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प्रदीप शर्मा

ऐसे वक्त में जब पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के जरिये पाक को सबक सिखाया है, चीन प्रत्यक्ष व परोक्ष तौर पर पाकिस्तान का समर्थन करता नजर आ रहा है। चीन-पाक की दुरभिसंधि दशकों पुरानी है लेकिन उसकी हालिया करतूतों की टाइमिंग को लेकर सवाल उठ रहे हैं। वह न केवल पाकिस्तान की सैन्य व आर्थिक मदद ही कर रहा है बल्कि चीनी सरकारी मीडिया भी कुप्रचार व भ्रामक समाचार फैलाने में पाक के साथ खड़ा नजर आ रहा है।

अब उसने अपनी नई करतूत अरुणाचल प्रदेश के स्थानों का नाम बदलकर उजागर की है। हालांकि, ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। लगातार तीसरे साल चीन ने भारतीय राज्य अरुणाचल प्रदेश के स्थानों का नाम बदला है। चीन अरुणाचल को जांगनान के नाम से दर्शाता है। वहीं इसे तिब्बत के दक्षिणी हिस्से के रूप में होने का दावा करता है। जैसा कि उम्मीद भी थी, भारत सरकार ने चीन के इन बेतुके दावों को सिरे से खारिज कर दिया है। 

नई दिल्ली ने बीजिंग के इस बेतुके-निराधार दावे को सिरे से नकार दिया है। भारत सरकार ने फिर से दोहराया है कि ‘अरुणाचल भारत का अभिन्न और अविभाज्य हिस्सा था और हमेशा रहेगा।’ दरअसल, चिंता की बात यह है कि चीन ने यह करतूत ऐसे समय में की है जब पहलगाम हमले और उसके जवाब में सफल ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के चलते भारत-पाक के बीच तनाव कायम है। निश्चय ही इन स्थितियों में चीन का यह भड़काऊ कदम है। यहां उल्लेखनीय है कि भारतीय उपमहाद्वीप में हाल ही में हुई उथल-पुथल के दौरान पाकिस्तान को उसके सदाबहार दोस्त बीजिंग का भरपूर समर्थन मिला है। जिससे पता चलता है कि अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत से दोस्ती का हाथ बढ़ाने तथा व्यापार-कारोबार बढ़ाने की बात करने वाला चीन भारत के प्रति कैसी दुर्भावना रखता है। भले ही वह वैश्विक संगठनों व मंचों पर भारत के साथ खड़ा होने का दावा करता हो।

निस्संदेह, ऐसी घटनाएं हमें सतर्क करती हैं कि चीन के साथ मैत्री संबंधों के निर्धारण के दौरान हमें सजग व सचेत रहना चाहिए। अन्यथा चीन पीठ पर वार करने से नहीं चूकने वाला है। बीते वर्ष विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने व्यंग्यात्मक लहजे में एक सवाल पूछा था, ‘अगर आज मैं आपके घर का नाम बदल दूं तो क्या वो मेरा हो जाएगा?’ लेकिन निर्विवाद रूप से चीन ने विदेश मंत्री के इस संदेश को नजरअंदाज ही किया है। इतना ही नहीं वह फिर से भौगोलिक क्षेत्रों के नामों के मनमाने मानकीकरण के साथ आगे बढ़ गया है। लेकिन सवाल इस करतूत के समय का है। जाहिर बात है कि बीजिंग ने ऐसा न केवल चुनौतीपूर्ण समय में भारत का ध्यान भटकाने के लिये किया है, बल्कि पाकिस्तान के साथ एकजुटता दिखाने के लिये भी किया है। उस पाकिस्तान को, जिसे प्रधानमंत्री मोदी ने सोमवार को राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में कड़ी चेतावनी दी थी। प्रधानमंत्री ने सिर्फ और सिर्फ पाकिस्तान द्वारा कब्जाए कश्मीर पर ही बातचीत करने की बात कही थी। 

ऐसे में चीन ने अरुणाचल पर अपने क्षेत्रीय दावे से फिर से पाकिस्तान का मनोबल बढ़ाने का कुत्सित प्रयास किया। यह जानते हुए भी उसके दावे निराधार हैं। वहीं दूसरी ओर मोदी सरकार ने चीन के सरकारी मीडिया, खासकर ग्लोबल टाइम्स द्वारा कथित तौर पर फैलाए जा रहे पाकिस्तानी दुष्प्रचार के मामले को गंभीरता ले लिया है। गत सात मई को, चीन स्थित भारतीय दूतावास ने ग्लोबल टाइम्स को इस बात के लिये फटकार लगायी थी कि उसने तथ्यों और स्रोतों को पुष्टि किए बिना पाकिस्तान की सेना द्वारा भारतीय लड़ाकू विमान को मार गिराए जाने की रिपोर्ट दी थी। दिल्ली ने बुधवार को भारत में चीनी मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स के एक्स-अकाउंट हैंडल को कुछ घंटों के लिये ब्लॉक कर दिया था। निस्संदेह, चीनी शरारतें उनके नेताओं के भारत के प्रति हाल के प्रयासों के विपरीत हैं। ऐसे में चीनी विदेश मंत्री वांग यी द्वारा परिकल्पित ड्रैगन और हाथी के बीच दोस्ती का प्रपंच तब तक एक दूर का सपना ही रहेगा, जब तक कि चीन पाकिस्तान को बचाने के प्रयासों में लगा रहेगा।

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