एमएलए अफसरों और मंत्री से और मंत्री भी अफसरों से परेशान है तो अंदाजा लगाया जा सकता कि इस सरकार के राज मे आम आदमी का क्या हाल होगा?दिल्ली में लगातार तीसरी बार सत्ता में बैठी कांग्रेस की सरकार से आम आदमी तो क्या संतष्ट होगा। जब कांग्रेस के विधायक ही सरकार के कामकाज से संतुष्ट नहीें है। दूसरी ओर मुख्यमंत्री शीला दीक्षित अपनी सरकार के कामकाज की प्रशंसा करते नहीं थकती है लेकिन असलियत उनके विधायको और मंत्रियों की बातों से उजागर होती है। मुख्यमंत्री के पास लोगो की तो क्या अपने विधायको की समस्याएं सुनने के लिए ही वक्त नहीं है। वरना कांग्रेस के आलाकमान को यह निर्देश न देना पडता कि विधायकों
और आम आदमी की समस्याओं का पता लगा कर उनको जल्द हल किया जाए। इस निर्देश के बाद मुख्यमंत्री ने बैठक बुलाई। इस बैठक में कांग्रेस के विधायको ने ही मंत्रियों को खरी-खोटी सुनाई। एक विधायक ने तो पूरी कैबिनेट को बरर्खास्त करके शीला की अगुवाई में नई कैबिनेट के गठन की ही मांग कर दी। मुख्यमंत्री को निशाना न बना कर सिर्फ मंत्रियों को ही निशाना बनाने वाले जाहिर है कि मुख्यमंत्री खेमे के ही है और उनका सपना मंत्री को हटवा कर खुद मंत्री बनने का है। कई तो सिर्फ इसलिए मंत्री बन गए क्योंकि वे मुख्यमंत्री के वफादार है। इसके अलावा उनमें मंत्री बनने लायक कोई योग्यता नजर नहीं आती।
ऐसे नाकाबिल मंत्रियों के कारण भी अफसर उनकी सुनते नहीे है। दूसरी ओर जो काबिल मंत्री है उनको नाकारा साबित करने की कोशिश की जाती है हालांकि आज की गंदी राजनीति मे ये आम बात है। अगर कांग्रेस के विधायक वाकई ही अपनी सरकार के कामकाज से संतुष्ट नही है और मंत्रियों की अफसरशाही पर लगाम ही नही है तो ऐसे में सरकार की मुखिया के नाते मुख्यमंत्री की भी तो जिम्मेदारी बनती है। ऐसे में विधायको को मंत्री ही नहीं मुख्यमंत्री को भी बदलने की मांग करनी चाहिए। बैठक मे एक वरिष्ठ मंत्री ने सफाई दी कि मंत्री भी क्या करे अफसर उनकी ही नही सुनते और न ही मंत्रियों के पास अफसरों के खिलाफ कार्रवाई करने का अधिकार है। मंत्री की इस प्रकार की बेबसी बताती है कि सरकार में कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है।
वाकई ऐसा है तो कांग्रेस आलाकमान को इस ओर ध्यान देना चाहिए। क्योंकि जब मंत्री की ही नहीं चल रही तो आम आदमी के कार्य यह सरकार कैसे करेगी। ऐसे में निरंकुश अफसरशाही का खामियाजा तो आम आदमी को ही भुगतना पडेगा। आलाकमान को यह भी मालूम करना चाहिए कि कही मुख्यमंत्री खेमे और मंत्रियों के खेमों की गुटबाजी के कारण ही तो सरकार की ये हालत नहीं बन गई । क्योंकि अफसरशाही तब ही हावी होती है जब सरकार मे गुटबाजी जोरों पर हो। मंत्री और मुख्यमंत्री अगर वाकई काबिल हो तो अफसरशाही की क्या मजाल कि वह मंत्री की न सुने । परिवहन मंत्री अरविंदर सिंह लवली का फोन तक भी उनके मातहत अफसर नही उठाते।मंत्री का फोन सुना जाए इसके लिए उनके सचिव ने बकायदा विभाग ं को इस बारे में निर्देश जारी करने को कहा। कांग्रेस आलाकमान को गुटबाजी में उलझी इस सरकार का जल्द ही कोई इलाज करना चाहिए।