AMN नई दिल्ली

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) के राष्ट्रीय सचिवालय ने आज एक तीखा बयान जारी किया, जिसमें उसने डोनाल्ड ट्रंप की तथाकथित “20-सूत्रीय गाजा शांति योजना” को खारिज कर दिया। पार्टी ने इसे वास्तविक शांति प्राप्त करने के बजाय इजरायली कब्जे को प्रबंधित करने का एक जानबूझकर और भेदभावपूर्ण प्रयास बताया।

CPI ने इस प्रस्ताव को “अस्पष्टता और भेदभाव का अभ्यास” करार दिया और नोट किया कि इसमें वेस्ट बैंक का कोई ज़िक्र नहीं है और फिलिस्तीनी राष्ट्र राज्य के लिए केवल “सबसे अस्पष्ट और संदिग्ध संदर्भ” दिया गया है। पार्टी का तर्क है कि यह योजना इजरायली सैन्य प्रभुत्व के मूलभूत सवाल को अछूता छोड़ देती है और फिलिस्तीनी लोगों के दैनिक कष्टों को नज़रअंदाज़ करते हुए, केवल इजरायल की शर्तों पर कब्जे को संभालने की कोशिश करती है।

बयान में टोनी ब्लेयर जैसे शख्सियतों को “शांति के संरक्षक” के रूप में शामिल करने के प्रस्ताव को “अपमानजनक” बताया गया और कहा गया कि युद्धों में उनकी भूमिका इस प्रक्रिया से किसी भी वैधता को छीन लेती है। CPI ने इस बात के लिए भी आलोचना की कि योजना फिलिस्तीनियों से रियायतें देने और निरस्त्रीकरण की मांग करती है, जबकि इजरायली वापसी या कब्जे की संरचनाओं को ख़त्म करने के लिए कोई विश्वसनीय तंत्र पेश नहीं करती है। पार्टी ने कहा कि ऐसे प्रस्ताव अन्यायपूर्ण रूप से उत्पीड़ितों पर बोझ डालते हैं।

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने ज़ोर देकर कहा कि एक वास्तविक शांति प्रक्रिया तत्काल युद्धविराम और कैदियों की रिहाई से शुरू होनी चाहिए। उसने तर्क दिया कि इस प्रक्रिया का नेतृत्व वे साम्राज्यवादी शक्तियां नहीं कर सकतीं जिन्होंने दशकों के बेदखली को सक्षम किया है। इसके बजाय, एक न्यायसंगत परिणाम सुनिश्चित करने के लिए भारत सहित ग्लोबल साउथ के देशों को यह जिम्मेदारी लेनी चाहिए। CPI ने मांग की कि किसी भी वास्तविक समाधान में पूर्वी यरुशलम को राजधानी बनाकर, 1967 की सीमाओं के आधार पर पूर्ण फिलिस्तीनी राष्ट्र राज्य की गारंटी होनी चाहिए, अन्यथा यह योजना “एक नए रूप में कब्जे को जारी रखने” का ही काम करेगी।

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