
शोभा शुक्ला
गर्भाशय ग्रीवा का कैंसर (सर्वाइकल कैंसर) एक ऐसा रोग है जिसे समय रहते पहचाना और सही तरीके से प्रबंधित किया जाए तो पूरी तरह से रोका और ठीक किया जा सकता है। इसके बावजूद, यह आज भी दुनिया भर की महिलाओं में चौथा सबसे आम कैंसर है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, 2022 में 6.6 लाख महिलाओं को यह बीमारी हुई और 3.5 लाख महिलाओं की इससे मौत हो गई।
चीन, भारत और इंडोनेशिया में इस कैंसर के सबसे अधिक मामले सामने आए। अकेले भारत और चीन में ही दुनिया के कुल मामलों का 42% और मौतों का 39% हुआ। भारत में 2022 में 1.23 लाख से अधिक नए मामले और लगभग 77,000 मौतें दर्ज की गईं, जो किसी भी देश में सबसे अधिक हैं।
यह कैंसर मुख्य रूप से युवा महिलाओं को प्रभावित करता है, और WHO का कहना है कि हर पांच में से एक बच्चा जिसने अपनी मां को कैंसर से खोया, वह मां सर्वाइकल कैंसर से पीड़ित थी।
एकमात्र कैंसर जिसे खत्म किया जा सकता है
सर्वाइकल कैंसर एकमात्र ऐसा कैंसर है जिसे पूरी तरह से समाप्त किया जा सकता है। इसी को ध्यान में रखते हुए WHO के महानिदेशक ने 2018 में सभी सरकारों से इसे समाप्त करने का आह्वान किया था। 2020 में विश्व स्वास्थ्य सभा में सभी देशों ने 2030 तक इसे खत्म करने की रणनीति को समर्थन दिया। हालांकि, लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में प्रगति धीमी है और 2025 के मील के पत्थर से दुनिया काफी पीछे है।
इस बीमारी का भार मुख्य रूप से निम्न और मध्यम आय वाले देशों में है, जहां स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता बहुत सीमित है। 2022 में हुई कुल मौतों में से 94% इन्हीं देशों में हुईं। यह स्थिति वैश्विक स्वास्थ्य असमानताओं को दर्शाती है, जहां टीकाकरण, स्क्रीनिंग और इलाज की सुविधाओं की कमी स्पष्ट है।
रोकथाम के उपाय मौजूद, फिर भी पहुंच नहीं
एचपीवी (ह्यूमन पैपिलोमा वायरस) सर्वाइकल कैंसर का मुख्य कारण है। यह यौन संपर्क से फैलने वाला एक आम संक्रमण है। एचपीवी के खिलाफ प्रोफिलैक्टिक वैक्सीन, समय पर स्क्रीनिंग और पूर्व-कैंसर घावों का इलाज इस कैंसर को रोकने के सशक्त उपाय हैं।
एचपीवी वैक्सीन पिछले लगभग 20 वर्षों से मौजूद है। ग्लैक्सो की सर्वेरिक्स और मर्क की गार्डासिल जैसी वैक्सीन्स अमीर देशों में बनीं और वहीं सबसे ज़्यादा इस्तेमाल भी हुईं। वैश्विक दक्षिण देशों में इनकी पहुंच काफी सीमित रही।
2022 में भारत ने अपना पहला स्वदेशी एचपीवी वैक्सीन ‘Cervavac’ लॉन्च किया, जो सीरम इंस्टीट्यूट और भारत सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग के सहयोग से विकसित हुआ। हालांकि, यह वैक्सीन अभी तक भारत के सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रम का हिस्सा नहीं बन पाई है।
स्क्रीनिंग में भी असमानता
भारत और अन्य निम्न आय वाले देशों में अभी भी पुरानी जांच विधियाँ जैसे पैप स्मीयर और VIA (विजुअल इंस्पेक्शन विद एसेटिक एसिड) पर निर्भरता है, जो कम संवेदनशील, अधिक मानवीय त्रुटियों वाली और विशेष प्रशिक्षण की मांग करने वाली तकनीकें हैं।
इसके मुकाबले, विकसित देशों में उपयोग में आने वाले आणविक एचपीवी परीक्षण अधिक सटीक होते हैं, लेकिन ग्रामीण और सीमित संसाधनों वाले क्षेत्रों में इनकी उपलब्धता बहुत कम है।
इस स्थिति को बदलने के लिए भारत में विकसित Truenat HPV-HR Plus एक बड़ी उपलब्धि है। यह देश का पहला स्वदेशी RT-PCR आधारित एचपीवी परीक्षण है, जिसे Molbio Diagnostics द्वारा विकसित किया गया है। यह टेस्ट बैटरी और सोलर से चलने वाली मशीन पर चलता है, प्रयोगशाला-स्वतंत्र है और एक घंटे के भीतर परिणाम देता है। इसका स्वतंत्र मूल्यांकन भारत सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग और WHO की सहयोगी संस्थाओं द्वारा किया गया है।
यह परीक्षण 8 उच्च-जोखिम वाले एचपीवी जीनोटाइप्स का पता लगाता है, जो विश्व स्तर पर 96% मामलों के लिए जिम्मेदार हैं। इसमें HPV-16 और HPV-18 जैसे प्रकार शामिल हैं, जो 77% मामलों में प्रमुख कारण हैं।
HIV संक्रमित महिलाओं के लिए गंभीर खतरा
HIV से संक्रमित महिलाओं में सर्वाइकल कैंसर का खतरा सामान्य महिलाओं की तुलना में 6 गुना अधिक होता है। इसलिए HIV देखभाल में सर्वाइकल कैंसर स्क्रीनिंग को एकीकृत करना अत्यावश्यक है। NCPI Plus जैसे नेटवर्क इस दिशा में जागरूकता बढ़ाने और स्क्रीनिंग सेवाओं को समुदायों तक पहुंचाने के लिए काम कर रहे हैं।
डॉ. कुलदीप सिंह सचदेवा का कहना है कि “HPV संक्रमण आम है, लेकिन अगर यह शरीर में लंबे समय तक बना रहे, तो कैंसर का कारण बन सकता है।”
HPV के अन्य खतरे और व्यापक समाधान की जरूरत
HPV केवल सर्वाइकल कैंसर नहीं, बल्कि गले, गुदा, लिंग और योनि जैसे अंगों का कैंसर भी कर सकता है। विकसित देशों में 28% से 68% तक गले के कैंसर HPV से संबंधित पाए गए हैं। ऐसे में विशेषज्ञ लैंगिक-तटस्थ (gender-neutral) HPV टीकाकरण की वकालत कर रहे हैं, ताकि सभी जोखिम वाले व्यक्तियों को सुरक्षा मिल सके।
एचपीवी मुख्य रूप से यौन संपर्क और त्वचा-से-त्वचा संपर्क से फैलता है। WHO की सिफारिश है कि 30 वर्ष की उम्र के बाद हर 5 साल में एक बार एचपीवी की जांच हो और 15 वर्ष की उम्र से पहले एचपीवी का टीका लगाया जाए।
निष्कर्ष: एक भी मौत बहुत ज़्यादा है
2030 तक सर्वाइकल कैंसर को खत्म करने के लिए WHO ने 90-70-90 लक्ष्य निर्धारित किया है:
- 90% किशोरियों को 15 वर्ष की उम्र तक एचपीवी वैक्सीन मिलनी चाहिए
- 70% महिलाओं की 35 और 45 वर्ष की उम्र में उच्च गुणवत्ता वाली स्क्रीनिंग होनी चाहिए
- 90% पूर्व-कैंसर और कैंसर के मामलों का प्रभावी उपचार होना चाहिए
सर्वाइकल कैंसर एकमात्र ऐसा कैंसर है जिसे रोका और पूरी तरह मिटाया जा सकता है। इसके बावजूद हर साल लाखों महिलाएं जान गंवा रही हैं। अब वक्त है कि विज्ञान, नीति और समुदाय मिलकर इस पर निर्णायक कार्रवाई करें। -cns
