आदाब !
उम्मीद है आप सब खैरियत से होंगें और अपने मज़हबी और समाजी कामो में मशग़ुल होंगे । लेकिन क्या आप ने कभी सोचा है कलाम साहेब की बरसी और यौम ए पैदाइश मनाने के बारे में ? उन्हें बड़ा प्लान तैयार करना चहिये। मुस्लिम संगठन व् संस्थाएं इसके लिए आगे आएं।
अपने कौम के बच्चे को बताएं अभावों का शिकार और मदरसे में पढ़ने वाला बच्चा कैसे मुल्क की आँखों का तारा बन जाता है। कलाम मदरसे में पढ़ने के बावजूद देश दुनिया के नामवर साइंटिस्ट बने। इस्लाम के नाम हंगामा मचाने वाले ज़रा ध्यान दें।
कलाम साहेब के घर में खालिस इस्लामिक माहौल था। उनके पिता रामेश्वरम की मस्जिद के इमाम थे। घर चलाने के लिए बोट का धंधा करते थे। माँ घरेलू महिला थीं, पर रोज़ा नमाज़ की पाबंद। बड़ी बहन भी इस्लाम के रास्ते पर चलने वाली थीं। उन्हों ने ही अपने ज़ेवर बेच कर कलाम को पढ़ने मद्रास भेजा था। कलाम के बड़े भाई भी अपने माँ बाप के नक़्शे कदम पर चलने वालों में हैं। कलाम जब राष्ट्रपति थे उन्हों ने हज यात्रा की थी।
कलाम की माँ उन्हें सुबह चार बजे जगा देती थी। स्नान के बाद मैथ के ट्यूशन के लिए घर से निकल जाते थे। वहां से लौटने पर मदरसा, फिर स्टेशन से लाकर शहर में अख़बार बांटने का काम । इससे फ़ारिग़ होने पर नाश्ता के बाद स्कूल। कलाम पंज वक्ती नमाज़ी तो नहीं थे, पर इसका मौका भी गंवाते थे । खासकर फजिर की नमाज़ नहीं छोड़ते थे। राष्ट्रपति भवन में उन्होंने एक बार आलमी इस्लामिक कॉन्फ्रेंस आयोजित कराया था। यह बात मुझे कलाम के राष्ट्रपति रहने के दौरान उनके मीडिया सलाहकार रहे S M Khan ने एक मुलाकात में बताई थी।
क़ुरआनशरीफ पर भी उनकी खासी पकड़ थी। कलाम की लिखी किताबें पढ़ें। इसका पता चल जाएगा।उनकी लगभग हर किताब में क़ुरआन हदीस का हवाला है। मुसलमानों के लिए अफसोसनाक पहलू है कि उन्होंने कभी कलाम को समझने की कोशिश नहीं की। दावे से कह सकता हूँ। कलाम ने कितनी किताबें लिखी हैं। उनके नाम क्या हैं। इन सवालों का जवाब देश का एक परसेंट पढ़ा लिखा मुसलमान भी नहीं दे सकता। अक्षरधाम के मुख़्य गुरु जी पर उनकी लिखी पुस्तक में बार बार पाक आयतों का ज़िक्र है। कलाम साहेब किसी बड़े मसले में फंसत पर हल नमाज़ में ही तलाशते थे। एक बार जब बिहार सरकार को बर्खास्त करने का मसला सामने आया तो कॉग्रेस के रवैय्ये से खिन्न होकर उन्होंने राष्ट्रपति पद त्यागने का मन बना लिया। उस दिन उप राष्ट्रपतिभैरो सिंह शेखावत कहीं बहार थे।
कलाम को बताया गया कि वह अगले दिन आएंगे। भारी तनाव के बीच सोने चले गए। सुबह फजिर की नमाज़ के बाद उन्होंने इस्तीफा देने का इरादा मुल्तवी कर दिया। अपनी पुस्तक में लिखते है। उन्हें लगा उनके इस कदम से कांग्रेस विवादों में घिर जायगी। लोगों को उनके बारे में भी बोलने का मौका मिल जाएगा । वह ऐसा नहीं चाहते थे।
कभी उन्होंने नाजायज़ कमाई नहीं की। राष्ट्रपति भवन छोड़ते वक्त उनके पास मात्र चंद पैंट, शर्ट, कोर्ट और कुछ किताबें ही थीं। पूरी जिंदगी फक्कड़पन में गुज़ार दी। वह सूफी सिफत इंसान थे। इतना कुछ इस लिए बता रहा हूँ कि मुसलमानों ने उनके जिन्दा रहते उनकी कद्र नहीं की। उन्हें अपना रहनुमा मानते आज कौम के बच्चों के आगे बढ़ने की रफ़्तार कुछ ज्यादा तेज होती। कोई बात नहीं। अब भी वक़्त नहीं गया है। बरसी और जन्मदिन के बहाने कलाम को याद कर कौम के बच्चों को सही रस्ते का महत्त्व समझाया जा सकता है। अब भी सोंच लें।
आपका
एम ए हाशमी
लेखक कलाम पर शोध करने वाली संस्था से जुड़े हैं।