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बाबरी मस्जिद मामले में शिया बोर्ड की तरफ से दायर हलफनामे पर कई सवाल उठने लगे हैं. ज्ञात हो के एक तरफ जहां शिया वक्फ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर बाबरी मस्जिद को विवादित ज़मीन से कहीं दूर बना कर मामले का निपटारा करने की बात कही है, वहीं कुछ शिया और सुन्नी संगठनों की तरफ से उनकी याचिका पर सवाल उठाए जा रहे हैं।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बाबरी मस्जिद राम जन्म भूमी विवादित ज़मीन को तीन हिस्सों में बाट दिया था। एक हिस्स राम लल्ला विराजमान, दूसरा हिस्सा निरमोही अखाडा और तीसरा हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया गया। ये फैसला अक्टूबर 2010 में आया था।
सात सालों बाद अब शिया वक्फ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर कहा है कि विवादित ज़मीन का तीसरा हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को नहीं ब्लिके शिया वक्फ बोर्ड को मिलना चाहिए। हलफनामे के मुताबिक बाबरी मस्जिद एक शिया मस्जिद थी जिसे सुन्नीयों ने कब्जा कर लिया था। हलफनामे में लिखा है कि सुन्नी वक्फ बोर्ड में कट्टपंथी लोग हावी हैं।
सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील जफरयाब जिलानी का कहना है कि इस हलफनामे का कोई महत्व नहीं है क्योंकी हाई कोर्ट ने ज़मीन पर मालिकाना हक सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया है। ये हलफनामा महज एक अपील है।
सुन्नी वक्फ बोर्ड के ही वकील एम.आर. शमशाद का कहना है कि सात सालों से शिया वक्फ बोर्ड इस मामले में कहीं नहीं दिखा। और अचानक ये हलफनामा दाखिल हुआ है। ये देखना होगा कि इसके पीछे कौन है।
वहीं अलिगढ़ मुस्लिम युनिवर्सीटी के प्रोफेसर रेहान अख्तर कासमी का कहना है कि ये मुसलमानों के मुकदमे को कमजोर करने की कोशिश लग रही है।
यही नहीं, कुछ शिया नेता भी शिया वक्फ बोर्ड के हलफनामे पर उंगली उठा रहे हैं। गौरतलब है कि शिया वक्फ बोर्ड का हलफनामा उसके चेयरमैन वसीम रिज़वी की तरफ से दाखिल किया गया है। वसीम रिज़वी के खिलाफ शियाओं के बड़े नेता कल्बे जव्वाद से लखनउ के हजरतगंज थाने में मुकदमा दर्ज कराया है। वसीम पर आरोप है कि उन्हों ने केंद्र सरकार को चिठ्ठी लिख कर कहा था की कल्बे जव्वाद आतंकी संगठनों से जुड़े हैं।
दिल्ली के करबला शाहे मरदां के ज़हीरुल हसन का कहना है कि वसीम रिज़वी को अपने समुदाय में चर्चा करने के बाद ही कोई हलफनाम दाखिल करना चाहिए था। हलफनामे में जो लिखा है वो उनकी निजी राय हो सकती है।