Last Updated on: 27 December 2024 12:24 AM

AMN / NEW DELHI

पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का आज दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) में निधन हो गया. वह 92 वर्ष के थे. आज शाम उनकी तबीयत अचानक बिगड़ने के बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां उनका निधन हो गया. दिल्ली एम्स की ओर से आधिकारिक बुलेटिन जारी किया गया है.

दिल्ली एम्स ने एक पत्र जारी कर कहा, ‘अत्यंत दुःख के साथ हम भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के 92 वर्ष की आयु में निधन की सूचना दे रहे हैं. उन्हें रात 8:06 बजे नई दिल्ली के एम्स की मेडिकल इमरजेंसी में लाया गया. तमाम कोशिशों के बावजूद उन्हें बचाया नहीं जा सका और रात 9:51 बजे उन्हें मृत घोषित कर दिया गया.

पूर्व भारतीय प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह का जन्म 26 सितंबर, 1932 को पाकिस्तान के चकवाल जिले में हुआ था, भारत के विभाजन के बाद उनका परिवार भारत आ गया। उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय, कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में उच्च शिक्षा प्राप्त की।

डॉ. मनमोहन सिंह के निधन पर PM मोदी ने एक्स पर एक पोस्ट में लिखा, ‘डॉ. मनमोहन सिंह जी और मैं उस समय नियमित रूप से बातचीत करते थे जब वे प्रधानमंत्री थे और मैं गुजरात का मुख्यमंत्री था. हम शासन से संबंधित विभिन्न विषयों पर गहन विचार-विमर्श करते थे. उनकी बुद्धिमत्ता और विनम्रता हमेशा देखने को मिलती थी. दुख की इस घड़ी में मेरी संवेदनाएं डॉ. मनमोहन सिंह जी के परिवार, उनके मित्रों और असंख्य प्रशंसकों के साथ हैं. ओम शांति.’

मनमोहन सिंह 1991 में नरसिंह राव सरकार में वित्त मंत्री बने।
मनमोहन सिंह ने देश की अर्थव्यवस्था का उदारीकरण किया।

भारत के लिए 1990 के दशक की शुरुआत किसी बुरे सपने से कम नहीं थी। विदेशी निवेश के लिए दरवाजे ठप थे। ‘इंस्पेक्टर राज’ ने उद्योग-धंधे खोलना मुश्किल कर रखा था। अर्थव्यवस्था चौपट होने की कगार पर थी। उस वक्त मनमोहन सिंह संकटमोचक की तरह सामने आए। उनकी नीतियों ने न सिर्फ भारत को दिवालिया होने से बचाया, बल्कि उसे इस काबिल बनाया कि वह तीन दशक बाद दुनिया की शीर्ष पांच अर्थव्यवस्थाओं में शुमार हो सके।
भारतीय अर्थव्यवस्था की समस्या क्या थी?
1990 के दशक से पहले लाइसेंस परमिट राज था। इसका मतलब कि सबकुछ सरकार ही तय करती थी किस सामान का उत्पादन कितना होगा, उसे बनाने में कितने लोग काम करेंगे और उसकी कीमत क्या होगी। इस परमिट राज ने देश में कभी निवेश का माहौल पनपने ही नहीं दिया।
इससे सरकारी खजाने पर बोझ बढ़ता गया और नौबत दिवालिया होने तक की आ गई। भारत को उस समय अपने जरूरी खर्च चलाने के लिए सोना तक विदेश में गिरवी रखना पड़ा। भारत के पास इतना विदेशी मुद्रा भंडार था कि उससे दो हफ्ते के आयात का खर्च ही उठाया जा सकता था।