सर्वोच्च अदालत ने इस संबंध में 15 दिशा निर्देश भी जारी किए-

न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ ने चेतावनी दी कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का उल्लंघन करने पर अवमानना ​​की कार्यवाही की जाएगी।

AMN /WEB DESK

नई दिल्ली: न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ ने अपराध के आरोपी लोगों के खिलाफ बुलडोजर कार्रवाई को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुनाया। कई राज्यों में जोर पकड़ने वाली इस प्रवृत्ति को ‘बुलडोजर न्याय’ कहा जाता है। राज्य के अधिकारियों ने अतीत में कहा है कि ऐसे मामलों में केवल अवैध संरचनाओं को ध्वस्त किया गया था। लेकिन कार्रवाई की न्यायेतर प्रकृति को उजागर करते हुए अदालत के समक्ष कई याचिकाएं दायर की गईं।

सुप्रीम कोर्ट ने आरोपियों के खिलाफ बुलडोजर एक्शन पर रोक लगाने की मांग करने वाली याचिकाओं पर बुधवार को कहा कि उसने संविधान में दिए गए उन अधिकारों को ध्यान में रखा है, जो राज्य की मनमानी कार्रवाई से लोगों को सुरक्षा प्रदान करते हैं।

शीर्ष कोर्ट ने कहा कि कानून का शासन यह सुनिश्चित करता है कि लोगों को यह पता हो कि उनकी संपत्ति को बिना किसी उचित कारण के नहीं छीना जा सकता।’अधिकारियों को जवाबदेही के लिए जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए’कोर्ट ने यह भी कहा कि उसने शक्ति के विभाजन पर विचार किया है और यह समझा है कि कार्यपालिका और न्यायपालिका अपने-अपने कार्यक्षेत्र में कैसे काम करती हैं। न्यायिक कार्यों को न्यायपालिका को सौंपा गया है और न्यायपालिका की जगह पर कार्यपालिका को यह काम नहीं करना चाहिए।कोर्ट ने आगे कहा, अगर कार्यपालिका किसी व्यक्ति का घर केवल इस वजह से तोड़ती है कि वह आरोपी है, तो यह शक्ति के विभाजन के सिद्धांत का उल्लंघन है।कोर्ट ने कहा कि जो सरकारी अधिकारी कानून को अपने हाथ में लेकर इस तरह के अत्याचार करते हैं, उन्हें जवाबदेही के लिए जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए।

‘किसी निर्दोष को घर से वंचित करना पूरी तरह असंवैधानिक’सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कार्यपालिका (सरकारी अधिकारी) किसी व्यक्ति को दोषी नहीं ठहरा सकती और न ही वह जज बन सकती है, जो किसी आरोपी की संपत्ति तोड़ने पर फैसला करे। कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर किसी व्यक्ति को अपराध का दोषी ठहराने के बाद उसके घर को तोड़ा जाता है, तो यह भी गलत है, क्योंकि कार्यपालिका का ऐसा कदम उठाना अवैध होगा और कार्यपालिका अपने हाथों में कानून ले रही होगी। कोर्ट ने कहा कहा कि आवास का अधिकार एक मौलिक अधिकार है और किसी निर्दोष व्यक्ति को इस अधिकार से वंचित करना पूरी तरह असंवैधानिक होगा।सुप्रीम कोर्ट ने जारी किया था अंतरिम आदेशइससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने एक अंतरिम आदेश जारी किया था, जिसमें अधिकारियों को निर्देश दिया गया था कि जब तक कोर्ट से अगला आदेश न मिले, तब तक वे किसी भी तरह के विध्वंस अभियान को रोंके। हालांकि, यह आदेश अवैध निर्माणों खासतौर पर सड़क और फुटपाथ पर बने धार्मिक ढांचों पर लागू नहीं था। कोर्ट ने यह भी कहा था कि सार्वजनिक सुरक्षा सर्वोपरि है और किसी भी धार्मिक संरचना को सड़कों के बीच में नहीं बनना चाहिए, क्योंकि यह सार्वजनिक मार्गों में रुकावट डालता है।सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर गौर किया था कि किसी व्यक्ति पर अपराध का आरोप लगने या उसे दोषी ठहराए जाने के आधार पर उसके घरों और दुकानों को बुलडोजर से तोड़ने का कोई आधार नहीं है। जस्टिस बी.आर. गवाई ने कहा था, हम एक धर्म निरपेक्ष देश हैं, जो भी हम तय करते हैं, वह सभी नागरिकों के लिए करते हैं।

किसी एक धर्म के लिए अलग कानून नहीं हो सकता। उन्होंने यह भी कहा था कि किसी भी समुदाय के सदस्य के अवैध निर्माण को हटाया जाना चाहिए, चाहे वह किसी भी धर्म या विश्वास का हो।संयुक्त राष्ट्र ने जताई थी आपत्तिइससे पहले संयुक्त राष्ट्र के प्रतिवेदक (संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद द्वारा नियुक्त विशेषज्ञ) ने सितंबर में शीर्ष से कहा था कि सजा के तौर पर किए जाने वाले विध्वंस को मानवाधिकारों का गंभीर उल्लंघन माना जा सकता है। उन्होंने कहा था कि ऐसी कार्रवाइयां अल्पसंख्यक समुदायों के खिलफ अपमानजनक व्यवहार के रूप में हो सकती हैं और यह राज्य के हाथों जमीन हड़पने का एक तरीका बन सकती हैं।

सर्वोच्च अदालत ने इस संबंध में 15 दिशा निर्देश भी जारी किए-


1. अगर बुलडोजर एक्शन का ऑर्डर दिया जाता है तो इसके खिलाफ अपील करने के लिए वक्त दिया जाना चाहिए।
2. रातों-रात घर गिरा दिए जाने पर महिलाएं-बच्चे सड़कों पर आ जाते हैं, ये अच्छा दृश्य नहीं होता। उन्हें अपील का वक्त नहीं मिलता।
3. हमारी गाइडलाइन अवैध अतिक्रमण, जैसे सड़कों या नदी के किनारे पर किए गए अवैध निर्माण के लिए नहीं है।
4. शो कॉज नोटिस के बिना कोई निर्माण नहीं गिराया जाएगा।
5. रजिस्टर्ड पोस्ट के जरिए कंस्ट्रक्शन के मालिक को नोटिस भेजा जाएगा और इसे दीवार पर भी चिपकाया जाए।
6. नोटिस भेजे जाने के बाद 15 दिन का समय दिया जाए।
7. कलेक्टर और डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट को भी जानकारी दी जाए।
8. डीएम और कलेक्टर ऐसी कार्रवाई पर नजर रखने के लिए नोडल अफसर की नियुक्ति करें।
9. नोटिस में बताया जाए कि निर्माण क्यों गिराया जा रहा है, इसकी सुनवाई कब होगी, किसके सामने होगी। एक डिजिटल पोर्टल हो, जहां नोटिस और ऑर्डर की पूरी जानकारी हो।
10. अधिकारी पर्सनल हियरिंग करें और इसकी रिकॉर्डिंग की जाए। फाइनल ऑर्डर पास किए जाएं और इसमें बताया जाए कि निर्माण गिराने की कार्रवाई जरूरी है या नहीं। साथ ही यह भी कि निर्माण को गिराया जाना ही आखिरी रास्ता है।
11. ऑर्डर को डिजिटल पोर्टल पर दिखाया जाए।
12. अवैध निर्माण गिराने का ऑर्डर दिए जाने के बाद व्यक्ति को 15 दिन का मौका दिया जाए, ताकि वह खुद अवैध निर्माण गिरा सके या हटा सके। अगर इस ऑर्डर पर स्टे नहीं लगाया गया है, तभी बुलडोजर एक्शन लिया जाएगा।
13. निर्माण गिराए जाने की कार्रवाई की वीडियोग्राफी की जाए। इसे सुरक्षित रखा जाए और कार्रवाई की रिपोर्ट म्युनिसिपल कमिश्नर को भेजी जाए।
14. गाइडलाइन का पालन न करना कोर्ट की अवमानना मानी जाएगी। इसका जिम्मेदार अधिकारी को माना जाएगा और उसे गिराए गए निर्माण को दोबारा अपने खर्च पर बनाना होगा और मुआवजा भी देना होगा।
15. हमारे डायरेक्शन सभी मुख्य सचिवों को भेज दिए जाएं।

इससे पहले पिछली तीन सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने अलग-अलग तारीखों में अलग-अलग टिप्पणिया की थीं। 17 सितंबर 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि 1 अक्टूबर तक बुलडोजर एक्शन नहीं होगा। अगली सुनवाई तक देश में एक भी बुलडोजर कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए। जब केंद्र ने इस ऑर्डर पर सवाल उठाया कि संवैधानिक संस्थाओं के हाथ इस तरह नहीं बांधे जा सकते हैं। तब जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन ने कहा था कि अगर कार्रवाई दो हफ्ते रोक दी जाएगी तो आसमान नहीं फट पड़ेगा।

12 सितंबर 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि बुलडोजर एक्शन देश के कानूनों पर बुलडोजर चलाने जैसा है। अगर कोई सिर्फ आरोपी है तो प्रॉपर्टी गिराने की कार्रवाई कैसे की जा सकती है? सुप्रीम कोर्ट जमीयत-उलेमा-ए-हिंद की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इसमें आरोप लगाया गया था कि बीजेपी शासित राज्यों में मुसलमानों को निशाना बनाया जा रहा है और बुलडोजर एक्शन लिया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी का बेटा आरोपी हो सकता है, लेकिन इस आधार पर पिता का घर गिरा देना! यह कार्रवाई का सही तरीका नहीं है।

2 सितंबर 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि भले ही कोई दोषी क्यों न हो, फिर भी कानूनी प्रक्रिया का पालन किए बिना ऐसा नहीं किया जा सकता। हालांकि बेंच ने यह भी स्पष्ट किया था कि वह सार्वजनिक सड़कों पर किसी भी तरह के अतिक्रमण को संरक्षण नहीं देगा। लेकिन, इस मामले से जुड़ी पार्टियां सुझाव दें। हम पूरे देश के लिए गाइडलाइन जारी कर सकते हैं।

दरअसल, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में सरकार ने कई आरोपियों के घर बुलडोजर से तोड़ दिए थे। इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दाखिल की गई थीं, जिनमें प्रॉपर्टी तोड़ने को लेकर गाइडलाइंस बनाने की मांग की गई थी।

मौलाना अरशद मदनी ने बुलडोजर कार्रवाई पर रोक लगाने वाले इस फैसले का स्वागत किया

जमीयत उलमा-ए-हिंद सदर मौलाना अरशद मदनी ने गैरकानूनी बुलडोजर कार्रवाई पर रोक लगाने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि उम्मीद है की सुप्रीम कोर्ट के सख्त निर्देशों से बुलडोजर कार्रवाई पर लगाम लगेगी।

यह अहम फैसला आज सुप्रीम कोर्ट ने जमीयत उलमा-ए-हिंद की ओर से गैरकानूनी बुलडोजर कार्रवाई को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनाया।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि बुलडोजर चलाकर किसी का घर गिराना किसी अपराध की सजा नहीं है। सरकार जज बन कर बुलडोजर चलाकर किसी का घर गिराने का फैसला नहीं दे सकती। कोई चीज वैध है या अवैध, इसका निर्णय न्यायपालिका ही करेगी।

यह अहम फैसला आज सुप्रीम कोर्ट ने जमीयत उलमा-ए-हिंद की ओर से गैरकानूनी बुलडोजर कार्रवाई को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनाया। मौलाना अरशद मदनी ने गैरकानूनी बुलडोजर कार्रवाई पर रोक लगाने वाले इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि उम्मीद है की सुप्रीम कोर्ट के सख्त निर्देशों से बुलडोजर कार्रवाई पर लगाम लगेगी।