प्रवीण कुमार

राजस्थान समेत पांच राज्यों में चुनावी गहमागहमी के बीच ईआरसीपी जनजागरण अभियान चलाकर कांग्रेस पार्टी ने बीजेपी के लिए खासतौर पर राजस्थान में बड़ी मुसीबत खड़ी कर दी है. ईआरसीपी के बारे में हम आगे बात करेंगे, लेकिन फिलहाल इस अभियान के तहत कांग्रेस ने पिछले दिनों राजस्थान के दौसा में एक बड़ा कार्यक्रम आयोजित किया जिसमें प्रियंका गांधी की हुंकार से कांग्रेस के प्रति लोगों में जबरदस्त माहौल बनता दिख रहा है. 

दरअसल, बीते शुक्रवार 20 अक्टूबर को प्रियंका गांधी दौसा के सिकराय में ईआरसीपी यानी ईस्टर्न राजस्थान कैनाल प्रोजेक्ट जनजागरण अभियान के तहत आयोजित एक जनसभा को संबोधित करने पहुंची थीं। इस दौरान प्रियंका ने जिस तरह से राजस्थान की जनता को आगाह किया, दिलो-दिमाग में एक डर पैदा किया, अगर ये दांव चल गया तो आने वाला जनादेश सूबे की राजनीति में इतिहास रच देगा. 

प्रियंका ने राजस्थान की जनता से दो-तीन अहम बातें कहीं. पहली यह कि अगर प्रदेश में फिर से भाजपा की सरकार आ गई तो तय मानिए, ओपीएस यानी पुरानी पेंशन योजना खत्म हो जाएगी. रसोई गैस सिलेंडर पर मिलने वाली सब्सिडी खत्म हो जाएगी और 25 लाख रुपये का मुफ्त इलाज की गारंटी भी नहीं मिलने वाली. प्रियंका ने यह भी कहा कि जिन कंपनियों से आपको रोजगार मिल सकता था, भाजपा की केंद्र सरकार ने उसे अपने उद्योगपतियों को बेच दिया. अगर आपने उन्हें सूबे की सत्ता भी सौंप दी तो जो राज्य में जो भी रोजगार का अवसर आपको कांग्रेस राज में मिल रहा है वो भी डबल इंजन की सरकार अपने पूंजीपति दोस्तों के हवाले कर देगी. आखिर पीएम मोदी और अमित शाह यह क्यों नहीं बताते कि वह ओपीएस को लागू करेंगे या नहीं. इस दौरान प्रियंका यह बताना भी नहीं भूलीं कि प्रधानमंत्री आपको सिर्फ लिफाफा दिखाते हैं. उसके अंदर क्या है यह तो वह कभी बताते ही नहीं. और फिर प्रियंका ने की असली मुद्दे की बात. बोलीं- आपको पानी का इंतजार है और भाजपा के नेता तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ईआरसीपी पर सिर्फ जुमलेबाजी करते हैं. आपको उनसे पूछना चाहिए कि ईआरसी को उन्होंने अभी तक राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा क्यों नहीं दिया? 

दरअसल, ईआरसीपी (पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना) से लाखों किसानों के खेतों को पानी और लाखों लोगों के लिए पीने का पानी मिलने वाला है. लेकिन किसानों और आम लोगों के फायदों से इतर इस परियोजना का एक सियासी गणित भी है. इसीलिए कांग्रेस इसे राष्ट्रीय परियोजना घोषित कराने की मांग मोदी सरकार से कर रही है. चूंकि बीजेपी भी इस योजना का क्रेडिट लेना चाह रही है, लिहाजा कांग्रेस की सरकार रहते मोदी सरकार इसे राष्ट्रीय परियोजना घोषित नहीं करना चाहती. 

चुनावी गणित के हिसाब से इसे परखें तो पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना (ईआरसीपी) सूबे के 13 जिलों में सिंचाई और पेयजल की एक महत्वाकांक्षी योजना है. इन जिलों में भरतपुर, अलवर, धौलपुर, करौली, सवाई माधोपुर, दौसा, जयपुर, टोंक, बारां, बूंदी, कोटा, अजमेर और झालावाड़ शामिल हैं. इन जिलों में राजस्थान की कुल 200 में से आधी से कुछ कम यानी 83 विधानसभा सीटें आती हैं जिनकी करीब तीन करोड़ आबादी है. मतलब यह कि ये राजस्थान की कुल आबादी का 41.13 प्रतिशत है. ये जिले प्रदेश के हाड़ौती, मेवात, ढूंढाड़, मेरवाड़ा और ब्रज क्षेत्र में आते हैं. 2018 के विधानसभा चुनावों में 13 जिलों की 83 विधानसभा सीटों में से 61 फीसदी यानी 51 सीटें कांग्रेस ने जीती थीं. साथ ही कुछ और सीटों पर उसके समर्थित दलों का कब्जा है. 

देखा जाए तो इन 13 जिलों में से सात जिलों अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली, टोंक, सवाई माधोपुर, दौसा जिले में 39 विधानसभा सीट हैं जहां कांग्रेस की स्थिति बहुत अच्छी है. 2018 के विधानसभा चुनावों में पार्टी ने 25 सीट इन जिलों में जीती थी. बाकी पांच बीएसपी, चार निर्दलीय और एक आरएलडी के खाते में गई. मतलब कुल 35 सीटों पर कांग्रेस व समर्थित दलों का दबदबा है क्योंकि सरकार बनने के बाद बीएसपी का कांग्रेस में विलय हो गया. निर्दलीय और आरएलडी विधायकों का समर्थन भी कांग्रेस को मिल गया. जाहिर सी बात है आगामी चुनावों को देखते हुए कांग्रेस चाहेगी कि यह स्थिति इसी तरह मजबूत बनी रहे. इसलिए ईआरसीपी को लेकर सीएम गहलोत के साथ-साथ कांग्रेस की सेंट्रल लीडरशिप भी काफी गंभीर है. सीएम गहलोत तो यहां तक घोषणा कर चुके हैं कि अगर केन्द्र की मोदी सरकार ईआरसीपी को राष्ट्रीय परियोजना घोषित नहीं करेगी तो राज्य सरकार इसे अपने संसाधनों से पूरा कराएगी.

आप पूछ सकते हैं कि ईआरसीपी इतना अहम है कि इसका सीधा असर सूबे की राजनीति और चुनाव तक पर पड़ सकता है. निश्चित रूप से यह मुद्दा काफी अहम है. आखिरकार 3 करोड़ लोगों की जिंदगी से जुड़ा मुद्दा जो है. असल में पूर्वी राजस्थान में एक ही बारहमासी नदी बहती है जिसका नाम है चंबल. इस नदी में हर साल 20 हजार मिलियन क्यूबिक मीटर (एमसीएम) पानी यमुना-गंगा के जरिए बंगाल की खाड़ी में बेकार बह जाता है. यही पानी हर साल इस क्षेत्र में बाढ़ की वजह भी बनती है. इन बेकार बहकर जाने वाले पानी के उपयोग के लिए ही ईआरसीपी योजना बनाई गई है. इसके लिए पार्वती, कालीसिंध, मेज नदी के बरसाती पानी को बनास, मोरेल, बाणगंगा और गंभीर नदी तक लाया जाना है. कुल मिलाकर ईआरसीपी से पूर्वी राजस्थान की 11 नदियों को आपस में जोड़ा जाना है. परियोजना के पूरा होने पर मॉनसून में बेकार बहकर जाने वाले बाढ़ के पानी का उपयोग हो सकेगा और 13 जिलों को सिंचाई, पेयजल और उद्योगों के लिए पर्याप्त पानी मिल सकेगा. बहरहाल, मोदी-शाह नीत बीजेपी इस इंतजार में है कि किसी तरह से राजस्थान में डबल इंजन की सरकार बने तो ईआरसीपी को राष्ट्रीय परियोजना घोषित करें. लेकिन कांग्रेस ने एक बार फिर इस मुद्दे पर जनजागरण अभियान चलाकर चुनावी राजनीति को गरमा दिया है. ये समझ लीजिए की अगर कांग्रेस का यह मुद्दा चुनाव में तूल पकड़ गया तो 83 विधानसभा सीटों वाले इन 13 जिलों से बीजेपी का कहीं सूपड़ा ही न साफ हो जाए. बाकी ओपीएस, गैस सिलेंडर की सब्सिडी और 25 लाख रुपये तक का मुफ्त इलाज खत्म होने का डर प्रियंका ने जिस तरह से लोगों में बिठा दिया है, अगर कामयाब हो गया तो कोई दो राय नहीं कि राजस्थान में कांग्रेस एक फिर से सरकार बनाकर सूबे में हर पांच साल में सत्ता परिवर्तन के रिवाज को बदल दे.

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)