By M.A.Hashmi
ख्ाुश्ाी मनाअाे, ख्ाुश्ाी मनाअाे अाज दीवाली रे—-। बच्ापन में हिंदी पुस्तक की यह कवित ख्ाूब पढ़ी जाती थ्ाी। अाज फिर इसे पढ़ने का दिन है। इस कविता काे काेई अकेले न पढ़े। पूरे देश्ा काे सामूहिक रूप से इसे पढ़ना चाहिए। वजह, इसराे द्वारा बनाया गया पहला स्वदेश्ाी श्ाटलयान। इसे साेमवार काे श्रीहरि काेटा से लांच किया गया। इसकी सबसे ख्ाास बात यह है कि इसे बनाने में लागत बेहद कम अाए। हवाई जहाज की श्ाक्ल का यह श्ाटल उतरने के बाद दुबारा इस्तेेमाल में भ्ाी लाया जा सकेगा। भ्ाारत जैसे विकासश्ाील देश्ा की सबसे बड़ी चुनाैती है मिसाइलाें, राॅकेटाें, श्ाटलाें पर अपार ध्ान ख्ाचऱ्र् करना, लेकिन इनका निमाऱ्र्ण्ा भ्ाी जरूरी है अन्यथ्ाा कम्यूूनिकेश्ान, रक्ष्ाा तकनीक में हम औराें से पिछड़ जाएंगे।
मिसाइलमैन से मश्ाहूर डाॅक्टर एपीजे अब्दुुल कलाम काे जब देश्ा के लिए मिसाइल तकनीक विकसित करने जैसी महत्वपूण्ाऱ्र् जिम्मेदारी साैंपी गई थ्ाी। तभ्ाी से वे इस प्रयास में रहे कि कैसे इस तकनीक काे देश्ा के लिए कम लागत में विकसित किया जाए। ख्ाुश्ाी है कि इसराे और डीअारडीअाे के वैज्ञानिक बड़ी शिद्दत से उसी दिश्ाा में बढ़ रहे हैं। अाैर अाज हमने इस दिश्ाा में एक मंजिल तय भ्ाी कर ली है। वैसे इसके साथ्ा एक और विष्ाय पर चचाऱ्र् करना जरूरी समझता हूं। वह है नए श्ाटल के नामकरण्ा काे लेकर। लांचिंग से पहले उम्मीद थ्ाी कि इसका नाम कलामयान रख्ाा जाएगा। मगर अब तक किसी दिश्ाा से एेसे संकेत नहीं मिले हैंं। पता नहीं अाप में से कितने सहमत हैं, पर मैं समझता हूं कि इस स्पेेस श्ाटल का नाम कलाम के नाम पर नहीं रख्ाने से उनके चाहने वालाें काे मायूसी हुई है। प्रध्ाानमंत्री नरेंद्र माेदी कलाम साहब के बड़े प्रश्ांसकाें में एक हैं। इसलिए उनसे काफी उम्मीद की जा रही थ्ाी, पर श्ाटल छाेड़ते समय उन्हाेंने भ्ाी इसके काेई संकेत नहीं दिए।
बारबार यह दाेहराना, कलाम साहब ने अपनी अंतिम सांसे भ्ाी देश्ा पर न्याेछावर कर दीं, हलकी बात लगती है। लेकिन इस हकीकत से भ्ाी ताे मुंह नहीं माेड़ा जा सकता है। जब उनकी बात अाएगी ताे यह सवाल पूछा जाएगा ही कि देश्ावासियाें ने उस महान देश्ाभ्ाक्त के लिए क्या किया। तकरीबन दस महीना पहले जब कलाम साहब का इंतकाल हुअा थ्ाा तब लगा उनकाे लेकर पूरा देश्ा जाेश्ा में है। लगता थ्ाा देश्ा का हरेक नागरिक उनके लिए कुछ न कुछ करना चाहता है, पर दस महीने बाद तस्वीर कुछ अाैर बनी है। उनके बिसराने का गुमान हाेने लगा है। इसराे वाले ही लगता है उन्हेें भ्ाूलते जा रहे हैं। स्वदेश्ाी श्ाटल का नाम कलामयान रख्ाने की पहल उसकी अाेर से हाेनी चाहिए थ्ाी। प्रस्ताव नहीं मानने पर सरकार काे घेरना नैतिकता पूण्ाऱ्र लगता। अब लाेग किस मुंह से केंद्र सरकार काे इसके लिए जिम्मेदार ठहरा सकते हैं। बस यही ताे कहा जा सकता है कि माेदी जी चूंकि कलाम साहब के बड़े प्रश्ांसकाें में हैंं, इसलिए यह पहल उनकी अाेर से हाेनी चाहिए थ्ाी। बहरहाल, लुब्बाे-लुबाब यह है कि स्वदेश्ाी श्ाटल अाकाश्ा छू गया अाैर हम कलाम काे सच्ची श्रद्वांजलि देने का एक बेहतर माैका चूक गए।
कलाम पर बनेगी फिल्म
अब एक अच्छी ख्ाबर। कलाम साहब के बचपन पर ब्ाालीवुड एक फिल्म बनाने की तैयारी में है। बीबीसी की ख्ाबराें के मुताबिक, इसके निमाऱ्ता-निदेऱ्श्ाक कलाम के राेल के लिए नवाजुद्दीन सिद्दीकी अाैर इरफान ख्ाान के नाम पर गाैर कर रहे हैं। इसी साल फिल्म के रिलीज हाेने की ख्ाबर है।