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इंद्र वशिष्ठ

केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह ने 21 दिसंबर को राज्य सभा में भारतीय न्याय संहिता, 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 और भारतीय साक्ष्य विधेयक, 2023 पर चर्चा का जवाब दिया। सदन ने चर्चा के बाद तीनों विधेयकों को पारित कर दिया। लोक सभा ने बुधवार, 20 दिसंबर 2023 को इन विधेयकों को पारित कर दिया था। 

क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में नए युग की शुरूआत-

चर्चा का जवाब देते हुए अमित शाह ने कहा कि संसद से ये तीनों विधेयक पारित होने पर भारत के क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में एक नए युग की शुरूआत होगी, जो पूर्णतया भारतीय होगा । उन्होंने कहा कि इन तीनों कानूनों को वर्ष 1857 की क्रांति के बाद अंग्रेज़ों के शासन की रक्षा के लिए बनाया गया था और इनमें कहीं भारतीय नागरिकों, उनके सम्मान, मानवाधिकारों की सुरक्षा और निर्बल को संरक्षण देने की व्यवस्था नहीं थी।  पुराने कानूनों में मानव वध और महिला के साथ दुर्व्यवहार को प्राथमिकता न देकर खज़ाने की रक्षा, रेलवे की रक्षा और ब्रिटिश ताज की सलामती को प्राथमिकता दी गई थी। उन्होंने कहा कि आज प्रस्तुत इन तीनों विधेयकों का उद्देश्य दंड देना नहीं बल्कि न्याय देना है। उन्होंने कहा कि भारतीय आत्मा वाले इन तीन कानूनों से पहली बार हमारी आपराधिक न्यायिक प्रणाली भारत द्वारा, भारत के लिए और भारतीय संसद द्वारा बनाए गए सिस्टम से गवर्न होगी। 

150 साल पुराने कानूनों में परिवर्तन- 

चर्चा का जवाब देते हुए अमित शाह ने कहा कि  आपराधिक न्याय प्रणाली को चलाने वाले लगभग 150 वर्ष पुराने तीनों कानूनों में पहली बार भारतीयता, भारतीय संविधान औऱ भारत की जनता की चिंता करने वाले परिवर्तन किए गए हैं।  1860 में बने भारतीय दंड संहिता का उद्देश्य न्याय देना नहीं बल्कि दंड देना था।  अब उसकी जगह भारतीय़ न्याय संहिता, 2023, क्रिमिनल प्रोसीजर कोड की जगह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 और इंडियन एवीडेंस एक्ट, 1872 की जगह भारतीय साक्ष्य विधेयक, 2023 इस सदन की मान्यता के बाद पूरे देश में अमल में आएंगे। उन्होंने कहा कि भारतीय आत्मा के साथ बनाए गए इन तीन कानूनों से हमारे क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में बहुत बड़ा परिवर्तन आएगा।मानव हत्या और महिला सुरक्षा की दिशा में न्याय नहीं, बल्कि अंग्रेजों के खजाने और ब्रिटिश ताज की रक्षा ही पुराने कानून की प्राथमिकता थी। 

इन तीन कानूनों में महिलाओं और बच्चों के प्रति अपराधों, हत्या और राष्ट्र के विरुद्ध अपराधों को प्रमुखता दी गई है।
इन नए कानूनों के प्रमुख अंश-


भारतीय न्याय संहिता- इसमें 358 धाराएं होंगी  (IPC की 511 धाराओं के स्थान पर)20 नए अपराधों को जोड़ा गया है,33 अपराधों में कारावास की सजा को बढ़ाया गया है, 83 अपराधों में जुर्माने की सजा राशि को बढ़ाया गया है, 23 अपराधों में अनिवार्य न्यूनतम सजा शुरु की गई है, 6 अपराधों में सामुदायिक सेवा का दंड शुरु किया गया है। 19 धाराएं निरस्त/हटा दी गई हैं।भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिताइसमें 531 सेक्शन होंगे (CrPC की 484 धाराओं के स्थान पर) कुल 177 प्रोविजन में बदलाव हुआ है, 9 नए सेक्शन, 39 नए सब-सेक्शन जोड़े गए हैं तथा 44 नए प्रोविजन तथा स्पष्टीकरण जोड़े गए है35 सेक्शन में टाइमलाइन जोड़ी गई है35 जगह पर ऑडियो-विडियो का प्रावधान जोड़ा गया है 14 धाराएं निरस्त/हटा दी गई हैं।भारतीय साक्ष्य अधिनियम- इसमें 170 धाराएं होंगी (मूल 167 धाराओं के स्थान पर) कुल 24 धाराओं में बदलाव किया गया है, 2 नई धारा, 6 उप-धाराएँ जोड़ी गई हैं तथा6 धाराएँ निरस्त/हटा दी गई हैं।

भारतीय न्याय संहिता : प्रमुख फीचर भारतीय जरूरतों के अनुसार प्राथमिकता ( प्रायोरिटी)। ब्रिटिश शासन को मानव-वध या महिलाओं पर अत्याचार से महत्त्वपूर्ण राजद्रोह और खजाने की रक्षा थी इन तीन कानूनों में महिलाओं और बच्चों के प्रति अपराधों, हत्या और राष्ट्र के विरुद्ध अपराधों को प्रमुखता दी गई है।इन कानूनों की प्राथमिकता ( प्रायोरिटी) भारतीयों को न्याय देना है, उनके मानवाधिकारों की रक्षा करना  है। 

महिलाओं और बच्चों के प्रति अपराध-
भारतीय न्याय संहिता ने यौन अपराधों से निपटने के लिए ‘महिलाओं और बच्चों के प्रति अपराध’ नामक एक नया अध्याय पेश किया है। इस विधेयक में 18 वर्ष से कम उम्र की महिलाओं के बलात्कार से संबंधित प्रावधान (प्रोविजन) में बदलाव का प्रस्ताव कर रहा है। नाबालिग महिलाओं के सामूहिक बलात्कार को पॉक्सो के साथ सुसंगत बनाता है।18 वर्ष से कम आयु की बच्चियों के मामले में आजीवन कारावास या मृत्यु दण्‍ड का प्रावधान किया गया है। गैंगरेप के सभी मामलों में 20 साल की सजा या आजीवन कारावास का प्रावधान। 18 वर्ष से कम उम्र की लड़की/ स्‍त्री के साथ सामूहिक बलात्कार का एक नयी अपराध केटेगरी। धोखे से यौन संबंध बनाने या विवाह करने के सच्‍चे इरादे के बिना विवाह करने का वादा करने वाले व्यक्तियों के लिए लक्षित दंड का प्रावधान करता है। 

आतंकवाद-भारतीय न्याय संहिता में पहली बार टेररिज्म की व्याख्या की गई है। इसे दंडनीय अपराध बना दिया गया है।व्याख्या : भारतीय न्याय संहिता खंड 113. (1) “जो कोई, भारत की एकता, अखंडता, संप्रभूता, सुरक्षा या आर्थिक सुरक्षा या प्रभुता को संकट में डालने या संकट में डालने की संभावना के आशय से या भारत में या किसी विदेश में जनता अथवा जनता के किसी वर्ग में आतंक फैलाने या आतंक फैलाने की संभावना के आशय से बमों, डाइनामाइट, विस्फोटक पदार्थों, अपायकर गैसों, न्यूक्लीयर का उपयोग करके ऐसा कार्य करता है, जिससे, किसी व्यक्ति या व्यक्तियों की मृत्यु होती है, संपत्ति की हानि होता है, या करेंसी के निर्माण या उसकी तस्करी या परिचालन तो वह आतंकवादी कार्य करता है।आतंकी कृत्‍य मृत्‍युदंड या आजीवन कारावास के साथ दंडनीय है जिसमें पैरोल नहीं होगा; आतंकी अपराधों की एक श्रृंखला भी पेश की गई है।सार्वजनिक सुविधाओं या निजी संपत्ति को नष्ट करना अपराध है, ऐसे कृत्यों को भी इस खंड के तहत शामिल किया गया है जिनसे ‘महत्वपूर्ण अवसंरचना की क्षति या विनाश के कारण व्यापक हानि’ होती है। 

संगठित अपराध (ऑर्गनाइज्ड क्राइम) संगठित अपराध से संबंधित एक नई दांडिक धारा जोड़ी गई है। भारतीय न्याय संहिता 111. (1) में पहली बार संगठित अपराध की व्याख्या की गई है सिंडिकेट से की गई विधिविरुद्ध गतिविधि को दंडनीय बनाया है। नए प्रावधानों में सशस्त्र विद्रोह, विध्वंसक गतिविधियां, अलगाववादी गतिविधियां अथवा भारत की संप्रभुता या एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्य को जोड़ा गया है। छोटे संगठित अपराधों को भी अपराध घोषित किया गया है, जिसके लिए 7 साल तक की कैद हो सकती है। इससे संबंधित प्रावधान खंड 112 में हैं। 

आर्थिक अपराध की व्याख्या भी की गई है : करेंसी नोट, बैंक नोट और सरकारी स्टापों का हेरफेर, कोई स्कीम चलाना या किसी बैंक/वित्तीय संस्था में गड़बड़ ऐसे कृत्य शामिल है; संगठित अपराध में, किसी व्यक्ति की मृत्यु हो गई है, तो आरोपी को मृत्यु दंड या आजीवन कारावास की सजा जुर्माना भी लगाया जाएगा, जो 10 लाख रुपये से कम नहीं होगा।संगठित अपराध में सहायता करने वालों के लिए भी सजा का प्रावधान किया गया है। 

अन्यमहत्त्वपूर्ण प्रावधान-मॉब लिंचिंग का नया प्रावधान : नस्‍ल, जाति, समुदाय आदि के आधार पर की गई हत्‍या से संबंधित अपराध का एक नया प्रावधान सम्मिलित किया गया है जिसके लिये आजीवन कारावास अथवा मृत्‍युदंड की सजा का प्रावधान किया गया है। 

स्नैचिंग का भी एक नया प्रावधान-गंभीर चोट के कारण लगभग निष्क्रिय स्थिति में जाने अथवा स्थाई रूप से विकलांग होने पर अब और अधिक कठोर दंड दिये जाएंगे।

 पीड़ित केंद्रित ( विक्टिम-सेंट्रिक) क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में विक्टिम-सेंट्रिक सुधार के 3 प्रमुख फीचर्स होते है:पार्टिसिपेशन का अधिकार (विक्टिम को अपनी बात रखने का मौका, BNSS 360)इनफार्मेशन का अधिकार (BNSS खंड 173, 193 और 230), नुकसान के लिए क्षतिपूर्ति का अधिकार और यह तीनों फीचर्स नए कानूनों में सुनिश्चित किये गए है। जीरो एफआईआर कहीं भी-जीरो FIR दर्ज करने की प्रथा को संस्थागत बना दिया गया है (BNSS 173)FIR कहीं भी दर्ज कर सकते हैं, भले ही अपराध किसी भी इलाके में हुआ हो।

पीड़ित (विक्टिम) के सूचना के अधिकारविक्टिम को FIR की एक प्रति निःशुल्क प्राप्त करने का अधिकार।पीड़ित को 90 दिनों के भीतर जांच में प्रगति के बारे में सूचित करना ।पीड़ितों को पुलिस रिपोर्ट, FIR, गवाह के बयान आदि के अनिवार्य प्रावधान के माध्यम से उनके मुकदमे के ब्‍योरे की जानकारी का एक महत्वपूर्ण अधिकार प्रदान करता है।जांच और मुकदमे के विभिन्न चरणों में पीड़ितों को जानकारी प्रदान करने के लिए उपबंध शामिल किए गए हैं। 

देशद्रोह- राजद्रोह – सेड़ीशन को पूर्णतः हटा दिया गया है।

भारतीय न्याय संहिता धारा 152 में अपराध : अलगाववादी गतिविधियों की भावनाओं को प्रोत्साहित करना है भारत की संप्रभुता या एकता और अखंडता को खतरे में डालता है; IPC धारा 124क में “सरकार के खिलाफ” की बात की गयी है, मगर भारतीय न्याय संहिता धारा 152 “भारत की संप्रभुता या एकता और अखंडता” की बारे में हैंIPC में ‘आशय या प्रयोजन’ की बात नहीं थी, लेकिन नए कानून में देशद्रोह के डिफिनेशन में ‘आशय’ की बात है, जिसमें अभिव्यक्ति स्वतंत्रता के लिए सेफ़गार्ड प्रोवाइड करता है अब घृणा, अवमानना जैसे शब्दों को हटाकर ‘सशस्त्र विद्रोह, विध्वंसक गतिविधियाँ, अलगाववादी गतिविधियां’ जैसे शब्द सम्मिलित किये गए है। 

भारतीय न्याय संहिता धारा 152: “जो कोई, जानबूझकर या प्रयोजन पूर्वक, बोले गए या लिखे गए शब्दों से, या संकेतों द्वारा, या दृश्य प्रतिनिधित्व द्वारा, या इलेक्ट्रॉनिक संचार द्वारा या वित्तीय साधनों के उपयोग से, या अन्यथा, अलगाव या सशस्त्र विद्रोह या विध्वंसक गतिविधियों को उत्तेजित करता है या उत्तेजित करने का प्रयास करता है, या अलगाववादी गतिविधियों की भावनाओं को प्रोत्साहित करता है या भारत की संप्रभुता या एकता और अखंडता को खतरे में डालता है; या ऐसे किसी भी कार्य में शामिल होता है या करता है तो उसे आजीवन कारावास या कारावास जिसे सात साल तक बढ़ाया जा सकता है, से दंडित किया जाएगा और जुर्माना भी लगाया जा सकता है।

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) के प्रमुख फीचर-टाइम-लाइन : आपराधिक कार्यवाही शुरू करने, गिरफ्तारी, जांच, आरोप पत्र, मजिस्ट्रेट के समक्ष कार्यवाही, कोग्निज़ंस, चार्जेज, प्ली बारगेनिंग, सहायक लोक अभियोजक की नियुक्ति, ट्रायल, जमानत, जजमेंट और सजा, दया याचिका आदि के लिए एक समय-सीमा निर्धारित की गई है।35 सेक्शन में टाइमलाइन जोड़ी गई है, जिससे स्पीडी डिलीवरी ऑफ़ जस्टिस संभव होगी।

 तीन दिनों के भीतर FIR –
BNSS में, इलेक्ट्रॉनिक कम्युनिकेशन के माध्यम से शिकायत देने वाले व्यक्ति द्वारा तीन दिनों के भीतर FIR को रिकॉर्ड पर लिया जाना होगा। यौन उत्पीड़न के पीड़ित की चिकित्सा जांच रिपोर्ट मेडिकल एग्जामिनर द्वारा 7 दिनों के भीतर जांच अधिकारी को फॉरवर्ड की जाएगी।पीड़ितों/मुखबिरों को जांच की स्थिति के बारे में सूचना 90 दिनों के भीतर दी जाएगी।

60 दिनों में आरोप तय-आरोप तय करने का काम सक्षम मजिस्ट्रेट द्वारा आरोप की पहली सुनवाई से 60 दिनों के भीतर किया जाना होगा। मुकदमे में तेजी लाने के लिए, अदालत द्वारा घोषित अपराधियों के खिलाफ अनुपस्थिति में मुकदमा शुरू करना आरोप तय होने से 90 दिनों के भीतर होगा। किसी भी आपराधिक न्यायालय में मुकदमे की समाप्ति के बाद निर्णय की घोषणा 45 दिनों से अधिक नहीं होगी।सत्र न्यायालय द्वारा बरी करने या दोषसिद्धि का निर्णय बहस पूरी होने से 30 दिनों के भीतर होगा, जिसे लिखित में मेंशनड कारणों के लिए 45 दिनों तक बढ़ाया जा सकता है।

 महिलाओं के प्रति अपराध e-FIR के माध्यम से महिलाओं के प्रति अपराधों की रिपोर्टिंग के लिए एक परिवर्तनकारी दृष्टिकोण पेश करता है। संवेदनशील अपराधों की त्वरित रिपोर्टिंग में सहायता करता है। नए विधेयक उन संज्ञेय अपराधों के लिए e-FIR की भी अनुमति देते हैं जहां आरोपी अज्ञात होता है। इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफॉर्म पीड़ितों को अपराध की रिपोर्ट करने के लिए एक विवेकशील अवसर प्रदान करता है। 

जांच की प्रगतिशिकायतकर्ता को सूचना और इलेक्ट्रॉनिक पारदर्शितापारंपरिक प्रचलन से हटकर पुलिस के लिए सख्‍ती से 90 दिनों के भीतर जांच की प्रगति के संबंध में शिकायतकर्ता को बताना जरूरी है।

समय पर ट्रायल: स्थगन और समयसीमा का मार्गदर्शनन्यायिक क्षेत्र में दो चीज़ों पर बल दिया जा रहा है – सुनवाई में तेजी लाना और अनुचित स्थगन पर अंकुश लगाना। धारा 392(1) में 45 दिनों के भीतर निर्णय की बात करते हुए मुकदमे को खत्‍म करने के लिए बेहतर ढंग से एक समयसीमा निर्धारित की गई है। न्याय में विलंब का अर्थ न्याय से वंचित होना है।

टैक्‍नोलॉजी के इस्‍तेमाल को बढ़ाना: दुनिया की सबसे आधुनिक न्याय प्रक्रिया बनाना। क्राइम सीन – इन्वेस्टीगेशन – ट्रायल तक सभी चरणों में टेक्नोलॉजी का उपयोग  पुलिस जांच में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित होगी, सबूतों की गुणवत्ता में सुधार होगा तथा विक्टिम और आरोपियों दोनों के अधिकारों की रक्षा होगी।यह क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम को आधुनिक बनाने की दिशा में एक सकारात्मक कदम है। FIR से केस डायरी, केस डायरी से चार्जशीट तथा जजमेंट सभी डिजिटाइज्ड हो जायेंगे।सभी पुलिस थानों और न्यायालयों द्वारा एक रजिस्टर द्वारा ई-मेल एड्रेस, फोन नंबर अथवा ऐसा कोई अन्य विवरण रखा जाएगा। एविडेंस, तलाशी व जब्ती में रिकॉर्डिंगऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग अनिवार्य ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग ‘अविलंब’ मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत की जाए।फोरेंसिक साक्ष्य एकत्र करने की प्रक्रिया की वीडियोग्राफी की आवश्यकता।पुलिस जांच के दौरान दिए गए किसी भी बयान की ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग का विकल्प। 

फोरेंसिक 7 वर्ष या उससे अधिक की सजा वाले सभी अपराधों में ‘फोरेंसिक एक्सपर्ट’ द्वारा क्राइम सीन पर फोरेंसिक एविडेंस कलेक्शन अनिवार्य । इससे क्वालिटी ऑफ़ इन्वेस्टीगेशन में सुधार होगा और इन्वेस्टीगेशन साइंटिफिक पद्धति पर आधारित होगी। 100%  सज़ा दर(कन्विक्शन रेट) का लक्ष्य । सभी राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों में फोरेंसिक के इस्तेमाल को जरूरी । राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों में जरुरी इंफ्रास्ट्रक्चर 5 वर्ष के भीतर तैयार की जानी है।

 इनिशिएटिवज नेशनल फॉरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी (NFSU) की स्थापना पर फोकसNFSU के कुल 7 परिसर +2 ट्रेनिंग अकादमी (गांधीनगर, दिल्ली, गोवा, त्रिपुरा, गुवाहाटी, भोपाल, धारवाड़)CFSL पुणे एवं भोपाल में नेशनल फोरेंसिक साइंस अकादमी की शुरुआत चंडीगढ़ में अत्याधुनिक DNA विश्लेषण सुविधा का उद्घाटन सर्च और जब्तीपुलिस द्वारा सर्च और जब्ती की कार्यवाही करने के लिए भी टेक्नोलॉजी का उपयोग किया जाएगा। पुलिस द्वारा सर्च करने की पूरी प्रक्रिया अथवा किसी संपत्ति का अधिगृहण करने में  इलेक्ट्रानिक डिवाइस के माध्यम से वीडियोग्राफी। पुलिस द्वारा ऐसी रिकार्डिंग बिना किसी विलंब के संबंधित मैजिस्ट्रेट को भेजी जाएगी।

पुलिस की अकाउंटेबिलिटी : चेक एंड बैलेंस गिरफ्तार व्यक्तियों की सूचना प्रदर्शित करना: राज्य सरकार को एक पुलिस अधिकारी को नामित करने के लिए अतिरिक्त दायित्व दिया है जो सभी गिरफ्तारियों और गिरफ्तार लोगों के संबंध में जानकारी एकत्र करने के लिए जिम्मेदार होगा। ऐसी जानकारी को प्रत्येक पुलिस स्टेशन और जिला मुख्यालय में प्रमुखता से प्रदर्शित किया जाना भी आवश्यक है। 

 प्रक्रियाओं को सरल बनानाअब छोटे-मोटे मामलों में समरी ट्रायल द्वारा तेजी लाई जाएगी।कम गंभीर मामलों, चोरी, चोरी की गई संपत्ति प्राप्त करना अथवा रखना, घर में अनधिकृत प्रवेश, शांति भंग करने, आपराधिक धमकी आदि जैसे मामलों, के लिए समरी ट्रायल को अनिवार्य बनाया गया है। उन मामलों में जहां सजा 3 वर्ष (पूर्व में 2 वर्ष) तक है, मजिस्ट्रेट लिखित रूप में दर्ज कारणों के अंतर्गत ऐसे मामलों में समरी ट्रायल कर सकता है।सिविल सर्वेन्ट्स के विरुद्ध प्रॉसिक्यूशन चलाने के लिए सहमति या असहमति पर सक्षम अधिकारी 120 दिनों के अंदर निर्णय लेगा, यदि ऐसा न हो, तो यह मान लिया जाएगा कि अनुमति प्रदान हो गई है।सिविल सर्वेन्ट्स, एक्सपर्ट्स, पुलिस अधिकारियों के साक्ष्य उसका प्रभार धारण करने वाला व्यक्ति ऐसे दस्तावेज या रिपोर्ट पर टेस्टीमनी दे सकेगा। 

अंडर ट्रायल कैदीकोई व्यक्ति पहली बार अपराधी है, और ‘एक तिहाई कारवास’ काट चूका है, तो उसे अदालत द्वारा जमानत पर रिहा कर दिया जाएगा।जहां विचाराधीन कैदी ‘आधी या एक तिहाई अवधि’ पूरी कर लेता है, जेल अधीक्षक अदालत को तुरंत लिखित में आवेदन दे।विचाराधीन कैदी को आजीवन कारावास या मौत की सजा में रिहाई उपलब्ध नहीं होगी 

नई विटनेस प्रोटेक्शन स्कीम-राज्य सरकार राज्य के लिए एक एविडेंस प्रोटेक्शन स्कीम तैयार करेगी और नोटिफाईड भी की जाएगी । 

घोषित अपराधियों की संपत्ति की कुर्की-10 वर्ष अथवा अधिक की सजा अथवा आजीवन कारावास अथवा मृत्युदंड की सजा वाले मामलों में दोषी को घोषित अपराधी (प्रोक्लेम्डल ऑफेंडर) घोषित किया जा सकता है। घोषित अपराधियों के मामलों में, भारत से बाहर की संपत्ति की कुर्की और जब्ती के लिए एक नया प्रावधान किया गया है। पहले केवल 19 अपराधों में ही प्रोक्लेम्ड ऑफेंडर घोषित हो सकते थे, अब इसमें 120 अपराधों  को दायरे में लाया गया है  जिसमें बलात्कार के अपराध को शामिल किया गया है, जो पहले शामिल नहीं था

संपत्तियों का निपटान-देश के पुलिस स्टेशनों में बड़ी संख्या में केस संपत्तियां पड़ी रहती हैं। जांच के दौरान, अदालत या मजिस्ट्रेट द्वारा संपत्ति का विवरण तैयार करने और फोटोग्राफ/वीडियोग्राफी के बाद भी ऐसी संपत्तियों के त्वरित निपटान का प्रावधान किया गया है फोटो या वीडियोग्राफी किसी भी जांच, परीक्षण या अन्य कार्यवाही में साक्ष्य के रूप में उपयोग किया जा सकेगा। फोटो खींचने/वीडियोग्राफी करने  के 30 दिनों के भीतर, संपत्ति के निपटान, डिस्ट्रक्शन, जब्ती या वितरण का आदेश देगा।

भारतीय साक्ष्य अधिनियम बड़ा (मेजर) परिवर्तन-भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 में दस्तावेजों की परिभाषा का विस्तार करते हुए इसमें इलेक्ट्रानिक या डिजिटल रिकार्ड,ईमेल, सर्वर लॉग्स, कंप्यूटर पर उपलब्ध दस्तावेज, स्मार्टफोन या लैपटॉप के मैसेजेज, वेबसाइट, लोकेशनल साक्ष्य। इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड ‘दस्तावेज़’ की परिभाषा में शामिल। इलेक्ट्रॉनिक रूप से प्राप्त बयान ‘साक्ष्य’ की परिभाषा में शामिल हैंइलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल रिकॉर्ड को प्राथमिक साक्ष्य के रूप में मानने के लिए और अधिक मानक जोड़े गए, जिसमें इसकी उचित कस्टडी-स्टोरेज-ट्रांसमिशन-ब्रॉडकास्ट पर जोर दिया गया।दस्तावेजों की जांच करने के लिए मौखिक और लिखित स्वीकारोक्ति और एक कुशल व्यक्ति के साक्ष्य को शामिल करने के लिए और अधिक प्रकार के माध्यमिक साक्ष्य जोड़े गए, जिनकी जांच अदालत द्वारा आसानी से नहीं की जा सकती है।साक्ष्य के रूप में इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल रिकॉर्ड की कानूनी स्वीकार्यता, वैधता और प्रवर्तनीयता स्थापित की गई।