फेक दवाइयां बनाने वाली कंपनियों पर जवाबदेही तय कर कब सख्त कार्रवाई करेगी सरकार ?

प्रदीप शर्मा 

यह खबर परेशान करने वाली है कि बुखार, दर्द, उच्च रक्तचाप, मधुमेह आदि से मुक्ति दिलाने का दावा करने वाली 53 दवाइयां जांच में गुणवत्ता के मानकों पर खरी नहीं उतरी हैं। देश में धड़ल्ले से इस्तेमाल होने वाली पैरासिटामोल भी इन दवाओं में शुमार है। कैसी विडंबना है कि काफी समय से सरकारों की नाक के नीचे ये दवाइयां धड़ल्ले से बिकती रही हैं। केंद्रीय औषधि नियामक ने गुणवत्ता के मानकों पर खरा न उतरने वाली दवाओं की सूची जारी की है। आम लोगों के मन में सवाल बाकी है कि यदि ये दवाएं मानकों पर खरी नहीं उतरती तो इनके नकारात्मक प्रभाव किस हद तक हमारी सेहत को प्रभावित करते हैं। यह भी कि जो लोग घटिया दवाइयां बेच रहे थे क्या उनके खिलाफ कोई कार्रवाई की पहल भी हुई है?

फिलहाल इस बाबत कोई जानकारी आधिकारिक रूप से सामने नहीं आई है। निस्संदेह, यह शर्मनाक है और तंत्र की विफलता को उजागर करता है कि शारीरिक कष्टों से मुक्त होने के लिये लोग जो दवाएं खरीदते हैं, वे घटिया हैं? बहुत संभव है ऐसी घटिया दवाओं के नकारात्मक प्रभाव भी सामने आते होंगे। इस बाबत गंभीर शोध-अनुसंधान की जरूरत है। विडंबना देखिए कि ताकतवर और धनाढ्य वर्ग द्वारा संचालित इन दवा कंपनियों पर राज्य सरकारें भी जल्दी हाथ डालने से गुरेज करती हैं। जिसकी कीमत आम लोगों को ही चुकानी पड़ती है।

विडंबना देखिए कि लोगों द्वारा आमतौर पर ली जाने वाली पैरासिटामोल भी जांच में फेल पायी गई। आम धारणा रही है कि गाहे-बगाहे होने वाले बुखार-दर्द आदि में इस दवा का लेना फायदेमंद होता है। निश्चय ही केंद्रीय औषधि नियामक की गुणवत्तारहित दवाओं की सूची में इसके शामिल होने से लोगों के इस विश्वास को ठेस पहुंचेगी। दुर्भाग्यपूर्ण है कि मानवीय मूल्यों में इस हद तक गिरावट आई है कि लोग अपने मुनाफे के लिये दुखी मरीजों के जीवन से खिलवाड़ करने से भी नहीं चूक रहे हैं।

व्यथित करने वाली बात है कि सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन यानी सीडीएससीओ ने हालिया मासिक रिपोर्ट में जिन गुणवत्ता रहित दवाओं का उल्लेख किया है, उनमें कई दवाओं की क्वालिटी खराब है तो वहीं दूसरी ओर बहुत सी दवाएं नकली भी बिक रही हैं। जिन्हें बड़ी कंपनियों के नाम से बेचा जा रहा है। इससे उन मरीजों की सुरक्षा संबंधी चिंताएं बढ़ जाएंगी जो इन दवाओं का इस्तेमाल कर रहे थे। दुर्भाग्य से इस सूची में हाइपरटेंशन, डाइबिटीज, कैल्शियम सप्लीमेंट्स, विटामिन-डी3 सप्लीमेंट्स, विटामिन बी कॉम्प्लेक्स, विटामिन-सी, एंटी-एसिड, एंटी फंगल, सांस की बीमारी रोकने वाली दवाएं भी शामिल हैं। इसमें दौरे व एंग्जाइटी का उपचार करने वाली दवाएं भी शामिल हैं।

ये दवाएं बड़ी कंपनियों द्वारा भी उत्पादित हैं। बताते हैं कि फेल होने वाली दवाओं में पेट में इंफेक्शन रोकने वाली एक चर्चित दवा भी शामिल है। यद्यपि सीडीएससीओ ने 53 दवाओं की गुणवत्ता की जांच की थी,लेकिन 48 दवाओं की सूची ही अंतिम रूप से जारी की गई। वजह यह बतायी जा रही है कि सूची में शामिल पांच दवाइयां बनाने वाली कंपनियों के दावे के मुताबिक, ये दवाइयों उनकी कंपनी की नहीं हैं वरन बाजार में उनके उत्पाद के नाम से नकली दवाइयां बेची जा रही हैं।

उल्लेखनीय है कि इसी साल अगस्त में केंद्र सरकार ने 156 फिक्स्ड डोज कॉम्बिनेशन यानी एफडीसी दवाओं की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया था। दरअसल, ये दवाइयां आमतौर पर सर्दी व बुखार, दर्द निवारक, मल्टी विटामिन और एंटीबायोटिक्स के रूप में इस्तेमाल की जा रही थी। मरीजों के लिये नुकसानदायक होने की आशंका में इन दवाइयों के उत्पादन, वितरण व उपयोग पर रोक लगा दी गई थी। सरकार ने यह फैसला दवा टेक्निकल एडवाइजरी बोर्ड की सिफारिश पर लिया था। जिसका मानना था कि इन दवाओं में शामिल अवयवों की चिकित्सकीय गुणवत्ता संदिग्ध है।

गौरतलब है कि साल 2022 में हरियाणा की एक कंपनी द्वारा बनाई गईं चार दवाओं के कारण गांबिया में 66 बच्चों की मौत हो गई थी. तब विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने यह जानकारी देते हुए घोषणा की थी कि मेडन फार्मास्युटिकल द्वारा बनाए गए कफ सीरप में डायथिलिन ग्लाइकॉल और एथिलीन ग्लाइकॉल थे, जो मनुष्यों के लिए जहरीले होते हैं. डब्ल्यूएचओ ने कंपनी की उन चारों दवाओं के खिलाफ अलर्ट जारी किया था। 

इसके बाद पिछले साल मई 2023 में भी एक रिपोर्ट सामने आई थी, जिसमें दावा किया गया था कि गांबिया  में 70 बच्चों की मौत भारतीय दवा निर्माताओं द्वारा बनाए गए एक उत्पाद, जिसमें विषाक्त पदार्थ (टॉक्सिन) थे, के चलते गुर्दे को पहुंचे गंभीर नुकसान के कारण हुई थी .हालांकि भारत सरकार उक्त दवाओं में टॉक्सिन की मौजूदगी की बात से लगातार इनकार करती रही थी। 

दरअसल, एक ही गोली को कई दवाओं से मिलाकर बनाने को फिक्स्ड डोज कॉम्बिनेशन ड्रग्स यानी एफडीसी कहा जाता है। बहरहाल, सामान्य रोगों में उपयोग की जाने वाली तथा जीवनरक्षक दवाओं की गुणवत्ता में कमी का पाया जाना, मरीजों के जीवन से खिलवाड़ ही है। जिसके लिये नियामक विभागों की जवाबदेही तय करके घटिया दवा बेचने वाले दोषियों को दंडित किया जाना चाहिए।