7 जून 1952 को विराटनगर में जन्मी सुशीला कार्की का जीवन न्यायिक सेवा और लोकतांत्रिक आंदोलन से गहराई से जुड़ा रहा है। उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की डिग्री और 1978 में त्रिभुवन विश्वविद्यालय से एलएलबी की डिग्री हासिल की।

काठमांडू, 12 सितम्बर

नेपाल ने ऐतिहासिक पल देखा जब पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की को देश की पहली महिला प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया। उन्होंने केपी शर्मा ओली के इस्तीफे के बाद अंतरिम सरकार की कमान संभाली। ओली को भारी भ्रष्टाचार विरोधी प्रदर्शनों के दबाव में पद छोड़ना पड़ा। ये आंदोलन मुख्य रूप से नेपाल की जेन-जेड (Gen-Z) पीढ़ी के युवाओं द्वारा चलाया जा रहा है, जो पारदर्शिता और जवाबदेही की मांग कर रहे हैं।

कार्की की नियुक्ति राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल, सेना प्रमुख अशोक राज सिग्देल और जेन-जेड आंदोलनकारियों के बीच सहमति का परिणाम है। द काठमांडू पोस्ट के अनुसार, कार्की का चयन जेन-जेड नेताओं द्वारा ऑनलाइन प्लेटफॉर्म डिस्कॉर्ड पर कराए गए जनमत-संग्रह में हुआ, जिसमें उन्हें सबसे अधिक वोट मिले। आंदोलनकारियों का मानना है कि वे विश्वसनीय और स्वतंत्र छवि वाली ऐसी शख्सियत हैं, जो देश को अस्थिरता से निकाल सकती हैं।

7 जून 1952 को विराटनगर में जन्मी सुशीला कार्की का जीवन न्यायिक सेवा और लोकतांत्रिक आंदोलन से गहराई से जुड़ा रहा है। उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की डिग्री और 1978 में त्रिभुवन विश्वविद्यालय से एलएलबी की डिग्री हासिल की। 1979 में वकालत शुरू करने के बाद वे धीरे-धीरे देश की प्रमुख विधिवेत्ता बनीं। 2009 में उन्हें सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किया गया और जुलाई 2016 में वे नेपाल की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश बनीं। अपने कार्यकाल में उन्होंने कई महत्वपूर्ण भ्रष्टाचार मामलों में कड़े फैसले दिए और न्यायिक स्वतंत्रता को सर्वोच्च प्राथमिकता दी।

हालाँकि उन्हें नेपाली कांग्रेस कोटे से सर्वोच्च न्यायालय में नियुक्ति मिली थी, लेकिन वे कभी राजनीतिक दबाव में नहीं झुकीं। जून 2017 में उनके कार्यकाल का अंत तब हुआ जब उन पर विवादित महाभियोग प्रस्ताव लाया गया, जिसे राजनीतिक प्रतिशोध माना गया। इसके बावजूद, उनकी ईमानदार और साहसी छवि बरकरार रही।

कार्की का जीवन सादगी और गांधीवादी मूल्यों से प्रेरित माना जाता है। उनके पति दुर्गा सुबेदी नेपाली कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं, जिन्होंने 1973 में पंचायत विरोधी आंदोलन के लिए विमान अपहरण की ऐतिहासिक घटना में भाग लिया था।

पूर्व सर्वोच्च न्यायालय न्यायाधीश आनंद मोहन भट्टराई ने कहा, “वे सच्ची गांधीवादी हैं। उनका जीवन और विचारधारा दोनों सादगी और ईमानदारी से भरे हैं। उन्होंने इतने बड़े चुनौतीपूर्ण समय में जिम्मेदारी उठाई है, यह उनके साहस को दर्शाता है। मुझे पूरा विश्वास है कि वे इस संक्रमण काल में लोकतांत्रिक सिद्धांतों के साथ नेतृत्व करेंगी।”

वरिष्ठ अधिवक्ता और काठमांडू विश्वविद्यालय स्कूल ऑफ लॉ के प्रोफेसर बिपिन अधिकारी ने कहा कि कार्की की सबसे बड़ी पूंजी उनकी ईमानदारी है। “उन्होंने हमेशा निष्ठा और साहस के साथ जीवन जिया है। अब पूरे देश को उनसे वैसी ही ईमानदारी शासन में देखने की उम्मीद है,” उन्होंने कहा।

प्रधानमंत्री बनने के बाद कार्की ने स्थिरता बहाल करने, पारदर्शी चुनाव कराने और विकास को प्राथमिकता देने का वादा किया है। विश्लेषकों का मानना है कि उनकी स्वीकार्यता युवाओं और पारंपरिक राजनीतिक दलों—दोनों में—नेपाल की मौजूदा राजनीतिक संकट और साफ-सुथरे नेतृत्व की मांग को दर्शाती है।

कार्की का सत्ता में आना केवल राजनीतिक परिवर्तन नहीं है, बल्कि यह नेपाल की युवा पीढ़ी की उस आकांक्षा का प्रतीक है जो ईमानदार राजनीति और लोकतांत्रिक पुनर्जागरण चाहती है।