
लखनऊ/नई दिल्ली:
उत्तर प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था पर गहरी चोट पहुँचाने वाली एक चौंकाने वाली घटना सामने आई है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने लखनऊ के एक सरकारी अस्पताल में बच्ची को इलाज से वंचित किए जाने की मीडिया रिपोर्ट पर स्वतः संज्ञान लिया है।
मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, सीतापुर ज़िले से बच्ची के माता-पिता उसे पीलिया के इलाज के लिए लखनऊ स्थित रामसागर मिश्रा सौ-बिस्तरीय संयुक्त अस्पताल (बक्शी का तालाब) लेकर पहुँचे थे। लेकिन अस्पताल के डॉक्टरों ने दो घंटे तक इलाज करने से इनकार कर दिया और बच्ची की हालत लगातार बिगड़ती रही।
बाप ने मोटरसाइकिल पर पहुँचाया निजी अस्पताल
सरकारी अस्पताल ने यहाँ तक कि एम्बुलेंस तक उपलब्ध नहीं कराई। मजबूरन पिता को बच्ची को अपनी मोटरसाइकिल पर बिठाकर एक निजी अस्पताल ले जाना पड़ा। यह दृश्य केवल परिवार के दर्द की कहानी नहीं बल्कि सरकारी स्वास्थ्य तंत्र की निर्ममता और असंवेदनशीलता को उजागर करता है।
एनएचआरसी की सख़्ती
आयोग ने कहा है कि यदि रिपोर्ट सच साबित होती है, तो यह मानवाधिकारों का गंभीर उल्लंघन है। आयोग ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को नोटिस जारी कर दो हफ़्तों के भीतर विस्तृत रिपोर्ट माँगी है। इस रिपोर्ट में बच्ची की वर्तमान स्थिति और अस्पताल के रवैये पर स्पष्ट जवाब देना होगा।
राजनीतिक और सामाजिक नाराज़गी
यह घटना ऐसे समय सामने आई है जब राज्य में चुनावी माहौल बनना शुरू हो चुका है। विपक्ष पहले से ही सरकार पर स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली को लेकर हमलावर है। राजधानी लखनऊ में घटित यह घटना सवाल उठाती है कि अगर हालात यहाँ ऐसे हैं, तो छोटे कस्बों और गाँवों में मरीजों की हालत कैसी होगी?
बड़ी तस्वीर
यूपी समेत देश के कई हिस्सों में करोड़ों लोग आज भी सरकारी अस्पतालों पर निर्भर हैं। लेकिन बार-बार सामने आने वाली लापरवाही, अव्यवस्था और जवाबदेही की कमी लोगों का विश्वास तोड़ रही है। निजी अस्पतालों की ओर मजबूरी में दौड़ने वाले गरीब और मध्यमवर्गीय परिवार कर्ज़ और संकट में डूब जाते हैं।
आने वाले चुनावों में बनेगा मुद्दा
विशेषज्ञों का मानना है कि यह घटना स्वास्थ्य व्यवस्था की जर्जर हालत को फिर से सुर्खियों में ले आई है। चुनावी दौर में यह मामला सरकार के कामकाज और जनता के बुनियादी अधिकारों पर बड़ा सवाल बन सकता है।
सरकार की अगली चाल पर नज़रें
अब सबकी निगाहें इस बात पर हैं कि उत्तर प्रदेश सरकार दोषियों पर कार्रवाई करती है या फिर इसे महज़ एक ‘अलग-थलग घटना’ बताकर टालने की कोशिश करेगी। लेकिन इतना तय है कि यह मामला जनता और राजनीति दोनों को झकझोर चुका है और स्वास्थ्य सुधार की तात्कालिक ज़रूरत को सामने लाता है।
