प्रदीप शर्मा / AMN
नई दिल्ली: वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा आज संसद में पेश की गई आर्थिक समीक्षा 2015-16 में कहा गया है कि कीमतों के मोर्चे पर नरमी की स्थिति और देश में बाह्य चालू खाते के संतोषजनक स्तर को देखते हुए अगले दो वर्षों में 8 प्रतिशत या उससे भी ज्यादा की विकास दर हासिल करना अब संभव नजर आ रहा है।
आर्थिक समीक्षा में वर्ष 2016-17 के दौरान आर्थिक विकास दर 7 से लेकर 7.5 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया है। वर्ष 2014-15 में 7.2 प्रतिशत और वर्ष 2015-16 में 7.6 प्रतिशत की आर्थिक विकास दर हासिल करने के बाद 7 प्रतिशत से ज्यादा की विकास दर ने भारत को दुनिया की सबसे तेजी से विकास करने वाली प्रमुख अर्थव्यवस्था में तब्दील कर दिया है। आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारत का योगदान अब और अधिक मूल्यवान हो गया है, क्योंकि चीन फिलहाल अपने को फिर से संतुलित करने में जुटा हुआ है।
आर्थिक समीक्षा में यह भी उल्लेख किया गया है कि भारत में विकास के मोर्चे पर जो तेजी देखी जा रही है, वह मुख्यत: खपत की बदौलत ही संभव हो रही है। आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि जहां एक ओर सेवा क्षेत्र के विकास की रफ्तार थोड़ी धीमी पड़ गई, वहीं विनिर्माण क्षेत्र में आई तेजी ने लगातार दो वर्षों से मानसून के कमजोर रहने के चलते कृषि क्षेत्र में दर्ज की गई निम्न विकास दर की भरपाई कर दी है।
आर्थिक समीक्षा में, हालांकि, कमजोर वैश्विक मांग के प्रति आगाह किया गया है। आर्थिक समीक्षा 2015-16 में कहा गया है कि 14वें वित्त आयोग (एफएफसी) की सिफारिशों के बाद ज्यादा पूंजीगत खर्च, राज्यों को ज्यादा शुद्ध संसाधन हस्तांतरण और ज्यादा सकल कर राजस्व के बीच संतुलन कायम करने की कोशिश की जा रही है।
आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि चुनौतियों और वर्ष 2015-16 के दौरान जीडीपी के अनुमान से कम रहने के बावजूद राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को जीडीपी के 3.9 प्रतिशत के स्तर पर सीमित रखना संभव नजर आ रहा है। ऐसी उम्मीद इसलिए जग रही है, क्योंकि बेहतर कर संग्रह, विवेकपूर्ण खर्च प्रबंधन और तेल के घटते मूल्यों की बदौलत सकल कर राजस्व (जीटीआर) के लक्ष्य हासिल कर लिए गए हैं।
आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि बेहतर राजकोषीय प्रबंधन का एक संकेतक यह है कि वर्ष 2015-16 में कुल खर्च 17.77 लाख करोड़ रुपये रहने का अनुमान है, जो वर्ष 2014-15 के संशोधित अनुमानों से 5.7 प्रतिशत ज्यादा है। व्यय की गुणवत्ता पर फोकस को दोहराते हुए पूंजीगत खर्च में 25.5 प्रतिशत की वृद्धि की परिकल्पना की गई थी। चालू वित्त वर्ष के दौरान दिसंबर 2015 तक संतोषजनक राजकोषीय स्थिति से जुड़े अनेक तथ्य उल्लेखनीय रहे। अप्रत्यक्ष करों के संग्रह में दमदार वृद्धि, एफएफसी की सिफारिशों के अनुरूप राज्यों को करों में ज्यादा हिस्सा दिया जाना, पिछले 6 वर्षों के दौरान पूंजीगत खर्च में सर्वाधिक बढ़ोतरी और प्रमुख सब्सिडियों में कमी इन तथ्यों में शामिल हैं।
आर्थिक समीक्षा 2015-16 में इस ओर भी ध्यान दिलाया गया है कि थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित महंगाई दर पिछले एक साल से भी ज्यादा समय से ऋणात्मक स्तर को दर्शा रही है। यही नहीं, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित महंगाई दर भी घटकर विगत वर्षों के मुकाबले लगभग आधी रह गई है। आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि विवेकपूर्ण नीतियों और बफर स्टॉक, समय पर अनाजों के वितरण एवं दाल आयात के जरिए सरकार द्वारा किये जा रहे महंगाई प्रबंधन से आवश्यक वस्तुओं की कीमतों को वर्ष 2015-16 के दौरान नियंत्रण में रखने में मदद मिली है।
आर्थिक समीक्षा में, हालांकि, इस ओर संकेत किया गया है कि वर्ष की दूसरी छमाही में कुछ आवश्यक खाद्य पदार्थों की कीमतों में दर्ज की गई वृद्धि से ऐसा आभास होता है कि हमें निकट भविष्य में भी आपूर्ति प्रबंधन को बेहद समझदारी के साथ जारी रखना होगा।
आर्थिक समीक्षा 2015-16 में बताया गया है कि भारत अपने जनसांख्यिकी लाभांश के माध्यम से जनसंख्या के कार्य आयु के हिस्से के रूप में आर्थिक प्रगति प्रदान कर रहा है। इस लाभांश का दोहन करने और श्रमिक वर्ग में प्रवेश करने की बढ़ती हुई इच्छा को पूरा करने के लिए भारत की अर्थवयवस्था में अच्छे रोजगार जुटाने की जरूरत है जो सुरक्षित हों, अच्छे वेतन वाले हों तथा वे कौशल और उत्पादकता में सुधार करने के लिए कंपनियों और कामगारों को प्रोत्साहित भी करें। उल्लेखनीय है कि 1989 और 2010 के दरमियान सृजित किए गए 10.5 मिलियन रोजगारों में केवल 3.7 मिलियन अर्थात 35 प्रतिशत औपचारिक क्षेत्रों में थे। इस अवधि में संस्थापनों की संख्या 4.2 मिलियन बढ़ी जबकि औपचारिक क्षेत्र में रोजगारों की संख्या में कमी हुई है। ऐसा संभवत: इन कंपनियों द्वारा ठेका श्रम का अधिक उपयोग करने के कारण हुआ। इस प्रकार देश में अच्छे रोजगार सृजन की चुनौतियां औपचारिक क्षेत्र के लिए एक चुनौती के रूप में देखी जा रही हैं। यह क्षेत्र कामगार की सुरक्षा की गारंटी भी देता है।
समीक्षा में यह सुझाव दिया गया है कि परिधान क्षेत्र में कम उत्पादकता वाली कंपनियों का अधिक उत्पादकता वाली कंपनियों में पूंजी हस्तांतरण करके इस बारे में महत्वपूर्ण सुधार किया जा सकता है। भारत में औपचारिक परिधान क्षेत्र की कंपनियों की अनौपचारिक क्षेत्र की कंपनियों के मुकाबले 15 गुणा अधिक उत्पादकता है। इस प्रकार भारत के परिधान क्षेत्र में अनौपचारिक कंपनियों का वर्चस्व है। जहां लगभग 2 लाख कंपनियों में लगभग 3,30,000 कामगार कार्यरत हैं।
हाल के अध्ययनों में यह अनुमान लगाया गया है कि अर्थव्यवस्था में अगर महिलाओं को भी पुरूषों के समान भागीदारी मिलें तो भारत के सकल घरेलू उत्पाद में प्रतिवर्ष 1.4 प्रतिशत की अतिरिक्त बढ़ोतरी होगी। अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए केंद्र को यह सुनिश्चित करना है कि श्रम विनियमन कामगार केंद्रित हो और श्रमिकों की इच्छा का विस्तार किया जाए और औपचारिक क्षेत्र के रोजगारों पर जरूरी आवयश्क कर घटाएं जाएं। समीक्षा में कर्मचारी भविष्य निजी संगठन के कार्य में सुधार करने का भी सुझाव दिया गया है। नीति निर्माताओं को यह ध्यान रखना चाहिए कि क्या कम आय वाले कामगारों को भी ईपीएफ में अमीरों की तरह अपने वेतन का एक हिस्से का येागदान देने की छूट दी जाए। औपचारिक क्षेत्र में श्रमिकों को काम पर रखने की लागत कम करने और अधिक लोगों को प्रोत्साहित करने की जरूरत है। क्योंकि इन क्षेत्रों में उत्पादकता का स्तर और बढ़ोतरी अधिक है। संक्षेप में भारत की सबसे अहम श्रम बाजार चुनौती यह है कि अच्छे रोजगार बड़ी तादाद में जुटाये जाएं।