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प्रदीप शर्मा 
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने परिसीमन मसले पर सर्वदलीय बैठक बुलाकर दक्षिणी राज्यों की चिंता व्यक्त की। डी-लिमिटेशन की संवैधानिक जरूरत और संभावित जनगणना के बाद संसदीय प्रतिनिधित्व में बदलाव की आंशका से साउथ के राज्यों की भूमिका कम हो सकती है। स्टालिन ने तमिलनाडु को संभावित नुकसान का भी जिक्र किया। डी-लिमिटेशन या परिसीमन दरअसल एक संवैधानिक जरूरत है जिसका मकसद यह सुनिश्चित करना है संसद में जनता के प्रतिनिधित्व और आबादी में हो रही बढ़ोतरी का अनुपात ठीक बना रहे। संवैधानिक संशोधन के जरिए पहले 1976 में 25 वर्षों के लिए और फिर 2002 में साल 2026 तक के लिए इसे टाल दिया गया। 2011 के बाद 2021 में जो जनगणना होनी थी, कोविड के चलते वह भी टल गई। हालांकि सरकार ने अभी कोई तारीख नहीं घोषित की है, लेकिन माना जा रहा है कि अगले साल तक जनगणना का काम पूरा हो जाने के बाद परिसीमन की प्रक्रिया शुरू होगी।


चूंकि परिसीमन का आधार क्षेत्र विशेष की जनसंख्या को बनाया जाता रहा है, इसलिए दक्षिणी राज्यों को डर है कि इसके परिणास्वरूप राष्ट्रीय राजनीति में उनकी भूमिका और अहमियत कम हो जाएगी। उनका डर निराधार नहीं कहा जा सकता क्योंकि जनसंख्या के मामले में दक्षिणी राज्यों के मुकाबले उत्तर भारत कहीं आगे है। आजादी के बाद जहां साउथ के राज्यों ने विकास के मार्ग पर तेजी से कदम बढ़ाए वहीं परिवार कल्याण योजनाओं के जरिए आबादी की बढ़ोतरी को भी काबू किया। 2011 की जनगणना के मुताबिक जहां उत्तर के सिर्फ दो राज्य – यूपी और बिहार- देश की कुल आबादी का 25 फीसदी थे वहीं साउथ के पांचों राज्य मिलाकर महज 21 फीसदी। ताजा सरकारी अनुमानों के मुताबिक यह प्रतिशत क्रमश: 26 और 19.5 हो चुका है। जाहिर है, आबादी के आधार पर परिसीमन लोकसभा में दक्षिणी राज्यों के सांसदों की संख्या कम करेगा। स्टालिन ने कहा भी है कि तमिलनाडु को कम से कम आठ सीटों का नुकसान होगा।

यह भी एक तथ्य है कि दक्षिण के राज्य देश के कॉरपोरेट और इनकम टैक्स में एक चौथाई का योगदान करते हैं जबकि यूपी और बिहार का योगदान महज 3 फीसदी बैठता है। इस मसले को कैसे हल किया जाता है, यह देखना होगा लेकिन इस दलील में दम है कि देश के किसी भी हिस्से को उसके अच्छे प्रदर्शन का नुकसान नहीं होने देना चाहिए।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने केंद्र की ओर से तमिलनाडु के साथ किसी भी तरह के अन्याय से इनकार किया और इस प्रकार के आरोपों को ध्यान भटकाने का प्रयास करार दिया। इसके साथ ही शाह ने मुख्यमंत्री स्टालिन पर परिसीमन को लेकर गलत सूचना अभियान फैलाने का आरोप लगाया और कहा कि जब परिसीमन यथानुपात आधार पर किया जाएगा तो तमिलनाडु सहित किसी भी दक्षिणी राज्य में संसदीय प्रतिनिधित्व में कमी नहीं होगी। शाह ने इस मुद्दे पर तमिलनाडु सरकार द्वारा बुलाई गई 5 मार्च की सर्वदलीय बैठक के बारे में कहा कि वे परिसीमन पर एक बैठक करने जा रहे हैं और कह रहे हैं कि हम दक्षिण के साथ कोई अन्याय नहीं होने देंगे। अमित शाह ने कहा कि मोदी सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि परिसीमन के बाद कोई भी दक्षिणी राज्य एक सीट भी नहीं गंवाएगा। बीजेपी ने स्टालिन के इस कदम को नकली डर बताया है।
लोकसभा में फिलहाल 543 सीटें हैं। माना जा रहा है कि यदि सीटों का परिसीमन हुआ तो उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, मध्यप्रदेश और राजस्थान में लोकसभा सीटों की संख्या बढ़ जाएगी। वहीं दक्षिण भारत के कुछ राज्य केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक को कुछ सीटें गंवानी पड़ सकती है। जनसंख्या के अनुपात में सीटें बंटी तो केरल में लोकसभा सीटें 20 से घटकर 19 हो जाएगी। यूपी में 14 सीटों का इजाफा हो सकता है। बिहार और एमपी में भी सीटें बढ़ेंगी। कुल कितनी सीटें बढ़ेंगी या घटेंगी यह परिसीमन के बाद ही तय होगा। वहीं सवालों के बीच सरकार की ओर से कहा गया है कि सीटें कम नहीं होंगी। परिसीमन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा लोकसभा और विधानसभा क्षेत्रों की सीमाओं को फिर से निर्धारित किया जाता है। यह प्रक्रिया जनगणना के बाद की जाती है। परिसीमन का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में जनसंख्या का लगभग समान प्रतिनिधित्व हो। यह लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए आवश्यक है। परिसीमन करने के लिए, सरकार एक परिसीमन आयोग का गठन करती है। इस आयोग में न्यायाधीश, चुनाव विशेषज्ञ और अन्य गणमान्य व्यक्ति शामिल होते हैं। आयोग जनसंख्या के आंकड़ों के आधार पर निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं को फिर से निर्धारित करता है।
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