प्रवीण कुमार
————————————————————————–
छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस पार्टी ने 30 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर दी है. इस पहली सूची से कांग्रेस ने दो तरह की छवि गढ़ने की कोशिश की है. पहला ये कि पहली लिस्ट में 8 विधायकों के यानी 11 प्रतिशत टिकट काटकर यह बताने और जताने की कोशिश की गई है कि टिकटों के बंटवारे में कांग्रेस किसी तरह का समझौता नहीं करती है और दूसरा मौजूदा सरकार में सारे मंत्री और विधानसभा अध्यक्ष को दोबारा उन्हीं सीटों से मौका देना यानी पूरी ‘सरकार’ को रिपीट कर पार्टी दिखाना चाहती है कि जनता के लिए काम करने वालों का टिकट कांग्रेस पार्टी में कोई नहीं काट सकता है. कोई भार्ई-भतीजावाद नहीं. कोई सिफारिश नहीं.

पहली सूची में पहले चरण की 20 में से 19 सीटों पर उम्मीदवार उतार दिए गए हैं. इसमें बस्तर संभाग की 12 में से 11 और राजनांदगांव लोकसभा की सभी 8 सीटों पर उम्मीदवारों के ऐलान कर दिए गए हैं. इन्हीं सीटों पर पहले चरण में 7 नवंबर को वोटिंग होनी है. पहली सूची में कांग्रेस ने 30 में से तीन साहू को टिकट बांटे हैं. जबकि भाजपा ने 85 में से 10 साहू को मैदान में उतारा है. मतलब भाजपा ने 11 फीसदी तो कांग्रेस ने 10 प्रतिशत साहू प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं.

जहां तक सांसदों को विधानसभा चुनाव में उतारने की बात है तो पहली सूची में कांग्रेस ने बीजेपी के चार के मुकाबले एक सांसद को मैदान में उतारा है. सांसद दीपक बैज को कांग्रेस ने चित्रकोट से प्रत्याशी बनाया है. भाजपा ने अब तक जारी 85 उम्मीदवारों में 4 सांसदों को मैदान में उतारा है. इसमें विजय बघेल, गोमती साय, अरुण साव और रेणुका सिंह का नाम शामिल है. भाजपा में अभी एक और सांसद संतोष पांडेय के भी उतारने का शोर है.

अब उन आठ सीटों की बात कर लेते हैं जिन पर विधायकों के टिकट काटे गए हैं. चित्रकोट की बात करें तो यहां से राजमन बेंजाम का टिकट काटकर सांसद दीपक बैज को दिया गया है. दीपक बैज प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भी हैं. वह यहां से चुनाव लड़ते भी रहे हैं और जीतते भी रहे हैं. इस सीट पर पहले से ही दीपर बैज की उम्मीदवारी तय मानी जा रही थी. इसको लेकर शायद राजमन बेंजाम के मन में भी कोई संशय नहीं था.

दंतेवाड़ा की बात करें तो यहां से सीटिंग विधायक का टिकट काटा जरूर गया है, लेकिन प्रत्याशी परिवार का ही है. दरअसल, दिवंगत महेंद्र कर्मा की पत्नी देवती कर्मा यहां से विधायक थीं. 2018 में देवती कर्मा को टिकट मिलने पर बेटे छबिन्द्र कर्मा ने बगावत कर दी थी. इस बगावत का नुकसान ये हुआ कि पार्टी चुनाव हार गई. भाजपा के भीमा मंडावी विधायक बने. 2019 में उनकी नक्सलियों ने हत्या कर दी और उपचुनाव में देवती कर्मा फिर कांग्रेस से चुनाव जीत गईं. कांग्रेस इस बार बगावत का खतरा नहीं उठाना चाहती थी. लिहाजा, छविंद्र महेंद्र कर्मा को टिकट दिया गया है.

कांकेर से पूर्व आईएएस शिशुपाल सोरी का टिकट काटकर शंकर ध्रुवा को उम्मीदवार बनाया गया है. इसके पीछे कोई और वजह नहीं, बल्कि शिशुपाल सोरी की उम्र को आधार बनाया गया है. हालांकि सोरी की लोकप्रियता में अभी भी कोई कमी नहीं आई है लेकिन कांग्रेस चाहती है कि कुछ नए युवा चेहरे को मौका दिया जाए सो 77 साल के शिशुपाल सोरी को ससम्मान चुनाव में नहीं उतारा गया है.  

अंतागढ़ में लोग विधायक अनूप नाग से बेहद नाराज बताए जा रहे हैं. वजह ये रही कि उन्होंने पिछली बार जनता से वादा किया था कि अगर कांग्रेस की सरकार बनी और मैं विधायक बना तो अंतागढ़ को जिला बनाया जाएगा. संयोग देखिए कि कांग्रेस की सरकार भी बड़ी बहुमत के साथ बनी और अनूप नाग भी जीत गए, लेकिन जितने भी नए जिले बने उनमें अंतागढ़ को शामिल नहीं किया गया. इस कारण से जनता में उनसे और कांग्रेस पार्टी के प्रति नाराजगी दिखी. लिहाजा कांग्रेस ने उम्मीदवार ही बदल दिए और नाग की जगह रूप सिंह पोटाई को उतार कर माहौल बदलने की कोशिश की है.

पंडरिया सीट से ओबीसी समाज को ही टिकट देना तय किया गया था. इस सीट पर अर्जुन तिवारी का नाम भी तेजी से उभरा था, लेकिन उन्हें भी मौका नहीं मिला. अब जो सूची सामने आई उसमें ममता चंद्राकर का टिकट काटकर नीलकंठ चंद्रवंशी को मौका दिया गया है. ममता चंद्राकर के खिलाफ कांग्रेसियों ने ही मोर्चा खोल रखा था. शिकायतें थीं कि वे पार्टी कार्यकर्ताओं की उपेक्षा करती हैं. उधर, नीलकंठ पड़ोस की सीट कवर्धा से विधायक व मंत्री मोहम्मद अकबर के बेहद करीबी हैं माने जाते हैं. कवर्धा के जिला अध्यक्ष भी रहे हैं. इस समय इस सीट पर ऐसे उम्मीदवार की जरूरत थी, जो ओबीसी समाज को भी साध सके और आसपास की सीटों पर सांप्रदायिक तनाव से होने वाले असर को भी कम कर सके. याद हो तो जब कवर्धा में तनाव फैला था तो नीलकंठ ने मो. अकबर के साथ मिलकर मोर्चा संभाला था और हालात को कंट्रोल किया था.

खुज्जी से छन्नी साहू का टिकट काटकर भोलाराम साहू को एक बार फिर मौका दिया गया है. सीएम भूपेश बघेल के करीबी नवाज खां दी गई है। छन्नी साहू टीएस सिंहदेव के करीबी माने जाते हैं, हालांकि सीएम भूपेश यहां से अपने करीबी नवाज खां को टिकट दिलवाना चाहते थे लेकिन पार्टी आलाकमान ने बीच का रास्ता निकाला और पूर्व विधायक भोलाराम साहू को एक बार फिर मौका दिया गया हैं.

डोंगरगढ़ की बात करें तो यहां से भुवनेश्वर बघेल का टिकट काटकर हर्षिता स्वामी बघेल को चुनावी मैदान में उतारा गया है. भुवनेश्वर को लेकर अपने क्षेत्र में सक्रियता नहीं होने की कई शिकायत थी. कांग्रेस के सभी सर्वे में उनके लिए निगेटिव फीडबैक थे. लिहाजा जिला पंचायत की अध्यक्ष हर्षिता स्वामी बघेल के नाम पर सहमति बनी और टिकट दिया गया.

नवागढ़ से गुरुदयाल बंजारे का टिकट काट रूद्र गुरु को टिकट दिया गया है. रूद्र गुरु ने तीसरी बार अपनी विधानसभा सीट बदली है. इससे पहले वे आरंग और अहिवारा से चुनाव लड़ चुके हैं. रूद्र गुरु सामाजिक और धार्मिक गुरु हैं. हालांकि सूबे के आलाकमान से रूद्र के रिश्ते अच्छे नहीं रहे हैं, लेकिन धर्म गुरु हैं, समाज में अच्छी पकड़ है, लिहाजा उन्हें नजर अंदाज नहीं किया जा सकता था. रूद्र गुरु के नवागढ़ से लड़ने की इच्छा का सम्मान करते हुए पार्टी ने गुरुदयाल बंजारे की उम्मीदवारी को खारिज कर दिया. मतलब गुरुदयाल की दावेदारी एक बाबा की भेंट चढ़ गई.

कवर्धा और साजा सीट सांप्रदायिकता के लिहाज से संवेदनशील सीट है. बीजेपी ने यहां इसी हिसाब से अपने उम्मीदवार उतारे हैं. साजा के बिरनपुर में ईश्वर साहू को, जिसके बेटे की हत्या कर दी गई थी और कवर्धा से विजय शर्मा को मैदान में उतारा गया है. जबकि कांग्रेस ने यहां अपने दिग्गज मंत्रियों साजा से रविंद्र चौबे और कवर्धा से मोहम्मद अकबर को ही मौका दिया है. मोहम्मद अकबर भले ही मुस्लिम समुदाय से हैं, लेकिन पिछली बार पूरे प्रदेश में सबसे ज्यादा वोट मोहम्मद अकबर को ही मिले थे. साजा से चौबे परिवार की जीत की परंपरा रही है.

राजनांदगांव सीट के बारे में कहा जा रहा है कि यहां एक बार फिर कांग्रेस ने बाहरी प्रत्याशी देकर भाजपा की राह आसान कर दी है. कांग्रेस ने यहां गिरीश देवांगन को टिकट दिया है. स्व. उदय मुदलियार के बेटे जितेंद्र मुदलियार का नाम की भी चर्चा जोरों से फैली थी, लेकिन जब सूची सामने आई तो उसमें गिरीश देवांगन का नाम था. पिछली बार कांग्रेस ने करुणा शुक्ला को टिकट दिया था. वह रिश्ते में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की भतीजी लगती हैं और भाजपा महिला मोर्चा की राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रह चुकी थीं. कांग्रेस में शामिल हुईं और उन्हें राजनांदगांव से रमन सिंह के खिलाफ लड़ाया गया. बीजेपी ने करुणा पर बाहरी होने का आरोप लगाया. हालांकि कांग्रेस ने भी यही राग अलापा कि डॉ. रमन सिंह भी तो बाहरी ही हैं. वे कवर्धा से क्यों नहीं लड़ते हैं. लेकिन इस बार यह भी आशंका जताई जा रही है कि राजनांदगांव में कांग्रेस से कुछ बागी प्रत्याशी भी मैदान में उतरें.

और अंत में उन प्रमुख सीटों की बात कर लेते हैं जो वीवीआईपी कैटेगरी में हैं और सभी की नजरें इन पर लगी हैं कि कौन बाजी मारता है. साजा सीट पर कांग्रेस के रविंद्र चौबे का मुकाबला ईश्वर साहू से है. पाटन सीट पर सीए भूपेश बघेल का मुकाबला बीजेपी के विजय बघेल से होने जा रहा है. कवर्धा में कांग्रेस के मोहम्मद अकबर का सामना बीजेपी के विक्रम शर्मा से है, जबकि आरंग सीट पर कांग्रेस के शिव डहरिया का मुकाबला बीजेपी के गुरु खुशवंत सिंह से तय हो गया है. कोंडागांव में कांग्रेस के मोहम मरकाम का मुकाबला बीजेपी की लता उसेंडी से तो नारायणपुर में कांग्रेस के चंदन कश्यप का मुकाबला सीधे-सीधे बीजेपी के केदार कश्यप से होगा.
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)