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विश्व के महानतम इस्लामिक विद्वानों में एक शेख जिया उर रहमान आजमी का हज के पहले दिन मदीना में इंतकाल हो गया। उनका जन्म हिंदुस्तान के कट्टर ब्रह्रमण परिवार में हुआ था। इस्लाम कबूलने से पहले वह ‘बांके लाल’ से जाने जाते थे। उनके निधन से दुनिया के तमाम मुसलमान गमजदा हैं।

शेख जिया उर रहमान के जनाजे की नमाज मदीना में पैगंबर की मस्जिद में पढ़ाई गई। उन्हें ‘अल बाकी अल गरकद’ में पैगंबर मोहम्मद स. के परिजनों के कबरों के करीब दफनाया गया। उन्हें सउदी अरब की मानद नागरिकता मिली हुई थी। मदीना के इस्लामिक विश्विद्यालय के हदीस विभाग से सेवानिवृत्त होने के बाद पैगंबर की मस्जिद में बतौर शिक्षक काम कर रहे थे।

उनका जन्म 1943 में भारत के उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के लरियागंज गांव के एक कट्टर ब्रह्रमण हिंदू परिवार में हुआ था। तब उनका नाम बांके लाल था। 18 वर्ष की उम्र में उन्हें इस्लाम ने इतनी शिद्दत से प्रभावित किया कि परिवार के विरोध के बावजूद वह मुसलमान बन गए। उन्होंने इस्लाम को समझने की चाहत में पहले अच्छे अंकों से मदरसे से स्नातक की डिग्री ली। फिर मदीना के इस्लामिक विश्विद्यालय में आगे की पढ़ाई के लिए दाखला लिया। हदीस के क्षेत्र में काम करने वाला अभी तक जैसा कोई दूसरा इस्लामिक स्कॉलर नहीं हुआ है। वह इस्लामिक विवि के हदीस डिपार्टमेंट के डीन भी रहे। कहा करते थे कि मुसलमानों को कुरान और हदीस की रोशनी में गलफहमियों को दूर करना चाहिए ताकि गंदे और सफेद पानी में अंतर किया जा सके। (muslimnow.net)