प्रवीण कुमार

जम्मू-कश्मीर के नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने विधानसभा चुनाव के दौरान कहा था कि हम सरकार बनाने जा रहे हैं और कैबिनेट की पहली बैठक में ही जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा बहाल करने के प्रस्ताव को मंजूर किया जाएगा। कुछ ऐसा ही हुआ। उमर अब्दुल्ला की लीडरशिप में जम्मू कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस की सरकार बनी और 16 अक्टूबर को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद अगले ही दिन गुरुवार को उन्होंने कैबिनेट से इस आशय का प्रस्ताव पास किया। माना जा रहा है कि उमर अब्दुल्ला एक-दो दिनों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से दिल्ली में मुलाकात करेंगे और उन्हें पूर्ण राज्य की बहाली प्रस्ताव का ड्राफ्ट सौंपेंगे।

नेशनल कॉन्फ्रेंस का साफतौर पर कहना है कि सरकार बनाने के बाद सबसे पहला काम जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा दिलाना है। लेकिन बड़ा सवाल यह कि जम्मू कश्मीर ने जो जनादेश दिया है और उसके बाद जिस तरह की राजनीतिक परिस्थितियां सूबे में बनी हैं उसमें पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल हो पाना इतना आसान है क्या? और मोदी-शाह नीत केंद्र की सरकार आसानी से यह सब होने देगी क्या?

इन सवालों का जवाब तलाशने से पहले हमें यहां सबसे पहले यह समझना होगा कि जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य की मांग का पूरा मामला क्या है। उमर अब्दुल्ला 2009 से 2014 तक जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री रहे हैं। तब जम्मू-कश्मीर न सिर्फ एक पूर्ण राज्य था, बल्कि जम्मू-कश्मीर में आर्टिकल 370 और 35-A के चलते उसे कई विशेष अधिकार भी मिले हुए थे। इसके बाद जम्मू-कश्मीर में पीडीपी और बीजेपी की मिली-जुली सरकार बनी।

19 जून 2018 को ये सरकार गिर गई और राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। इसके बाद 5 अगस्त 2019 को केंद्र सरकार ने धारा-370 और धारा 35-A को भी खत्म कर दिया। जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 के तहत, जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में भी बांट दिया गया। ये केंद्र शासित प्रदेश बने- जम्मू-कश्मीर और लद्दाख। इसके बाद से ही लगातार नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस पार्टी जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग करते आ रहे हैं।

नेशनल कॉन्फ्रेंस ने तो बकायदा अपने चुनावी घोषणापत्र में जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने के अलावा आर्टिकल 370 और 35-A की बहाली, पाकिस्तान के साथ बातचीत और जेल में बंद कैदियों की रिहाई जैसे कई वादे किए थे। अब जबकि जम्मू-कश्मीर में 2024 के विधानसभा चुनावों में मिलकर लड़ने वाली नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस को बहुमत मिला है तो स्वभाविक तौर पर जम्मू कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने की मुहिम तेज होगी। 

आपको याद हो तो बीते 4 सितंबर 2024 को जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस नेता और सांसद राहुल गांधी ने जम्मू में कहा भी था- देश के इतिहास में पहली बार किसी राज्य से अधिकार छीना गया और उसे केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया। बीजेपी और आरएसएस कुछ भी कह लें, हम जम्मू-कश्मीर के लोगों को उनका स्टेटहुड (राज्य का दर्जा) वापस देने जा रहे हैं।

चुनाव के नतीजे आने के तुरंत बाद पत्रकारों से बातचीत में उमर अब्दुल्ला ने भी तीर छोड़े और कहा कि पीएम नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और केंद्र सरकार के दूसरे मंत्रियों ने राज्य का दर्जा बहाल करने का वादा किया था। कहा गया था कि यहां तीन कदम उठाए जाएंगे- परिसीमन, चुनाव और फिर राज्य का दर्जा। परिसीमन और चुनाव हो चुके हैं, अब तो सिर्फ राज्य का दर्जा बहाल करना बचा है, जिसे पूरा किया जाना चाहिए।

यहां एक बात और जानने-समझने की है कि क्या पूर्ण राज्य का दर्जा न होने से जम्मू-कश्मीर सरकार के अधिकारों में कटौती हुई है? इसका जवाब निश्चित रूप से हां है। जम्मू-कश्मीर के अधिकार तीन चरणों में कम हुए हैं। 5 अगस्त 2019 से पहले जम्मू-कश्मीर को धारा 370 और 35-A के चलते विशेष अधिकार हासिल थे। राज्य का अपना संविधान था। केंद्र का जिस तरह का नियंत्रण देश के अन्य राज्यों पर था, वैसा जम्मू-कश्मीर पर नहीं था। इन दोनों धाराओं के हटते ही जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त हो गया।

जम्मू-कश्मीर पर 2019 का राज्य पुनर्गठन अधिनियम लागू करके इसे केंद्रशासित प्रदेश बना दिया गया। इसके चलते जम्मू-कश्मीर की स्वायत्तता भारत के किसी पूर्ण राज्य जितनी भी नहीं रही। 12 जुलाई 2024 को गृह मंत्रालय ने जम्मू-कश्मीर राज्य पुनर्गठन अधिनियम के सेक्शन-55 के तहत कुछ नियमों में भी बदलाव किए। इसमें कुछ नए सेक्शन जोड़कर उप-राज्यपाल को ताकतवर बना दिया गया। इससे जम्मू-कश्मीर के मामलों पर उप-राज्यपाल का नियंत्रण और बढ़ गया। मतलब यह कि जम्मू-कश्मीर में पुलिस, कानून-व्यवस्था, ब्यूरोक्रेसी जैसे राज्य के अहम मामलों में उप-राज्यपाल का सीधा नियंत्रण हो गया।

अब ऐसे में बड़ा सवाल यह भी उठता है कि उमर अब्दुल्ला की सरकार ने कैबिनेट से इस आशय का प्रस्ताव पास तो कर दिया। आने वाले वक्त में वह पीएम मोदी से मिलकर प्रस्ताव का मसौदा भी सौंप देंगे। विधानसभा में सरकार की तरफ से जम्मू-कश्मीर के पूर्ण राज्य के दर्जे की बहाली का प्रस्ताव भी पारित करा लेंगे और इसे उपराज्यपाल के माध्यम से केंद्र सरकार को भेजा जाएगा। लेकिन आगे का फैसला तो केंद्र सरकार को ही करना है। पूर्ण राज्य के दर्जे के लिए केंद्र सरकार ही जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम में बदलाव की प्रक्रिया कर सकती है।

इसके लिए संसद में एक कानून पारित कर पुनर्गठन अधिनियम में बदलाव संविधान की धारा 3 और 4 के तहत केंद्र सरकार को करना होगा। राज्य का दर्जा देने के लिए लोकसभा और राज्यसभा में नए कानूनी बदलावों का अनुमोदन जरूरी होगा। कहने का मतलब यह कि संसद से इस प्रस्ताव को मंजूरी मिलनी जरूरी होगी। मंजूरी के बाद इसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा। उनकी मंजूरी के बाद जिस दिन राष्ट्रपति इस कानूनी बदलाव की अधिसूचना जारी करेंगे, उसी तारीख से जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा मिल जाएगा।

स्वभाविक तौर पर तो इस संदर्भ में मोदी सरकार का रुख सकारात्मक होना चाहिए लेकिन ऐसा प्रतीत हो रहा है कि इसमें वक्त लग सकता है। वह इसलिए कि प्रदेश में बीजेपी चुनाव हार गई है। सरकार नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस गठबंधन की बनी है। तो सरकार न रहते हुए भी नरेंद्र मोदी और अमित शाह जम्मू कश्मीर को अपने तरीके से कंट्रोल करना चाहेंगे मतलब यह कि सरकार किसी की भी हो, रिमोट कंट्रोल केंद्र के पास रहे।

आपको भी पता होगा कि अगर पूर्ण राज्य का दर्जा जम्मू कश्मीर को दे दिया गया तो कुछ बड़े राजनीतिक और प्रशासनिक बदलाव तुरंत होंगे। मसलन, राज्य की विधानसभा को पब्लिक ऑर्डर यानी सार्वजनिक व्यवस्था और समवर्ती सूची के मामलों में कानून बनाने के अधिकार मिल जाएंगे। सरकार कोई वित्तीय बिल पेश करती है तो इसके लिए उसे उपराज्यपाल की मंजूरी लेने की जरूरत नहीं होगी।

एंटी करप्शन ब्यूरो और अखिल भारतीय सेवाओं पर राज्य सरकार का पूरा नियंत्रण हो जाएगा। यानी राज्य में अधिकारियों की ट्रांसफर-पोस्टिंग राज्य की सरकार अपने हिसाब से करेगी, उस पर उपराज्यपाल का नियंत्रण नहीं रहेगा। इसके अलावा आर्टिकल 286, 287, 288 और 304 में बदलाव से व्यापार, टैक्स और वाणिज्य के मामलों में राज्य सरकार को सभी अधिकार हासिल हो जाएंगे। केंद्र शासित प्रदेश में विधायकों की संख्या के सिर्फ 10 प्रतिशत ही मंत्री बनाए जा सकते हैं, लेकिन राज्य का दर्जा बहाल होने से मंत्रियों की संख्या का यह बंधन भी खत्म हो जाएगा और विधायकों की संख्या के 15 प्रतिशत तक मंत्री बनाए जा सकेंगे।

जेल के कैदियों की रिहाई और नेशनल कॉन्फ्रेंस के बाकी चुनावी वादे पूरे करने वाली योजनाओं को पूरा करने में भी राज्य सरकार को ज्यादा अधिकार हासिल होंगे। जाहिर सी बात है, केंद्र सरकार जम्मू कश्मीर को स्टेटहुड यानी पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल कर अपना नियंत्रण तब तक नहीं खोना चाहेगी जब तक कि राज्य में बीजेपी की सरकार नहीं बन जाती। कुल मिलाकर कहें तो उमर अब्दुल्ला के लिए या जम्मू कश्मीर के लिए निकट भविष्य में पूर्ण राज्य का दर्जा हासिल करने की राह कांटो भरी है। इसके लिए लंबा संघर्ष करना होगा।


(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)