अशफाक कायमखानी / जयपुर
भारत भर की तरह राजस्थान के किसान समुदाय को भी राज्य सरकार की हमेशा से दबाते रहने की आदत के चलते अब जाकर तो हद करे जा रहे है कि किसानो को अपने हक की मांग उठाने के लिये जयपुर ना पहुंचने के लिये उन्हे पुरी तरह कुचलने को आमादा होकर उनकी 22-फरवरी तय तिथी की घोषणा के बावजूद उनके नेता कामरेड अमरा राम सहित सेंकड़ो नेताओ को गिरफ्तार करके जैल भेजकर उनकी मांग को दरकीनार करने की तरफ जाती लगती है। जो भारतीय लोकतंत्र के लिये एक बडा खतरे का संकेत साफ नजर आने लगा है।
सितम्बर-17 मे किसान समुदाय के तेराह दिन का लम्बा आंदोलन करने के बाद किसान व सरकार के मध्य जो लिखीत समझोता हुवा था। उस समझोते को ठीक से लागू करने की सरकार को याद ताजा कराने के लिये अखिल भारतीय किसान सभा ने 22-फरवरी को जयपुर मे किसान समुदाय के इकठ्ठा होकर विधानसभा पर प्रदर्शन करने का ऐलान करने पर प्रदेश के अलग अलग हिस्सो से किसान समुदाय के अलग अलग जत्थे गावो मे जनजागरण करते जयपुर पहुंचने थे। लेकिन सरकार ने हड़बड़ाहट मे कुछ जत्थो के जयपुर जिले की सीमा मे पहुंचते ही कालाडेरा थाना की पुलिस ने कामरेड अमरा राम के नेतृत्व मे चल रहे किसान जत्थे व चोमू थाने की पुलिस ने कामरेड पेमाराम की अगुवाई मे चल रहे जत्थे को गिरफ्तार करने के बाद राज्यभर मे धड़ाधड़ छापामारी करके सेंकड़ो किसान नेताओ को गिरफ्तार करके एक तरह से आपातकाल की याद ताजा कर दी। गिरफ्तार किसान नेताओ को अगले दिन स्थानीय उपखण्ड अधिकारीयो के सामने पेश किया जहां उनके जमानत मुचलके ना देने पर उनको जैल भेज दिया।
बीस फरवरी को पूर्व विधायक कामरेड अमरा राम व कामरेड पेमाराम सहित अनेक किसान नेताओ की गिरफ्तारी के बावजूद किसान सभा ने 22-फरवरी को विधानसभा पर प्रदर्शन करने का पहले से घोषित अपने कार्यक्रम को यथावत रखते हुये जयपूर कूछ का ऐलान जारी रखा। लेकिन सरकार ने किसानो को जयपुर मे घूस कर प्रदर्शन नही करने देने का जो तय कर रखा था। उसके तहत किसानो को जयपुर मे ना घूसने के जितने जतन कियै जा सकते थे। वो सभी तरह के जतन किये लेकिन फिर भी हटवाड़ स्थित माकपा दफ्तर मे बडी तादात मे किसान जमा होकर वही पर सभा करके सरकार को चेतावनी दी। दूसरी तरफ जयपुर-सीकर मार्ग पर किसानो को पुलिस ने अनेक जगह जयपुर जाने से रोका तो किसान वही पर रुक कर सभाऐ करने के बाद वही पर हाइवे जाम करके बेठ गये। जयपुर सीकर मार्ग पर टांटीयावास टोल पलाजा, सरगोठ व सीकर के रामू का बास सर्किल पर बडी तादात मे किसान समुदाय अब तक बेठकर हाइवे जाम कर रखा है। जिनमे महिला किसानो की तादात भी काफी नजर आ रही है।
अखिल भारतीय किसान सभा ने पूर्व विधायक व सभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष कामरेड अमरा राम की अगुवाई मे 1-13 सितम्बर 2017 तक कर्ज माफी, बछड़ा खरीद जारी करने व स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट लागू करने सहित करीब सोलाह मागो को लेकर लम्बा आंदोलन चलाकर सरकार को झूकने पर मजबूर करके सरकार व किसान सभा के मध्य एक लिखित समझोता हुवा था। उसी समझोते को लागू कराने को लेकर किसान 22-फरवरी को जयपुर मे विधानसभा पर प्रदर्शन करने का ऐलान करके अलग जिलो से किसान जत्थे जयपुर जा रहे थे। जिनको पुलिस ने जयपुर जिले की सीमा मे घूसने के साथ व अन्य मुकाम पर गिरफ्तार करके उनको नेताओ को जैल मे डाल दिया है। उसके बाद किसानो मे अपने नेताओ की गिरफ्तारी के खिलाफ ऊबाल आने पर अनेक जगह उन्होने हाइवे जाम करके सब कुछ ठप्प सा कर दिया है। साथ ही किसान नेताओ को रिहा ना करने की हालत मे 24-फरवरी से सभी जगह चक्का झाम करने का किसानो ने ऐहलान करके सभी को सकते मे लाकर सितम्बर-17 की याद ताजा कराते हुये प्रदेश मे तूफान के पहले शांती की सा आलम छाया हुवा है।
राजस्थान के किसान आंदोलन को लेकर काग्रेस प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलेट की चूपी व उनकी जायज मांगो को लेकर अनदेखी पर जनता अनेक सवाल खड़े करती है। कभी कभी तो लगता है कि किसान आंदोलन को लेकर मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे व सचिन पायलेट एक पाले मे खड़े नजर आते है। एयर कंडीसन मीजाज वाले पायलेट व राजे वेसे भी कभी किसान हितैसी नेता नजर नही आये। हां अशोक गहलोत अक्सर भाजपा सरकार को किसान आंदोलन को लेकर घेरते आये है। किसान आंदोलन के अगूवा कामरेड अमरा राम व पायलेट के खासमखास साबिक पीसीसी चीफ चोधरी नारायण सिंह आमने सामने दांतारामगढ से चुनाव लड़ते रहे है। अगर अमरा राम का जनाधार बढता है तो उनके सबसे पहले सीयासी निवाला नारायणसिंह ही होगे। तो पायलेट कतई नही चाहते कि उनके मुखायमंत्री बनने मे सहायक भुमिका अदा कर सकने वाले नारायणसिंह के मुकाबले अमराराम का सीयासी आधार परवान चढे। दूसरी तरफ आंदोलन करके सियासी माइलेज लेने मे कामरेड अमरा राम को माहिर माना जाता है।
कुल मिलाकर यह है कि राजस्थान सरकार को आंदोलन को कूचलने की बजाय जनहित मे वार्ता करके कोई हल निकालना चाहिये। अगर इस तरह के हाईवे जाम की हालत विस्तार लेती एवं आंदोलन जोर पकड़ने से सरकार की छवि का जनता मे प्रतिकूल असर पड़ेगा।