हिसाम सिद्दीक़ी
भीम सेना, वह नाम जिससे आजकल हर सियासी पार्टी अपना दामन बचाने मंे लगी है। यह कोई बहुत पुरानी तंजीम (संगठन) नहीं है कोई दस साल पहले सहारनपुर के एएचपी कालेज मंे दलित तलबा (विद्यार्थियों) को न सिर्फ बाकी सवर्ण तलबा से अलग बिठाया जाता था बल्कि सवर्ण तलबा के नल से दलितों को पानी पीने की भी इजाजत नहीं थी। यह रवैय्या दलित दानिश्वर सतीश कुमार पर गहरी चोट कर गया उसी दौरान चन्द्रशेखर नाम का एक तेज तर्रार दलित तालिब इल्म भी उसी कालेज में पढता था। उसे भी कालेज मैनेजमेंट का रवैय्या बर्दाश्त नहीं होता था। चन्द्रशेखर ने इस रवैय्ये के खिलाफ कई बार आवाजें उठाई तो सतीश कुमार को लगा कि जैसे उन्हें उनके ख्वाबांे का हीरो मिल गया। दोनों ने मिलकर दलितों पर हो रही नाइंसाफियों और जुल्म व ज्यादतियों का मुकाबला करने का इरादा किया।
इस तरह दस साल पहले जिस भीम आर्मी की शुरूआत हुई थी पूरी तरह ताकतवर और मुनज्जम (संगठित) होने में उसे आठ साल लग गए। 2015 मंेे भीम आर्मी पूरी तरह एक ताकतवर तंजीम की शक्ल अख्तियार कर सकी। दुनिया के सामने इसका नाम बीस अप्रैल को सहारनपुर में सड़क दूधली गांव में, पंाच मई को शब्बीरपुर गांव, नौ मई को सहारनपुर के गांधी पार्क के वाक्यात से आ ही चुका था लेकिन तेइस मई को दिल्ली के जंतर-मंतर पर एक बड़ा मजाहिरा करके भीम आर्मी ने अपनी ताकत का एहसास देश व दुनिया को करा दिया। उत्तर प्रदेश सरकार भीम आर्मी से खौफजदा है। इसीलिए पूरी मशीनरी लगी है कि भीम आर्मी को माली मदद करने वालों का पता लगाया जाए। सरकार ने इसे बदनाम करने के लिए सरकारी मशीनरी का जमकर इस्तेमाल किया। भीम आर्मी के नक्सलियों से और कश्मीरी दहशतगर्दों से ताल्लुकात की खबरें प्लाण्ट की गई। कहा गया कि भीम आर्मी के पास करोड़ों रूपए आ गए। फिरकापरस्ती की खबरों में हमेशा से दिलचस्पी रखने वाले अखबार दैनिक जागरण में 26 मई को सरकारी मशीनरी ने ही खबर प्लाण्ट कराई कि दलित मुस्लिम गठजोड़ ने सहारनपुर मंे जात-पात की हिंसा कराई जिसमें भीम आर्मी का हाथ है। बीजेेपी ने बीएसपी पर भीम आर्मी की फण्डिंग का इल्जाम लगाया तो मायावती इतना परेशान हो गई जैसे उनपर पाकिस्तानी दहशतगर्दाें की फण्डिंग का इल्जाम लग गया हो। कांग्रेस पार्टी भीम आर्मी का नाम तक लेने की हिम्मत नहीं कर पा रही है। कमोबेश यही हालत पूरे सियासी सिस्टम की हैं आखिर भीम आर्मी से इतना खौफ क्यों?
भीम आर्मी का नक्सलियों से या दहशतगर्दों से ताल्लुक है अभी तक इस इल्जाम को साबित नहीं किया जा सका है। भीम आर्मी ने किसी भी गांव के दलितों को भड़का कर दंगा-फसाद कराया एडमिनिस्टेªशन के पास कोई सबूत नहीं। भीम आर्मी के लोगों ने दलित रक्षा, गौरक्षा और हिन्दू रक्षा के बहाने सड़कों पर दहशत फैलाई इसका जवाब भी जवाब नहीं में है। भारत सरकार ने सहारनपुर दंगों पर उत्तर प्रदेश सरकार से रिपोर्ट मांगी। प्रदेश सरकार ने जो पहली रिपोर्ट भेजी उसमें भी भीम आर्मी का जिक्र नहीं किया गया। एडमिनिस्टेªशन ने भीम आर्मी को कश्मीरी पत्थरबाजों जैसा होने की खबरे प्लाण्ट कराई लेकिन एक नौ मई को सहारनपुर मंे हुए वाक्ए के अलावा भीम आर्मी ने कहीं कोई पत्थरबाजी की पुलिस के पास इसका कोई रिकार्ड मौजूद नहीं है। दूसरी तरफ एक प्राइवेट टीवी चैनल ने चन्द्रशेखर आजाद रावण का इण्टरव्यू किया। देश विदेश के कई न्यूज पोर्टल्स ने चन्द्रशेखर उनकी भीम आर्मी के एजूकेशन मिनिस्टर कहे जाने वाले राहुल राज गौतम और दीगर कई लोगों के इण्टरव्यू किए। हर इण्टरव्यू में भीम सेना चीफ चन्द्रशेखर से एक मामूली वर्कर तक ने यही कहा कि वह लोग डाक्टर भीम राव अम्बेडकर के मानने वाले है। इसलिए देश के संविधान और कानून के खिलाफ कोई काम नहीं करने वाले। उन्होने चैलेज करते हुए कहा कि गुजिश्ता दस सालों में भीम सेना से जुड़े किसी शख्स ने किसी पर भी हाथ उठाया हो कभी कानून हाथ में लिया हो तो सरकार और एडमिनिस्टेªशन हमंें बता दे हम हर सजा भुगतने के लिए तैयार हैं। इसी के साथ वह यह भी कहते हैं कि हां अगर उनके दलित समाज पर कहीं कोई जुल्म व ज्यादती होगी तो हम अपने समाज के तहफ्फुज (सुरक्षा) के लिए खडे़ जरूर होंगे। राहुल राज गौतम कहते हैं कि हम गरीब दलित बच्चों को मुफ्त मंे ट्यूशन देते हैं उन्हें तालीम के मैदान में आगे बढाना चाहते हैं क्या यह कोई जुर्म है? इसके बाद राहुल राज गौतम ने सहारनपुर में हुए हंगामों की अस्ल वजह बताते हुए जिले केे सवणों खुसूसन भारतीय जनता पार्टी के लोक सभा मेम्बर राघव लखनपाल शर्मा पर इल्जाम लगाते हुए कहा कि बीस अप्रैल को सहारनपुर के सड़क दूधली गांव में डाक्टर अम्बेडकर की शोभा यात्रा के बहाने उन्होेने दलितों और मुसलमानों के दरम्यान दंगा-फसाद कराने की साजिश रची। गांव मंे पथराव भी हुआ शोभा यात्रा की इजाजत नहीं ली गई थी इस लिए पहली बार निकाली जा रही इस यात्रा को रोकने के लिए डीएम सीनियर पुलिस कप्तान एक बड़ी फोर्स के साथ मौजूद थे। भीम आर्मी को पता चला तो आर्मी के लोगों ने गांव पहुचकर अपने दलित समाज और मुसलमानों को समझा कर दंगा नहीं होने दिया। इसे हमारा गुनाह समझ लिया गया और मुसलमानों के साथ दंगा न कराने की सजा के तौर पर कई गांवों के दलितों पर हमले कराए गए।
भीम आर्मी का यह भी कहना है कि बीजेपी लोक सभा मेम्बर राघव लखनपाल शर्मा ने बगैर इजाजत सड़क दूधली गांव मंे अम्बेडकर शोभा यात्रा निकाल कर दंगा कराने की साजिश रची। एडमिनिस्टेªशन ने उसे रोक दिया तो पहले भीड़ के सामने सीनियर पुलिस कप्तान लव कुमार की बेइज्जती की उन्हें नाकारा करार देते हुए उन्हें गालियां बकी। वह मौके पर ही थे कि राघव लखनपाल शर्मा ने गुण्डे की भीड़ लेजाकर सीनियर पुलिस कप्तान के सरकारी बंगले पर हमला करा दिया। क्या इससे बड़ा कोई जुर्म जिले में हो सकता है? सरकार बताए कि उसने अपने लोक सभा मेम्बर के खिलाफ क्या कार्रवाई कराई? सड़क दूधली गांव में बगैर इजाजत शोभा यात्रा निकालकर दंगे की साजिश की गई। पांच मई को शब्बीरपुर गांव में महाराणा प्रताप के नाम पर बगैर इजाजत जुलूस निकाला गया। महेशपुर में बिला इजाजत राणा प्रताप की मूर्ति लगाने की कोशिश की गई। शब्बीरपुर और दो पड़ोसी गांवों के दलितों के पचासों मकान जला दिए गए उन्हें बुरी तरह मारा-पीटा गया भीम सेना ने नौ मई को गांधी पार्क में एक पंचायत बुलाई तो उस पंचायत को देश के खिलाफ बगावत मान कर लाठी चार्ज किया गया। इल्जाम यह कि हमने पंचायत के लिए एडमिनिस्टेªशन से इजाजत नहीं ली थी। इजाजत तो राघव लखनपाल शर्मा और राणा प्रताप के हामी ठाकुरों ने भी नहीं ली थी उनपर क्या कार्रवाई हुई? आखिर यह कौन सा कानून है जो बगैर इजाजत दबे कुचले जलाए और मारे गए दलितों को मुनासिब मुआवजा दिलाने के मतालबे के लिए बुलाई गई एक पंचायत के लिए दलितों को तो सूली पर चढाने के लिस बेचैन है लेकिन दंगा-फसाद कराने के लिए बगैर इजाजत जुलूस निकालने वाले सवर्णों की तरफ आखं उठाकर भी देखना नहीं चाहता।
गायों की हिफाजत के नाम पर गौरक्षक आर्मी, हिन्दू बहन बेटियों की इज्जत और एहतराम (सम्मान) की हिफाजत करने के नाम पर बहन बेटी सम्मान बचाओ फौज, हिन्दुओं की हिफाजत के बहाने हिन्दू रक्षक दल, हिन्दुओं के मफाद और जानमाल की हिफाजत के नाम पर बजरंग दल, हिन्दू जागरण मंच, महाराष्ट्र मंें शिवसेना केरल में हिन्दू मुन्नानी कर्नाटक में श्रीराम सेना और पूर्वी उत्तरप्रदेश मंे हिन्दुत्व की हिफाजत के नाम पर खुद उत्तर प्रदेश के चीफ मिनिस्टर बन चुके योगी आदित्यनाथ ने हिन्दू युवा वाहिनी बनाई। मुल्क में हिन्दुओं की आबादी अस्सी फीसद है इसके बावजूद हिन्दुओं की हिफाजत के नाम पर इतनी सारी सेनाओं की जरूरत क्यों पड़ी जवाब एक ही है कि शायद यह सेनाएं और वाहिनी बनाने वालों को अपनी और अपने समाज की हिफाजत के मामले में देश की सेना और भारी-भरकम पुलिस फोर्स पर एतबार (विश्वास) नहीं है। यह सेनाएं अब क्या करती फिर रही हैं रोज दर्जनों रिपोर्टे मीडिया मंे रहती हैं। सवाल यह है कि अगर अस्सी फीसद आबादी वाले लोगों को देश की सेना और पुलिस पर एतबार न करके अपनी सेनाएं बनाने का अख्तियार है तो देश के मुसलमानों और हजारों सालों से हर तरह का जुल्म व ज्यादती बर्दाश्त करने वाले दलितों को भीम आर्मी जैसी अपनी ताकत खड़ी करने का अख्तियार क्यों नहीं है। मुसलमानों ने तो कोई आर्मी या फौज बनाई नहीं क्योंकि उनकी आर्मी बनते ही उन्हें देशद्रोही और देश व संविधान का दुश्मन बता दिया जाएगा। कोई छोटी मोटी सियासी पार्टी अगर मुसलमान बनाते भी हैं तो दो-चार सालों में ही उन्हें बदनाम करके देश मुखालिफ ही करार ठहरा दिया जाता है। भीम आर्मी ने अभी तक एक भी ऐसी हरकत नहीं की है जैसी हरकते गले मंे भगवा अंगौछा डालकर बजरंग दल, शिवसेना, हिन्दू रक्षक दल, गौरक्षक दल और आदित्यनाथ योगी की हिन्दू युवा वाहिनी के लोग आए दिन सड़कों पर करते फिरते हैं फिर भी भीम आर्मी किसी को फूटी आंख भी बर्दाश्त नहीं है। सरकारों का यही रवैय्या सताए हुए तबके के नौजवानों को गुमराही के रास्ते पर डाल देता है। बजाहिर तो भीम आर्मी की मुखालिफत करने के पीछे सिर्फ और सिर्फ एक ही वजह समझ में आती है वह यह कि हिन्दू युवा वाहिनी, बजरंग दल और गौरक्षकों में शामिल सवर्ण तबके के नौजवानों की तरह भीम आर्मी में शामिल कुछ गरीब दलित नौजवान आखिर गले में नीला अंगौछा डालकर कीमती मोटरसाइकिलों पर क्यों चलते हैं? इसके अलावा बजाहिर दूसरी कोई वजह नहीं है।
अभी यह कहना मुश्किल है कि भीम आर्मी और उसके लीडर चन्द्रशेखर आजाद रावण का मुस्तकबिल क्या होगा प्रदेश और देश की सरकारें उन्हें जिंदा भी रहने देंगी या उनका हश्र भी स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट आफ इंडिया (सिमी) जैसा बना दिया जाएगा लेकिन दो बातें साफ हैं मायावती भीम आर्मी के नाम पर जिस तरह भड़क कर किनारे हुई हैं और भीम आर्मी को आरएसएस के जरिए खड़ी की गई एक फौज करार दे दिया उन्होेने अपने ही पैर पर ठीक उसी तरह कुल्हाड़ी मारने और मुस्तकबिल में अपना सियासी नुक्सान कर लिया है जैसे कांग्रेस ने ‘साफ्ट हिन्दुत्व’ पर चलकर किया नतीजा यह हुआ कि साफ्ट हिन्दुत्व से आम हिन्दू तबके कांग्रेस से जुड़े नहीं पुराने कांग्रेसी मुसलमान और दलित भी उसे छोड़ गए। मायावती के साथ अब सवर्णं आने वाले नहीं दलितों को खुद ही ठुकराने पर तुली हुई हैं। दूसरे यह कि भीम आर्मी को बदनाम करने की जो मुहिम प्रदेश सरकार और सरकारी मशीनरी कर रही है वह भी एक बड़ी तादाद में नौजवानों को देश की मेनस्ट्रीम (मुख्यधारा) से अलग-थलग करने का खतरनाक खेल साबित हो सकता है। प्रदेश के सेक्रेटरी होम की सतह से यह कहा जाना कि चन्द्रशेखर के बैंक खातों में चालीस-पचास लाख रूपए कहां से आए यह पता लगाया जा रहा है। उन लोगों को भी तलाश किया जा रहा है जो भीम आर्मी की फण्डिंग करते हैं। यह बयान इंतेहाई गैर जिम्मेदाराना और आ बैल मुझे मार जैसा है। बैंकों मंे पैसे कहां से आए आजकल दो मिनट में इसका पता चल जाता है अगर सरकार या होम सेक्रेटरी को कोई शक था पहले खामोशी से पता लगाते कि बैंक में अगर पैसा आया है तो कहां से आया है? अगर पैसा आया वहभी गलत तरीके से आया तो एक मजबूत केस बनाकर चन्द्रशेखर और गलत तरीके से मुश्तबा (संदिग्ध) फण्डिंग करने वाले दोनों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी चाहिए थी। इस किस्म की खबरें प्लाण्ट कराना तो सिर्फ प्रोपगण्डे के जरिए किसी को बदनाम करने जैसी कार्रवाई है।