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अनीस दुर्रानी जिन्हों ने कांग्रेस के लिए ज़िंदगी वक्फ कर दी थी

शकील अख्तर

सनिचर शाम दिल्ली गेट क़ब्रिस्तान में अनीस भाई की आखिरी रस्में पूरी हो गईं। अनीस दुर्रानी 45 साल से ज्यादा कांग्रेस की राजनीति में रहे। सनिचर सुबह इंतकाल हुआ था। अस्पताल में। ब्रेन हेमरेज के बाद भर्ती कराया गया था। 75 साल के थे।
उन्हें आखिरी विदाई देने बड़ी तादाद में उनके चाहने वाले आए थे। जो सैंकड़ों संख्या में थे। मगर कांग्रेस के नेता गिनती के थे। दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और मप्र के इन्चार्ज जयप्रकाश अग्रवाल, कांग्रेस के माइनरटी डिपार्टमेंट के अध्यक्ष और सांसद इमरान प्रतापगढ़ी, माइनरटी डिपार्टमेंट के पूर्व अध्यक्ष इमरान किदवई, दिल्ली प्रदेश माइनरटी डिपार्टमेंट के पूर्व अध्यक्ष जावेद मिर्जा के अलावा पूर्व सांसद मीम अफजल भी थे जो अनीस दुर्रानी के बहनोई भी हैं। कांग्रेस के और कोई नेता नहीं दिखे। कुछ पत्रकार जरूर थे।

दुर्रानी साहब कांग्रेस के मीडिया डिपार्टमेंट के शुरुआती पदाधिकारियों में रहे हैं। उस वक्त मनमोहन सिंह, प्रणब मुखर्जी जैसे वरिष्ठ नेताओं के साथ मीडिया का काम संभाला। अभी कुछ साल पहले तक वह सारे अखबारों की एक रिपोर्ट (समरी) बनाकर सोनिया गांधी (कांग्रेस अध्यक्ष) और महासचिवों तक पहुंचाया करते थे। उर्दू अखबारों में उनके नियमित कॉलम छपते थे।
हज कमेटी के चेयरमैन और ऑल इंडिया कांग्रेस के माइनरटी डिपार्टमेंट के सेक्रेटरी रहे। तबीयत खराब थी मगर अभी कुछ दिन पहले ही कांग्रेस हेड क्वार्टर आए थे। मीडिया डिपार्टमेंट के इंचार्ज जयराम रमेश द्वारा दिए गए लंच में। अभी तो कोरोना के इस दौर में सब कुछ अस्त व्यस्त हो गया था मगर उससे पहले कांग्रेस की हर प्रेस कॉन्फ्रेंस में हर फंक्शन में मौजूद होते थे। अजमेर शरीफ में कांग्रेस अध्यक्ष की तरफ से चादर चढ़ाने वे ही जाया करते थे। कांग्रेस अध्यक्ष के अफ्तार के इंतजाम में भी उनकी मुख्य भूमिका होती थी। पार्लियामेंट के सेशन में मौजूद रहते थे। पत्रकारों से बहुत अच्छे ताल्लुकात थे। सबके दोस्त थे। जब पुराने दिल्ली की खाने की दावत करते थे तो पूछते थे कि और किस को बुलाना है। अगर उनका दोस्त पत्रकार किसी का नाम बताता था तो उसे बहुत खूलूस और प्यार से बुलाते थे।

बहुत अच्छे दोस्त थे और दिल के बहुत भले। राजनीतिक दांव पेंचों में नहीं पड़ते थे इसलिए दो बार विधानसभा का टिकट मिलते मिलते रह गया। दिल्ली में कांग्रेस का 15 साल शासन रहा। पुरानी दिल्ली में अनीस दुर्रानी ने बहुत काम किया था। जाकिर हुसैन कॉलेज के छात्र नेता थे। मगर दिल्ली में माइनरटी के कई नेता बन गए और जो नेता थे अनीस दुर्रानी जैसे वह पीछे रह गए। जबकि अनीस भाई कांग्रेस के दोनों बड़े मुस्लिम फेस अहमद पटेल और गुलाम नबी आजाद के नजदीकी रहे। दोनों ने उनसे बहुत काम लिए मगर ज्यादा कुछ दिया नहीं।

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