बिहार में 50 से ज़्यादा सीटों पर मुसलमानों की निर्णायक पकड़

— सैयद अली मुज्तबा

बिहार की राजनीति भौगोलिक रूप से दो हिस्सों में बंटी हुई है — उत्तर बिहार और दक्षिण बिहार। उत्तर बिहार में लगभग 140 विधानसभा क्षेत्र हैं, जबकि दक्षिण बिहार में 100 सीटें आती हैं। बिहार विधानसभा की कुल सीटें 243 हैं, यानी चुनावी समीकरणों में उत्तर बिहार के मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं। यहीं पर मुस्लिम आबादी की अहमियत सबसे ज़्यादा है, क्योंकि राज्य के ज़्यादातर मुस्लिम मतदाता उत्तर बिहार में ही बसते हैं।


उत्तर बिहार के सीमांचल क्षेत्र की 18 विधानसभा सीटों में मुस्लिम आबादी 40% से 70% के बीच है। इन जिलों में किशनगंज (68%), कटिहार (44.47%), अररिया (42.95%) और पूर्णिया (38.46%) प्रमुख हैं। माना जाता है कि इन मुस्लिम-बहुल जिलों में जनसंख्या वृद्धि के साथ-साथ 2025 तक मुस्लिम प्रतिशत में और बढ़ोतरी हुई होगी।


सुविधा के लिए बिहार के 38 जिलों को पाँच खंडों (सेगमेंट्स) में बाँटा जा सकता है ताकि मुस्लिम वोटरों की चुनावी ताकत को समझा जा सके।


पहला खंड (सेगमेंट 1) — यहाँ मुस्लिम आबादी 40% से 70% के बीच है। इसमें किशनगंज, कटिहार, अररिया और पूर्णिया के कुल 18 विधानसभा क्षेत्र आते हैं। यह क्षेत्र मुसलमानों का राजनीतिक गढ़ कहा जा सकता है, जहाँ उनका वोट निर्णायक है।

दूसरा खंड (सेगमेंट 2) — इसमें 35 विधानसभा सीटें हैं, जहाँ मुस्लिम आबादी 20% से 30% तक है। ये सीटें दरभंगा, पश्चिम चंपारण, पूर्वी चंपारण और सीतामढ़ी में फैली हैं। अगर मुसलमान रणनीतिक रूप से सहयोगी दलों के साथ वोट करें, तो इनमें से कई सीटें जीती जा सकती हैं।


तीसरा खंड (सेगमेंट 3) — यहाँ 15% से 20% मुस्लिम आबादी है और कुल 41 विधानसभा क्षेत्र आते हैं। इन जिलों में मधुबनी, मुज़फ्फरपुर, सिवान, भागलपुर, गोपालगंज और सुपौल प्रमुख हैं। इन क्षेत्रों में मुसलमान, सहयोगी जाति समूहों के साथ मिलकर चुनावी परिणाम को प्रभावित कर सकते हैं।


चौथा खंड (सेगमेंट 4) — इस वर्ग में 10% से 15% मुस्लिम आबादी वाले 62 विधानसभा क्षेत्र आते हैं। इनमें सहरसा, बेगूसराय, गया, नालंदा, सिवान, सारण, नवादा और रोहतास जैसे जिले शामिल हैं। यहाँ भी 10% से ऊपर मुस्लिम वोट चुनावी नतीजों को बदल सकता है।


पाँचवां खंड (सेगमेंट 5) — यहाँ मुस्लिम आबादी 5% से 10% के बीच है और इसमें कुल 59 विधानसभा सीटें आती हैं। इनमें वैशाली, मुंगेर, नालंदा, पटना, भोजपुर, जहानाबाद, कैमूर और औरंगाबाद जैसे जिले शामिल हैं।

अगर रणनीति के साथ मतदान हो…….
अगर रणनीति के साथ मतदान हो, तो मुसलमान इन इलाकों में भी विरोधी उम्मीदवारों को कड़ी टक्कर दे सकते हैं। यदि इन पाँच सेगमेंट्स को मिलाकर देखा जाए, तो पहले खंड की 18 सीटें, दूसरे खंड की 35 सीटें और तीसरे खंड से लगभग 10 सीटें मिलाकर मुसलमान करीब 50 से अधिक विधानसभा सीटों पर प्रभावी भूमिका निभा सकते हैं। इसके लिए ज़रूरी है कि वे राज्य की 243 सीटों की बड़ी तस्वीर को ध्यान में रखते हुए संगठित तरीके से मतदान करें।


इतिहास गवाह है कि बिहार में मुसलमानों को हमेशा राजनीतिक प्रतिनिधित्व की कमी का सामना करना पड़ा है। 1985 में संयुक्त बिहार की 324 सदस्यीय विधानसभा में 34 मुस्लिम विधायक चुने गए थे — यह अब तक की सर्वोच्च संख्या थी। 2020 के विधानसभा चुनाव में यह संख्या घटकर 19 रह गई, जबकि कुल सीटें 243 हैं। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि 2025 के चुनाव के बाद यह संख्या घटती है या बढ़ती — इसका फैसला 14 नवंबर 2025 को मतगणना के बाद सामने आएगा।


(लेखक सैयद अली मुज्तबा चेन्नई में वरिष्ठ पत्रकार हैं और मूल रूप से बिहार से हैं।)