– विनोद कुमार‚ पत्रकार एवं फिल्म लेखक 

दिलीप कुमार ‘ट्रेजडी किंग’ थे और मीना कुमारी ‘ट्रेजडी क्वीन। लेकिन इन दोनों की जोड़ी जब 1960 में रिलीज हुई फिल्म ‘कोहिनूर’ में पर्दे पर आई, तो दर्शक हंस–हंस के लोटपोट हो गए। एक राजकुमार और राजकुमारी की इस प्रेम कहानी में एक्शन के साथ कॉमेडी भी थी। कहा जाता है कि ‘देवदास’ करने के बाद दिलीप कुमार डिप्रेशन में चले गए थे। तब उनके साइकेट्रिस्ट ने उन्हें सलाह दी कोई हल्की-फुल्की फिल्म करने की। इसी के बाद उन्होंने ‘कोहिनूर’ साइन की।

20 UNFORGETTABLE FRAMES of Dilip Kumar - Rediff.com

लेकिन, इस फिल्म की शूटिंग के दौरान एक ऐसी घटना हुई, जिसे देख कर दिलीप कुमार सहित यूनिट के लोग कांप उठे। कहा जाता है कि दिलीप कुमार का सामना किसी भूत से हुआ और वह उसे देख कर थर्रा उठे। यह ऐसी घटना थी जिसने दिलीप कुमार को ही नहीं‚ वहां मौजूद सभी लोगों को हिला कर रख दिया। इस घटना का जिक्र दिलीप कुमार ने अपनी आत्मकथा में भी किया है। 

यह घटना है उस समय की, जब दिलीप कुमार और फिल्म के निर्देशक एसयू सनी लोकेशन की तलाश में निकले थे। इलाहाबाद में जन्मे सनी की गिनती अपने दौर के बेहतरीन निर्देशकों में होती थी। उन्होंने ‘मेला’ और ‘उड़न खटोला’ जैसी फिल्में बनाई थीं।

सनी की ख़ासियत थी कि वह अपने कलाकारों को सोचने और उस पर अमल करने की पूरी छूट देते। दिलीप कुमार के साथ उनकी इसलिए भी खूब बनी, क्योंकि दोनों एक-दूसरे के मिज़ाज को बखूबी समझते थे। सनी को पता था कि दिलीप अपने किरदार में डूब जाते हैं। उन्हें वक़्त चाहिए अपने अभिनय के लिए, तो उन्होंने वह वक़्त दिया।

दोनों ने ‘कोहिनूर’ के लिए मिलकर लोकेशन तलाशीं और जिस घटना ने दिलीप और बाकी लोगों में दहशत भर दी, वह ऐसे ही एक सफर का है, जब वे लोकेशन देखने निकले थे। फिल्म के कुछ सीन रात में शूट होने थे। दिलीप कुमार और सनी ने तय किया कि इसके लिए बंबई के बाहर कोई लोकेशन देखी जाए। दिलीप की ओर से सुझाव आया कि सड़क के रास्ते नासिक के आगे तक चला जाए, बंबई से कोई 190 किलोमीटर दूर। सनी को सुझाव पसंद आ गया। यह भी तय किया गया कि चूंकि सीन रात का है, तो सफर भी शाम को शुरू किया जाए, ताकि लोकेशन पर आधी रात के वक़्त पहुंचें। इससे माहौल को भांपने में ज़्यादा मदद मिलेगी।

लोकेशन देखने के लिए दिलीप कुमार, सनी और कैमरा असिस्टेंट जाने वाले थे। साथ में ड्राइवर भी यानी कुल चार लोग। कार में इससे ज़्यादा आ नहीं सकते थे, लेकिन जब सनी की पत्नी को मालूम पड़ा कि वे लोग रात में कहीं जाने वाले हैं, तो उन्होंने भी साथ चलने की जिद शुरू कर दी।

दिलीप कुमार अपनी बायोग्राफी में बताते हैं कि सनी की पत्नी बेहद ही रहस्यमय शख़्सियत वाली महिला थीं। उन्हें भूत-प्रेतों पर विश्वास था। साथ ही, वह कुछ जादू-टोना भी करती थीं, काला जादू। हालांकि उस समय सनी ने दिलीप को यह नहीं बताया कि उनकी पत्नी साथ जाने की जिद कर रही हैं। ना ही उन्होंने अपनी पत्नी को समझाने का प्रयास किया। 

सनी ने बस इनकार कर दिया कि, ‘नहीं, साथ नहीं ले जा सकते।’

सफर शुरू हुआ। सभी बेहद रोमांचित थे। सनी और कैमरा असिस्टेंट ड्राइवर के पास बैठ गए और दिलीप कुमार ने पीछे की सीट कब्जा ली। ये लोग शाम को निकले थे और कुछ देर बाद ही सूरज डूबने लगा। थोड़ी ही देर में अंधेरा घिर आया। लेकिन, फिर अचानक से मौसम ने करवट ली। तेज़ आंधी के साथ बारिश आ धमकी। हवा का झोंका और पानी की बौछार सीधे सामने वाले शीशे पर पड़ रही थी। ड्राइवर के लिए कुछ भी देखना मुश्किल हो गया। 

आखिर में सनी ने सुझाव दिया कि कहीं ओट देखकर रुक लिया जाए। जब बारिश बंद होगी तो आगे चला जाएगा। दिलीप कुमार राजी हो गए।

थोड़ा चलने पर उन्हें हाईवे के किनारे एक खंडहर नुमा छांव दिखी। ड्राइवर ने गाड़ी सड़क के नीचे उतार दी। वह एक खंडहर ही था, जिसकी छत जगह-जगह से टूटी थी। सामने एक बोरा लटका हुआ था, परदे का काम करने के लिए। बाहर एक बकरी बंधी थी, जो ठंड से कांप रही थी।

दिलीप कुमार, सनी और कैमरा असिस्टेंट गाड़ी से उतरकर उस छांव की ओर बढ़ चले, जबकि ड्राइवर कार में ही बैठा रहा। छत के नीचे लकड़ी की एक बेंच पड़ी थी। दिलीप जाकर उसी पर बैठ गए। आंधी-पानी के साथ अब बिजली भी कड़कने लगी थी। उस सुनसान जगह माहौल डरावना-सा बन गया था।

सनी को बकरी का ख्याल आया। उन्होंने सोचा कि उसे खुले से हटाकर छांव के नीचे बांध दिया जाए। वह बकरी को खोलने के लिए चले गए। जब वह वापस दिलीप कुमार की ओर मुड़े, तभी अचानक से तेज़ बिजली कौंधी। हवा का एक झोंका आया। दिलीप जिस जगह बैठे थे, उसके सामने पड़ा बोरे का पर्दा अपनी जगह से हिला और कड़कती बिजली की रोशनी में जो दिखा, उससे सभी के दिल बैठ गए।

दिलीप कुमार, सनी और कैमरा असिस्टेंट ने वहां एक महिला देखी, कुटिल मुस्कान लिए, तीखी नज़रों से उन्हें ही घूरती हुई। उस महिला ने रहस्यमय तरीके से अपने हाथ ऊपर उठाए और होठों पर लगा कुछ लाल-लाल पोछ लिया। कैमरा असिस्टेंट तो यह देखते ही थर-थर कांपने लगा, जबकि सनी की स्थिति ऐसी नहीं थी कि वह आगे बढ़ सकें। वह जहां खड़े थे, वहीं बैठ गए। दिलीप कुमार के मुताबिक, अगर वह नहीं डरे, तो बस इसलिए क्योंकि उनमें पठानी दिलेरी थी।

उस भयानक रात, उन लोगों ने जिस महिला को देखा वह सनी की पत्नी थी। लेकिन, जिसे वे लोग मीलों पीछे बंबई में छोड़ आए थे, वह इस सुनसान जगह कैसे पहुंच गई, उन लोगों का पीछा करते हुए? कैसे उसकी एक झलक दिखी और फिर वह गायब हो गई? पहचानने में कोई चूक नहीं हुई थी, क्योंकि तीनों ने ही वह मंजर देखा था, एक साथ। किसी के पास कोई जवाब नहीं था।

इसके बाद अचानक बारिश थम गई और मौसम खुल गया। सफर इसके बाद भी पूरा हुआ, लेकिन खामोशी के बीच। उत्साह काफूर हो चुका था। सनी बेहद शर्मिंदा थे। वह कुछ बोल नहीं पा रहे थे।

सभी ने लोकेशन देखी और बंबई लौट आए। अगले दिन दोपहर में दिलीप कुमार अपनी बहनों को यह वाकया सुना रहे थे। तभी उन्होंने किसी गाड़ी की आवाज़ सुनी, जो उनके ही घर आई थी। उनकी बहनें दौड़कर देखने गईं कि कौन आया है। और, लगभग तुरंत ही चीखते हुए वापस लौटीं। वे कांप रही थीं। उनके घर आने वाले मेहमान थे सनी और उनकी पत्नी।

यह थी वह वह डरावनी घटना जो दिलीप कुमार के साथ घटी और जिसने दिलीप कुमार और उनके परिवार के लोगों को डरा दिया। लेकिन यह पता नहीं चला कि खंडरनुमा जगह पर अचानक दिखने वाली वह महिला कौन थी। क्या वह वाकई सन्नी की पत्नी थी या कोई चुडैल थी। अगर सन्नी की पत्नी थी तो वह वहां कैसे पहुंची और फिर कैसे गायब हो गई।