AMN /लखनऊ
समाजवादी पार्टी के संस्थापक और संरक्षक मुलायम सिंह यादव ने एक बार फिर शिवपाल सिंह यादव के अरमानों पर पानी फेर दिया है. नेताजी ने सोमवार को अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में नई पार्टी बनाने की बात सिरे से खारिज कर दी है। हालांकि मुलायम सिंह यादव ने प्रेस कॉन्फेंस के दौरान अपनी नाराजगी भी साफ तौर पर जाहिर की। उन्होंने कहा कि वह अखिलेश यादव के कई निर्णयों से सहमत नहीं हैं।
इस प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान एक बात और बेहद चौंकाने वाली रही, वह ये कि मुलायम सिंह यादव अकेले ही मीडिया के सामने आए। इस प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान उनके छोटे भाई शिवपाल सिंह यादव उनके साथ नहीं दिखे। यहां तक कि पत्रकारों के द्वारा जब बार-बार मुलायम सिंह यादव से पूछा गया कि शिवपाल सिंह आपके साथ नहीं हैं। तो उन्होंने इसका जवाब देते हुए कहा कि वह इटावा में कुछ जरूरी काम से रुके हैं, इसलिए मेरे साथ नहीं मौजूद हैं। वहीं अखिलेश यादव से जुड़े सवाल पर मुलायम सिंह यादव ने कहा कि अखिलेश मेरे पुत्र तो उनको मेरा आशीर्वाद, लेकिन मैं उनके फैसले से सहमत नहीं हूं। इससे पहले शनिवार को समाजवादी पार्टी के राज्य सम्मेलन में भी वे नहीं पहुंचे थे।
“केंद्र और राज्य सरकार पर साधा निशाना”
इन सबके के अलावा भी मुलायम सिंह यादव ने कई और मुद्दों पर बात की। उन्होंने केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि तीन साल में कोई वादा पूरा नहीं किया। मोदी सरकार की नोटबंदी ने लोगों की कमर तोड़ दी। यूपी में कानून का शासन खत्म हो गया है। बीएचयू में लड़कियां सुरक्षित नहीं हैं। यूपी सरकार की कथनी और करनी में बहुत फर्क है। गांव तो छोड़ लखनऊ में भी बिजली नहीं है। यूपी में योगी सरकार के बिजली के संबंध में सारे वादे फेल हो गए हैं।
“यादव कुनबे में मनमुटाव”
दरअसल उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले से ही यादव कुनबे में मनमुटाव चल रहा है। शिवपाल सिंह यादव की अखिलेश से अनबन जगजाहीर है। आए दिन अखिलेश और शिवपाल एक दूसरे को नसीहत देते नजर आते हैं। वहीं मुलायम कहने को पार्टी के संरक्षक हैं, लेकिन वे पार्टी के अधिकतर कार्यक्रम में नदारद रहते हैं। इसकी वजह अखिलेश की मनमर्जी बताई जा रही है। अखिलेश और उनके चाचा प्रोफेसर रामगोपाल यादव का पार्टी पर एकाधिकार हो गया है।
मुलायम सिंह यादव ने लोहिया ट्रस्ट की बैठक में नाराजगी भरे लहजे में कहा था कि पहले हमारी पार्टी काफी मजबूत थी। हमारा लोहा देश के कई राज्य मानते थे। लेकिन, अब पार्टी कहां से कहां पहुंच गई। हमारे केवल 47 विधायक ही बचे। पहले सपा राष्ट्रीय पार्टी की हैसियत वाली थी। वहीं बीते दिनों मुलायम को सपा का संरक्षक तो बना दिया गया है, लेकिन पार्टी के किसी भी निर्णय में उनसे विचार विमर्श नहीं किया जाता, जिससे वह नाराज बताए जा रहे हैं। हालांकि अखिलेश आए दिन यह कहते नहीं थकते कि नेताजी का आशीर्वाद मेरे साथ है, लेकिन पार्टी कार्यक्रम से नेताजी की दूरी उनकी नाराजगी को बताती है……..