AMN नई दिल्ली, 7 अगस्त

– प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज एक सख्त और रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण बयान देते हुए साफ कर दिया कि उनकी सरकार भारतीय किसानों के हितों से कभी समझौता नहीं करेगी। उन्होंने कहा कि किसानों का कल्याण सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है। यह बयान दिल्ली में आयोजित एम.एस. स्वामीनाथन शताब्दी अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में दिया गया, जो ऐसे समय में आया है जब भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक तनाव एक बार फिर बढ़ते दिखाई दे रहे हैं।

हाल ही में अमेरिका ने भारतीय कृषि उत्पादों सहित कई वस्तुओं पर नए टैरिफ (आयात शुल्क) लगाए हैं, जिससे द्विपक्षीय व्यापार वार्ताएं ठप हो गई हैं। इस संदर्भ में मोदी का बयान देश और विदेश दोनों के लिए एक स्पष्ट संदेश माना जा रहा है।

“भारत अपने किसानों, मछुआरों और डेयरी उत्पादकों के हितों से कभी समझौता नहीं करेगा।”
– प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

प्रधानमंत्री ने कहा कि सरकार का लक्ष्य किसानों की आय को दोगुना करना है, और इसके लिए लागत घटाने, उत्पादकता बढ़ाने और कृषि नवाचार पर जोर दिया जा रहा है।


रणनीतिक वज़न वाला भाषण

हालाँकि मोदी का भाषण डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन को श्रद्धांजलि देने के लिए था – जो भारत की हरित क्रांति के जनक माने जाते हैं – लेकिन इसका राजनीतिक और कूटनीतिक संदेश स्पष्ट था। अमेरिका भारत पर कृषि और डेयरी बाजार खोलने का दबाव बना रहा है, लेकिन भारत ऐसे किसी भी कदम से बचना चाहता है जो गांव, किसान और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुँचा सके।


“हमारे किसान, हमारी शान”

मोदी ने कहा कि आज भारत दूध, दाल और जूट का दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक बन गया है। उन्होंने यह भी बताया कि पिछले वर्ष भारत ने खाद्यान्न उत्पादन का अब तक का सर्वाधिक रिकॉर्ड हासिल किया। उन्होंने डॉ. स्वामीनाथन की “बायो-हैप्पीनेस” (जैविक संतुलन और किसान की खुशहाली) की अवधारणा का उल्लेख करते हुए कहा कि यह विचार आज भी भारत की कृषि नीति का आधार है।

प्रधानमंत्री ने वैज्ञानिकों से “फूड सिक्योरिटी” से आगे बढ़कर अब “न्यूट्रीशनल सिक्योरिटी” यानी पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने की अपील की। उन्होंने जलवायु-स्थिर और गर्मी-सहिष्णु फसलों पर अनुसंधान को बढ़ावा देने की जरूरत बताई।


खाद्य सुरक्षा और व्यापार की राजनीति

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, मोदी का यह भाषण महज़ एक श्रद्धांजलि नहीं, बल्कि घरेलू और वैश्विक दबावों के बीच एक स्पष्ट राजनीतिक स्टैंड भी है। अमेरिका द्वारा लगाए गए नए टैरिफ और भारत से कृषि बाज़ार खोलने की माँग को लेकर सरकार पर अंतरराष्ट्रीय दबाव है, वहीं देश में राज्य चुनाव भी नजदीक हैं।

किसान वोट बैंक को देखते हुए मोदी सरकार यह संदेश देना चाहती है कि विदेशी दबाव के सामने झुकना नहीं होगा, चाहे उसके लिए कूटनीतिक रिश्तों को दांव पर ही क्यों न लगाना पड़े। यह बयान विपक्ष की आलोचना का जवाब भी माना जा रहा है, जो अक्सर सरकार पर अमेरिका के साथ नरम रुख अपनाने का आरोप लगाता है।


भारत रत्न से बायो-हैप्पीनेस तक

प्रधानमंत्री ने यह भी बताया कि उनकी सरकार को डॉ. स्वामीनाथन को भारत रत्न देने का सौभाग्य मिला। उन्होंने कहा कि बीते वर्षों में हैंडलूम और ग्रामीण हस्तशिल्प जैसे क्षेत्रों को नई पहचान और मजबूती मिली है।

“उनका दृष्टिकोण आज भी हमारी कृषि नीति को दिशा देता है।”
– नरेंद्र मोदी

उन्होंने एक ऐसे कृषि मॉडल की वकालत की जो “टेक्नोलॉजी, परंपरा और विश्वास” पर आधारित हो – जो एक ओर विदेशी दबावों का मुकाबला कर सके और दूसरी ओर नवाचार को अपनाने वाला हो।


विश्लेषण: कूटनीतिक भाषा में सख्त संदेश

भले ही मोदी ने किसी देश का नाम नहीं लिया, लेकिन संदर्भ पूरी तरह स्पष्ट था। कृषि को राष्ट्रीय स्वाभिमान और रणनीतिक स्वायत्तता का मुद्दा बनाकर उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया कि भारत किसानों से जुड़े मामलों में कोई भी अंतरराष्ट्रीय समझौता करने के मूड में नहीं है।

आज जब दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाएं नई व्यापार रणनीतियाँ अपना रही हैं, भारत को अपने घरेलू हितों की रक्षा और वैश्विक सहयोग बनाए रखने के बीच संतुलन साधना होगा।

फिलहाल, प्रधानमंत्री मोदी का संदेश साफ है:

“भारत में किसान पहले हैं – चाहे टैरिफ हो या व्यापार।”