हटाने के कारण उपलब्ध कराएं, ताकि लोग मैनुअल रूप से भी देख सकें।
  4. दावा करने का अवसर: प्रभावित व्यक्ति अपना दावा आधार कार्ड की प्रति के साथ प्रस्तुत कर सकें।
  5. जिला-वार सॉफ़्ट कॉपी: ड्राफ्ट सूची से बाहर किए गए मतदाताओं की जिला-वार सॉफ़्ट कॉपी राज्य निर्वाचन अधिकारियों को दी जाए और बिहार के मुख्य निर्वाचन अधिकारी की वेबसाइट पर प्रकाशित की जाए।
  6. EPIC नंबर से ऑनलाइन खोज: ऐसी वेबसाइट लिस्ट उपलब्ध कराई जाए जिसे EPIC नंबर से खोजा जा सके।

याचिकाकर्ताओं और नेताओं की प्रतिक्रियाएं
ADR (एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स) के वकील प्रशांत भूषण ने फैसले की सराहना करते हुए कहा, “सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को पारदर्शिता दिखाने का आदेश देकर बड़ी पहल की है, जिसमें बिहार की मतदाता सूची से हटाए गए 65 लाख लोगों के नाम और कारण वेबसाइट पर डालने को कहा गया है।”

याचिका में शामिल योगेंद्र यादव ने भी अदालत की सराहना करते हुए कहा कि यह निर्णय वोटबंदी रोकने की दिशा में अहम है। कांग्रेस के संचार विभाग के महासचिव जयराम रमेश ने इसे “स्पष्ट, सख्त और साहसी फैसला” बताते हुए “आशा की किरण” करार दिया और इसे पहला बड़ा कदम बताया।

हालांकि आदेश में कांग्रेस को राहत मिली है, फिर भी पार्टी 17 अगस्त से “वोट अधिकार यात्रा” निकालने की योजना पर कायम है। इस बार विपक्ष के नेता राहुल गांधी 16 दिन में 1300 किलोमीटर की यात्रा करेंगे।

दूसरी ओर, भाजपा ने इस आदेश पर ज्यादा प्रतिक्रिया नहीं दी। हालांकि, भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने कहा कि यह आदेश कांग्रेस के लिए निराशा का कारण है क्योंकि वह बिहार में SIR को रोकने में नाकाम रही।

पटना, 14 अगस्त 2025 – बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) पर सुप्रीम कोर्ट के ताज़ा आदेश ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है। राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के नेता और बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने इस आदेश को बीजेपी और उसके सहयोगियों की “मताधिकार छीनने की साजिश” पर करारा प्रहार बताया है।

तेजस्वी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का अंतरिम आदेश विपक्ष के लगातार संघर्ष का परिणाम है, जिसने यह साफ कर दिया कि बिहार में मतदाताओं के नाम काटने और मतदाता सूची में गड़बड़ी की प्रक्रिया में पारदर्शिता लानी होगी। उन्होंने ‘इंडिया’ गठबंधन के नेताओं—राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे, ममता बनर्जी, हेमंत सोरेन और शरद पवार—का आभार जताते हुए कहा कि यह “लोकतंत्र की जीत” है।

अदालत के अहम निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने निर्वाचन आयोग को आदेश दिया है कि:

  1. 65 लाख मतदाताओं के नाम हटाने के कारण बूथ स्तर पर सार्वजनिक किए जाएं।
  2. आधार कार्ड को मान्यता दी जाए।
  3. लोगों को प्रक्रिया की जानकारी देने के लिए विज्ञापन जारी किए जाएं।

तेजस्वी यादव ने आरोप लगाया कि एसआईआर के बहाने बीजेपी चुनावी धांधली कर रही है और निर्वाचन आयोग “बीजेपी की बी टीम” की तरह काम कर रहा है। उन्होंने दावा किया कि एनडीए के कई बड़े नेताओं, सांसदों, विधायकों और यहां तक कि मंत्रियों के पास भी अलग-अलग निर्वाचन क्षेत्रों में एक से अधिक एपिक आईडी हैं।

उन्होंने पहले भी जेडीयू के एमएलसी दिनेश सिंह और उनकी पत्नी व सांसद वीणा देवी के पास दो-दो अलग मतदाता पहचान पत्र होने का आरोप लगाया था। इस पर निर्वाचन पदाधिकारी ने दोनों को नोटिस जारी कर 16 अगस्त तक जवाब मांगा है।

तेजस्वी ने कहा, “हम एसआईआर के खिलाफ नहीं थे, बल्कि उस गुप्त प्रक्रिया और डाटा छिपाने के खिलाफ थे, जिसे आयोग लागू कर रहा था। अब अदालत ने हमारी मांगों को मानते हुए पारदर्शिता सुनिश्चित की है, और यह जनता की जीत है।”