
नई दिल्ली
जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना सैयद अरशद मदनी को भी आज नई दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड द्वारा आयोजित औक़ाफ़ बचाओ सम्मेलन को संबोधित करना था, लेकिन खराब स्वास्थ्य के कारण वे चाहकर भी इस महत्वपूर्ण कॉन्फ्रेंस में शामिल नहीं हो सके। इसलिए उनका लिखित संदेश पढ़ा गया जिसमें उन्होंने एक बार फिर कहा कि वक़्फ़ की सुरक्षा की लड़ाई हमारे अस्तित्व की लड़ाई है और वक़्फ़ संशोधन कानून हमारे धर्म में सीधी दखलअंदाजी है। वक़्फ़ को बचाना हमारा धार्मिक कर्तव्य है। मुसलमान हर चीज़ से समझौता कर सकता है लेकिन अपनी शरीअत में किसी भी तरह की दखलअंदाजी को बर्दाश्त नहीं कर सकता। इसलिए हम वक़्फ़ कानून 2025 को पूरी तरह से खारिज करते हैं। खुशी की बात यह है कि इस लड़ाई में पूरा राजनीतिक विपक्ष और देश की सभी मिल्ली तंजीमें, संस्थाएं और लोग एकजुट हैं। हमें अल्लाह पर पूरा भरोसा है कि अगर हम मिलकर यह लड़ाई लड़ेंगे तो सफलता हमारा मुक़द्दर होगी। और अगर हम एकता और सामूहिकता के साथ आगे बढ़ते हैं, तो हमें कोई ताक़त या सरकार नज़रअंदाज़ नहीं कर सकती।
मीडिया के एक सवाल के जवाब में मौलाना मदनी ने कहा कि केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री ने एक टीवी चैनल पर वक्फ संशोधन अधिनियम के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट के बारे में जो कुछ कहा, उससे स्पष्ट है कि वह सुप्रीम कोर्ट की स्वतंत्रता को प्रभावित करके फैसले को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं। उनका बयान कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करेगा और अगर कल को सरकार ने न्यायपालिका में हस्तक्षेप किया तो यह अच्छा नहीं होगा। शक्तियों का वितरण कैसे किया जाएगा? यह अच्छी तरह से समझाया गया है. यह न्यायाधीशों पर दबाव डालने का एक दुखद प्रयास है। मौलाना मदनी ने कहा कि इससे पहले कभी किसी सरकार ने न्यायपालिका के मामलों में हस्तक्षेप करने की कोशिश नहीं की। न्यायपालिका एक स्वतंत्र संस्था है और इसका मिशन न्याय प्रदान करना है। अतीत में हमने देखा है कि जब इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के निर्वाचन को खारिज कर दिया तो उन्होंने इस्तीफा दे दिया था।
लेकिन यहां दबे भाषा में शक्तियों के बंटवारे की बात करके न्यायपालिका को प्रभावित करने का प्रयास किया जा रहा है। आश्चर्य की बात है कि केंद्रीय मंत्री से लेकर संसद सदस्य तक हमारे धर्म में हस्तक्षेप करने के साथ-साथ न्यायपालिका की गरिमा को भी ठेस पहुंचा रहे हैं और उसकी स्वतंत्रता को चुनौती दे रहे हैं, जो संविधान की सर्वोच्चता के लिए गंभीर चुनौती है। संविधान की सर्वोच्चता लोकतंत्र की आधारशिला है; यदि इसे अपनी जगह से हिला दिया गया तो लोकतंत्र की यह महान इमारत भारत में खड़ी नहीं रह सकेगी।
उन्होंने कहा कि हाल के दिनों में जिन परिस्थितियों में लोकतांत्रिक मूल्यों का हनन हुआ है और संविधान की सर्वोच्चता को समाप्त किया गया है, ऐसे में सत्ता में बैठे लोग कुछ भी कर सकते हैं। हालांकि, उन्होंने कहा कि उन्हें पूरा विश्वास है कि न्यायपालिका हमेशा की तरह दबाव से ऊपर उठकर संविधान के आलोक में इस मामले की सुनवाई निष्पक्षता से करेगी और संविधान की सर्वोच्चता को बनाए रखेगी।
उन्होंने कहा कि हम एक ज़िंदा क़ौम हैं और ज़िंदा क़ौमें मायूसी का शिकार होने के बजाय अपनी समझदारी, सूझबूझ और रणनीति से सफलता की एक नई तारीख रचती रही हैं। अगर संविधान को बचाना है, तो इस वक़्फ़ कानून 2025 को पूरी तरह से खत्म करना होगा, क्योंकि हमारी नज़र में संविधान लोकतंत्र की बुनियाद का वह पत्थर है जिसे अगर हिला दिया गया, तो लोकतंत्र की यह शानदार इमारत खड़ी नहीं रह सकेगी। इसलिए हम हमेशा कहते हैं कि “संविधान बचेगा तो देश बचेगा”, संविधान की सर्वोच्चता समाप्त हुई तो लोकतंत्र भी जिंदा नहीं रह पाएगा। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में देश में जो एकतरफा राजनीति की जा रही है, उसने संविधान के अस्तित्व पर सवाल खड़ा कर दिया है।
ज़ाहिरी तौर पर संविधान की कसम खाई जाती है और उसका गुणगान भी किया जाता है, लेकिन सच्चाई यह है कि संविधान के आदेशों की खुल्लम-खुल्ला अवहेलना करते हुए देश के अल्पसंख्यकों, खासकर मुसलमानों को नए नए हथकंडों से परेशान किया जा रहा है। अब इसमें कोई शक नहीं रह गया है कि देश पूरी तरह फासीवाद की गिरफ़्त में है। ऐसे में न सिर्फ हमारी बल्कि देश के उन सभी नागरिकों की जिम्मेदारी है जो संविधान और लोकतंत्र में विश्वास रखते हैं, कि वे संविधान को बचाने के लिए आगे आएं। क्योंकि अगर संविधान की सर्वोच्चता समाप्त हो गई तो फिर लोकतंत्र भी जिंदा नहीं रह सकेगा।
मौलाना मदनी ने आगे कहा कि हम सरकार को यह बता देना चाहते हैं कि मुसलमान किसी भी कीमत पर इस वक़्फ़ कानून का समर्थन नहीं कर सकता, क्योंकि यह हमारा धार्मिक मामला है। और मुसलमान हर चीज़ से समझौता कर सकता है लेकिन अपनी शरीअत में दखलअंदाजी बर्दाश्त नहीं कर सकता। यह कहां का इंसाफ़ है कि चीज़ हमारी हो और रखवाली कोई और करे? आज इस सम्मेलन से उठने वाली आवाज़ सत्ता के गलियारों से टकराएगी और कहेगी कि मुसलमान वक़्फ़ कानून को पूरी तरह से खारिज करते हैं। संविधान, सेकुलरिज्म, लोकतंत्र और वक़्फ़ की हिफाज़त के लिए पूरी सफलता तक हमारी लोकतांत्रिक और कानूनी जद्दोजहद जारी रहेगी। सुप्रीम कोर्ट द्वारा वक़्फ़ कानून की कुछ धाराओं पर रोक लगाना एक सराहनीय कदम है। यह रोक कार्रवाई पर नहीं बल्कि संविधान के खिलाफ काम करने वालों की मंशा और इरादो पर है। हालांकि, पूरी सफलता तक हमारी कोशिशें जारी रहेंगी।
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि याद रखिए, हमारी सफलता इस बात में है कि हमारी पूरी तहरीक शांतिपूर्ण और कानून के दायरे में रहे। हम प्रयास करें कि हमारे कार्यक्रमों में इंसाफ़ पसंद देशवासियों की एक बड़ी संख्या हमेशा मौजूद रहे। हम इस मुद्दे को कभी भी हिंदू-मुस्लिम नहीं बनने देंगे, क्योंकि यह लड़ाई हिंदू-मुस्लिम के बीच नहीं, बल्कि साम्प्रदायिकता और सेकुलरिज्म के बीच है। हम देख रहे हैं कि इसे हिंदू-मुस्लिम मुद्दा बना देने की संगठित साज़िश की जा रही है। वक़्फ़ को लेकर लंबे समय से इस तरह का नकारात्मक प्रचार किया गया और अब भी किया जा रहा है। इसका उद्देश्य यही है कि देश की बहुसंख्यक आबादी को वक़्फ़ के बहाने मुसलमानों के खिलाफ खड़ा कर दिया जाए। इसलिए हमारी पूरी कोशिश होनी चाहिए कि बहुसंख्यकों के दिमाग में वक़्फ़ को लेकर जो गलत बातें भरी जा रही हैं, उन्हें दूर करने की भरपूर कोशिश करें।
आखिर में उन्होंने कहा कि जमीयत उलमा-ए-हिंद ने अपने संवैधानिक अधिकार का इस्तेमाल करते हुए वक़्फ़ कानून 2025 के खिलाफ अदालत का दरवाज़ा खटखटाया। सुप्रीम कोर्ट ने इस मसले को जिस संजीदगी से लिया, उससे साफ जाहिर होता है कि अदालत इसे एक संवेदनशील मामला मानती है, और वक़्फ़ संशोधन कानून एक असंवैधानिक क़दम है। उम्मीद है कि अंतिम निर्णय, इंशा अल्लाह, संविधान की सर्वोच्चता को बरकरार रखेगा।
अफसोस की बात है कि देश को अब इस हालत में पहुंचा दिया गया है कि इंसाफ़ की तलाश को भी धार्मिक चश्मे से देखा जाने लगा है, जबकि देश का संविधान और कानून हर नागरिक के लिए समान है और सभी को समान अधिकार देता है।